गुड़गाँव का नागपाल, गुरुजी का ऐसा शिष्य था, जिसे वे बहुत प्यार करते थे। उसकी तीन वेटियाँ थी लेकिन उसे चौथे बच्चे की तम्मना थी। लेकिन वह बेटे के लिए सुनिश्चित कर लेना चाहता था। वह गुरुजी के बहुत करीब था और जानता था कि अगर गुरुजी ‘हाँ’ कह देते हैं तो बिना किसी शक के बेटा ही होगा। तो उसने गुरुजी से पूछा और गुरुजी ने ‘हाँ’ कह दिया कि इस बार बेटा ही होगा।
गर्भ को छह महीने का समय बीत गया। एक दिन वह गुरुजी के कक्ष में बैठा था, वह दुबारा से आश्वास्त होना चाहता था। वह बोला, “गुरुजी पक्का है ना। लड़का ही होगा ना…?” गुरुजी ने पुष्टि की और उसे लड़के के लिए आश्वासन दिया और कहा कि तुम्हें संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने स्वयं आशीर्वाद दिया है। जब नागपाल के साथ इस विषय पर चर्चा हो रही थी तो एक अन्य शिष्य सुरिन्दर तनेजा भी कमरे में बैठा हुआ था। नागपाल के जाने के बाद एक अजीब घटना घटी।
गुरुजी ने कहा, “सुरिन्दर, उसको बेटी होगी, बेटा नहीं…” सुनकर सुरिन्दर हैरान रह गया। उसने कहा, “गुरुजी, आपने अभी तो उसे कहा था कि कोई फिकर ना करे, लड़का ही होगा और आपने इस पर ज़ोर भी दिया कि फ़िकर ना करे.. .!! गुरुजी तब उस पर क्या बीतेगी, जब उसकी पत्नी चौथी बार फिर एक लड़की को जन्म देगी…!!” वह तो किसी भी तरह का जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं था। अगर उसे मामूली सा भी अंदेशा होता कि उसकी चौथी सन्तान फिर लड़की होगी तो वह इसके लिए प्रयास ही नहीं करता। गुरुजी गंभीर हो गये और सुरिन्दर से कहा, “बेटा, इसकी जिन्दगी सिर्फ दो साल ही बची हुई है, अगर इसका बेटा होता है, तो ये उसका क्या आनन्द लेगा। बच्चा गोद में ही होगा और बाप चल बसेगा। क्या मिलेगा नागपाल को…? ….और जो बेटी होने वाली है उसका कन्या दान किये बिना, नागपाल मर नहीं सकता। यह सच्चाई सिर्फ मैं जानता हूँ और तुम वो दूसरे व्यक्ति हो, जिसके साथ मैंने इस गुप्त रहस्य को बाँटा है। ….मैं गुरु हूँ बेटा।”
अन्ततः नागपाल के घर बेटी ने जन्म लिया। नागपाल बहुत परेशान हुआ और गुस्से में गुरूजी के पास चला आया और उनसे शिकायत तथा बहस करने लगा। वह बोला कि मुझे चौथी लड़की की कोई जरुरत नहीं थी और अगर मुझे लड़का ना होने का ज़रा सा भी शक होता, तो मैं कभी भी इसके लिए प्रयास नहीं करता। अन्त में उसने अपना कड़ा उतारा और गुरुजी के साथ अपने रिश्ते को अलविदा घोषित कर दिया।
गुरूजी धैर्यपूर्वक उसकी बाते सुनते रहे, लेकिन उन्होंने क्या किया था, इसका उन्होंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। जब नागपाल थक गया, गुरूजी ने कड़ा लिया और बड़े प्यार से उसे दुबारा पहना दिया। लेकिन यह रहस्य उस पर प्रकट नहीं किया।
कुछ दिनों के बाद जब सुरिन्दर तनेजा को नागपाल से मिलने का मौका मिला, तो उसने उसे इस सच्चाई के बारे में बताया जो गुरूजी ने उसे लड़के और बच्ची के जन्म के बारे में विस्तार से बताया था। नागपाल कई वर्षों तक जीवित रहे, वह बच्ची बड़ी हुई और उसकी शादी हो गयी। जाहिर है नागपाल ने उसका ‘कन्या दान’ किया और फिर गुरुजी के चरणों में पहुंच गया।
हमारा भाग्य बनाने वाले परमेश्वर तथा जीवन का भविष्य जानने वाले और बने हुए भाग्य को बदलने में सक्षम।
…हे गुरूदेव, आप महान हैं। साष्टांग प्रणाम हैं। हे गुरुवर!