करीब 1988-89 की बात है। जम्मू में राजू नाम का एक भक्त सेवादार है। लेकिन गुरुजी के प्रति विश्वास में उसकी माँ, उससे कहीं आगे है। वह अपना एक आरामदायक सामान्य जीवन जी रही थी।
एक बार उसे दर्द हुआ, जिसके लिए उसने डॉक्टर से सलाह ली। डॉक्टर ने उसे कुछ चिकित्सा परीक्षाएं (Medical Investigations) कराने की सलाह दी। रिपोर्ट में यह स्पष्ट रुप से कहा गया कि वह एक विकट (Acute) दिल की समस्या से पीड़ित है। उसे दवाओं की भारी खुराक के तहत रखा गया और कई सावधानियाँ जैसे मक्खन और घी का परहेज़ तथा कुछ खाद्य पदार्थों को भी उसके आहार से हटा दिया गया।
समय बीतता गया और वह लगाये गये प्रतिबंधों से थक गई। उसने बहुत सी शिकायतों की एक सूची गुरुजी के समक्ष रखने हेतु योजना बनाई और गुड़गांव पहुंच गई। वह पूरी तरह से कुंठित दिखाई दे रही थी। उसने गुरुजी से प्रार्थना की, “गुरुजी, मैं ऐसा जीवन नहीं जीना चाहती जिसमें मुझे रोजाना दवाईयों और दर्जनों गोलियों पर निर्भर रहना पड़े। मैं अपनी पसंद का खाना नहीं खा सकती और ना ही घी खाने की अनुमति है, जो मेरे खाने की कमजोरी है। घी मुझे बहुत पसन्द है और मैं घी खाये बगैर नहीं रह सकती। मुझे यदि मजबूरी में जीवन ऐसे ही जीना पड़ेगा तो मुझे ऐसे जीना पसंद नहीं है बजाय इसके …हे गुरुदेव मुझे मौत दे दीजिए।”
जिस तरह से वह प्रार्थना कर रही थी, आश्चर्य..!! काम हो गया। गुरुजी भावुक हो और भी मधुर हो गये। उन्होंने कहा, “ठीक है आज से तुम्हें किसी भी दवाई लेने की जरुरत नहीं है। तुम जो भी खाना चाहो खा सकती हो और हाँ जितना चाहो, उतना घी भी खा सकती हो। फिर उसके बेटे राजू को बुलाया और आज्ञा दी कि कोई भी प्रतिबंध लगाने की और कभी किसी भी चिकित्सा जाँच के लिए ले जाने की जरुरत नहीं है।
….और राजू ने उनकी आज्ञा का पालन किया। तब से बीस साल से अधिक बीत चुके हैं और वह अभी भी जम्मू में एक सामान्य जीवन जी रही है। वह नियमित खाने का सभी आनंद ले रही है, लेकिन कोई दवाई नहीं……
मुझे लगता है….
* ना तो मैं सोच सकता हूँ,
* ना कल्पना कर सकता हूँ
* ना ही अनुमान लगा सकता हूँ और…
अन्त में ना ही इस पर विचार कर सकता हूँ कि गुरुजी के कुछ शब्द कहने पर उसकी धमनियों की नाकाबंदी (Blockage of Arteries) का क्या हुआ और इससे उसके जिगर, गुर्दे और दिल को क्या अनुभव हुआ कि उसके दिल की बीमारी सम्पूर्ण रुप से समाप्त हो गई।
आपने….?
कृप्या गुरुजी बताईये, किया क्या ऐसा तो कभी नहीं देखा, ना सुना…..।
आप ही आप हैं…. हे भगवन्…!
प्रणाम …..हे गुरूजी।