अपनी दुर्लभ ईश्वरीय यात्रा से पहले गुरुजी पंजाबी बाग स्थान की ऊपरी मंजिल पर अपने जिस कमरे में विराजमान होते थे वो कमरा आज भी उसी तरह से सजा हुआ है और उनके शिष्यों को या फिर उनके चुने हुए भक्तों को ही अंदर जाने की आज्ञा होती है। हम प्रार्थना के लिए या अपनी किसी इच्छा पूर्ति के लिए उनके कमरे में जाते हैं। क्यूंकि वे आत्मिक रुप में हैं। इसलिए साधारण दृष्टि और खुली आँखों से उन्हें देखा नहीं जा सकता। लेकिन उनके शिष्यों को आन्तरिक ज्ञान है कि वे वहाँ पर और खासतौर पर उस कमरे में हमेशा विराजमान रहते हैं। इसलिए उन्हें हर सुबह चाय प्रस्तुत की जाती ठीक वैसे ही जैसे पहले की जाती थी, जब वे शरीर में थे। हम उनसे अपनी बातें कहते हैं और अपने भाव व्यक्त करते हैं, इस विश्वास के साथ कि गुरुजी वहाँ हैं, वे हमें सुन रहे हैं और देख रहे हैं। उनकी एक अनन्य भक्त है जिसका नाम है नीलमा। वह हर रोज़ चाय का प्याला लेकर उनके कमरे में उन्हें पिलाने जाती है। एक दिन सुबह 9 बजे के करीब वह चाय का प्याला हाथ में लेकर उनके कमरे में पहुंची, तो सुखवंत सिंह का एक मिस्त्री कुछ बिजली का काम कर रहा था। नीलमा ने उससे कहा कि वह थोड़ी देर के लिए बाहर चला जाए, उसने गुरुजी को चाय पिलानी है। थोड़ी देर के बाद वह आकर दुबारा काम कर सकता है। कुछ समय बाद जब वह चाय का प्याला हाथ में लिए लौटी और मिस्त्री के सामने से गुजरी तो हंसते हुए उसने मज़ाक से पूछा, “…चा पी लई ने..?” उसका लहजा टिचकर से भरा (ताना मारने का व्यंगपूर्ण अंदाज) और भावना को ठेस पहुंचाने वाला था। एक खास गुरुभक्त होने के नाते, नीलमा को इतना दुख हुआ कि उसके आँसू निकल आये। उसे लगा कि जैसे वह उसकी गुरुभक्ति को चुनौती दे रहा हो। इस प्याले की चाय को बाकी की चाय में मिला दिया जाता है और प्रसाद के रुप में चाय सब भक्तजनों में वितरित की जाती है जो बड़ी उत्सुकता से इस भोग की प्रतीक्षा करते हैं। कोई दस मिनट बीते होंगे कि गुरुजी के कमरे में से कुछ भारी चीज़ गिरने कि आवाज़ आयी। आवाज़ सुनकर नीलमा भागी और देखा कि सरदारजी नीचे फर्श पर गिरे हैं और दर्द से कराह रहे हैं। शायद छत पर काम करते समय स्टूल से गिरे होंगे।
उनकी कमर में चोट आयी और दर्द इतनी थी कि उठ नहीं सकते थे। दो-तीन लोगों की सहायता से उन्हें नीचे लाया गया और घर भेज दिया और काम रुक गया। सुखवंत सिंह ने बाद में बताया कि पांच-छ: महीने तक वह काम पर नहीं आ सका। उसके बाद से आज तक वह गुरुजी के कमरे में कभी नहीं गया। अनुमान लगाने की इजाजत होती है सबको, उसी के आधार पर मेरे विचार से किसी ईश्वरीय शक्ति ने जो हर समय गुरजी के कमरे रहती हैं, उसे सजा के तौर पर नीचे गिराया होगा। नीलमा के आँसू और उसके दिल का दर्द देख लिया होगा, उसी ईश्वरीय शक्ति ने। लेकिन मैं पूरे यकीन के साथ तब तक कोई टिप्पणी नहीं कर सकता जब तक गुरूजी की तरफ से मुझे पूरे विवरण का सीधा सन्देश नहीं आ जाता। साथ ही, अगर मेरा अनुमान ठीक है तो दो बातें सिद्ध होती हैं :
1. बिना किसी संशय के गुरुजी हर समय वहाँ विराजमान होते हैं
2. किसी को ऐसा कोई शब्द उच्चारण नहीं करना चाहिए जिससे उनके किसी भक्त का विश्वास डोल जाए, क्यूंकि वे गुरूजी को अत्याधिक प्रिय हैं।
ऐ–मेरे मालिक, मेरे हज़ारों दंडवत प्रणाम स्वीकार कीजिये और हम सब पर अपनी असीम कृपा बनाए रखिये।