बात तब की है जब गुरुजी शरीर छोड़कर मोक्ष पद प्राप्त कर चुके थे। गुरुजी के एक शिष्य का कन्धा जुड़ चुका था। उससे एक भूल हो गई थी जिसका बाद में एहसास भी हो गया लेकिन अपनी बाजू हिलाने पर उसे दर्द होती थी। ऊपर तो कर ही नहीं सकता था। बहुत सारी मरहम, गर्मी पहुँचाने वाले बिजली के यंत्र इत्यादि सभी का खूब प्रयोग करने के पश्चात् भी कोई लाभ नहीं हुआ। दर्द और कष्ट के साथ कई महीने बीत गए। अब तो सौ ग्राम वजन उठाना भी कठिन हो गया। अपनी बाजू को चंद इंच हिलाने पर भी असहनीय दर्द होता था। यहाँ तक कि स्थान पर सेवा करते समय लोगों को आशीर्वाद देने के लिए दांये हाथ को उठाने के लिए अपने बांये हाथ का सहारा लेना पड़ता था। बात कुछ फैल गयी और भक्तजनों को पता तो चल गया मगर पूछने से घबराते थे सब… कारण यह कि शिष्य अपनी तकलीफ़ भक्तजनों से छिपा कर रखें और शांत रहें, ऐसा गुरुजी का आदेश है। मगर कुछ गुरुभक्त रुक नहीं पाए। टिंगु, मिंगु और उनकी बहन इन्दु ने मजबूर किया और अपने साथ एक्सरे करवाने के लिए गंगाराम अस्पताल ले गए और हड्डियों के सबसे बड़े डॉक्टर अनिरुद्ध से उसकी जाँच कराई। डॉक्टर अनिरुद्ध ने बड़ी ईमानदारी से बताया कि कन्धा जुड़ चुका है इसलिए बाजू का हिलना असंभव है। उसने दर्द सहन करने हेतु कुछ दवाएं लिख दी और अपने आप को असमर्थ बता दिया कि जुड़े हुए कंधे का कोई इलाज नहीं है। बाकी का जीवन अब ऐसे ही बिताना होगा। तत्पश्चात्, वे लोग उसे विलिंग्डन अस्पताल के सबसे बडे डॉक्टर कोछड़ के पास ले गए। गुरुजी का भक्त होने के कारण उसने खासतौर पर, अपने घर पर उसकी पूरी जाँच की। एक घंटे की पूरी जाँच के बाद उसने अपना फैसला सुनाया और कहा कि यह कन्धा अब पूरी तरह से जाम हो चुका है, अतः बाकी का सारा जीवन बाजू हिलाई नहीं जा सकेगी—सो, जाँच बिना किसी समाधान के समाप्त हो गयी।
कुछ महीने बीते और कंधे की बात माताजी के पास पहुंच गयी। एक बार जब वह शिष्य माताजी के कमरे में बैठा हुआ था कि उन्होंने एकदम अपना हाथ उठाया और उसके कंधे की ओर ले जाकर, क्रोध में बोली, “वे, दिखा मुझे…! कहाँ है दर्द तेरे कंधे में…?” शिष्य, फुर्ती से एक तरफ हट गया और कहने लगा, “ना …मातारानी, हाथ नहीं लगाना …वैसे ही ठीक कर दो। क्यूंकि, आपने दर्द अपने कंधे में ले लेनी है, इसलिए दूर से ही कह दो, यह अपने आप ठीक हो जाएगी।” …और इस तरह दर्द के साथ कुछ और समय बीत गया और फिर संसार का सबसे बड़ा दिन, गुरु-पूर्णिमा’ आ गई। तकरीबन सारे शिष्य एक सप्ताह के लिए गुडगाँव स्थान पर दिन और रात रहते हैं। अन्य शिष्यों के साथ-साथ वह भी गुडगाँव स्थान पर था। फिर एक दिन आधी रात के समय जब वह स्थान के सामने वाले कमरे में सो रहा था तो एक ऐसी घटना घटी, जिसका वृतान्त पहले कभी नहीं सुना…
मध्य रात्रि में ‘गुरु पहर’ का यह वृत्तान्त काफी लम्बा और पूर्णतया अध्यात्मिक है। रात्रि के करीब दो बजे थे। गुरुजी आये, उसे जगाया और सीधे बैठने का आदेश दिया। फिर उन्होंने उसका हाथ पकड़ा
और खींच कर उसकी पीठ तक ले जाकर ऊपर उठाया और गर्दन की ओर ले गए और —
……..और– कर दी अपनी कृपा । साथ ही एक आदेश दिया, “सुबह उठने के बाद विभूति लेकर कंधे पर लगा लेना।”
सुबह उठकर शिष्य मातारानी के पास गया और रात का पूरा वृत्तान्त सुना दिया—माताजी बड़े खुश हुए और कहा, “विभूति यहीं से ले ले बेटा और यहीं लगा ले।” गुरुजी के बेड के सिरहाने एक ट्रे में रोज़ धूप जलाई जाती है अतः उसने वहीं से विभूति उठाई और मातारानी के सामने ही अपने कंधे पर लगा ली।
‘गुरु-पूर्णिमा’ का पर्व मनाया जा रहा था। रात्रि के समय वह रसोई के साथ वाले कमरे में गया, जहाँ और लोग भी नीचे दरी पर बैठे हुए थे। वहाँ पर रखी एक सेट्टी पर बैठने को उसका मन हुआ। अब हुआ यह कि बैठने से पहले उसे सीट पर एक तिनका नजर आया। उसने सहज ही उसे हटाने के लिए अपने हाथ के उलटे हिस्से से झाड़ दिया। ऐसा करते ही इतनी तेज दर्द हुई कि वह चीख उठा। …हे भगवान…!!! इसे असह्य कहना गलत होगा– यह तो उससे भी अधिक दर्द थी। उसे समझ नहीं आया कि हुआ क्या है…!! इतने हलके से हाथ घुमाने पर इतना दर्द…!! उसने सोचा कि एक बार फिर करके देखते हैं। और अब की बार भी वैसा ही दर्द हुआ। आश्चर्य की बात तो यह हुई कि उसने बार-बार ऐसा किया और हर बार दर्द हुआ मगर अब वह चीख नहीं रहा था बल्कि उसका आनन्द ले रहा था। आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि अगर कुछ करने पर किसी को पीड़ा होती है तो वह अपने आप को वैसा करने से रोकता है। उसका बचाव करता है। पर वह शिष्य तो आनन्द ले रहा था। बड़ी ही अजीब सी बात है यह, क्यूंकि दर्द तो कभी भी किसी को अच्छी नहीं लगती। तो फिर यह क्या हो रहा था…?
वाह …..गुरुजी ….वाह !! पहली बार देखने को मिला कि दर्द से भी कोई आनन्दित होता है। यह एक अनोखी रचना थी गुरु महाराज की। वह कंधे की दर्द और वह जुड़ा हुआ कन्धा –सब का सब वहीं एक मिनट में समाप्त हो गया। —-अविश्वस्नीय
* सेट्टी पर तिनके का होना — एक रहस्य।
* उसी दर्द वाले हाथ के ऊपरी भाग से तिनके को हटाना, –समझ से परे की बात हैं।।
* हलके से एक तिनका हटाने पर इतना दर्द..?
–असम्भव- हो ही नहीं सकती…!!!
* दर्द हो, इस लिए दोबारा वही प्रयत्न करना…?
–फिर असंभव–कोई भी सही दिमाग वाला ऐसा कभी नहीं करेगा। असली बात तो यह है कि छोटे-छोटे भागों में वितरित यह सब कुछ गुरुजी कि कोई रचना थी। पाठक, यदि अध्यात्म की मंजिल पाना चाहता है तो इसे ध्यान से समझे कि…
* गुरुजी का आधी रात को आना
* शिष्य का हाथ पकड़ कर पीछे ले जाकर उसकी गर्दन तक पहुंचाना –
* कंधे पर सुबह को विभूति लगाना –
* तिनके को हटाने के प्रयत्न पर इतनी सारी पीड़ा। —सारी की सारी गुरुजी की ही रचना थी—बस ।
….खैर दर्द और समस्या दोनों हमेशा के लिए समाप्त। …जी गुरुजी,
आप ही आप हो —-