शाम का समय था, सामान्य रुप से स्थान पर लोग आ-जा रहे थे। दूसरे शिष्य जैसे जैन साहब और महाराज किशन सेवा कर रहे थे, जबकि मैं सेवा समाप्त कर, अपने कमरे में आराम कर रहा था।
इसी बीच तिवारी, जो वरिष्ठ प्रबन्धन से सम्बन्धित है, आया और मुझसे कहने लगा कि बाहर कोई व्यक्ति चौकीदार के लिए पूछ रहा है लेकिन वह इसका कारण नहीं बता रहा। मैंने उससे मिलने का सोचा और उससे चौकीदार से मिलने का कारण पूछने के लिए बाहर आया। असल में उन दिनों स्थान पर कोई चौकीदार नहीं था।
उसने कहा कि वह नीलकण्ठ धाम गया था तथा उसने समाधि पर माथा टेका और अपनी इच्छा पूरी करने हेतु प्रार्थना की। अचानक उसने गुरुजी की आवाज़ सुनी, जिसमें उन्होंने उसे पंजाबी बाग स्थान के चौकीदार से सम्पर्क करने का निर्देश दिया और कहा कि तुम्हारा काम वह कर देगा।
मैंने तुरन्त जवाब दिया, “मैं ही यहाँ का चौकीदार हूँ, तुम मुझे अपनी समस्या बता सकते हो।” यह सुनकर वह दंग रह गया और उसने मुझे प्रणाम किया और कहा, “मेरी एक घर खरीदने की इच्छा है जिसके लिए मैंने कुछ धन भी एकत्र किया है लेकिन उसमें दस हज़ार रुपये कम हैं जिसकी व्यवस्था करने में मैं असमर्थ हूँ अतः यह सौदा मेरे हाथ से निकलता दिख रहा है इसलिए मैं नीलकण्ठ धाम चला गया और गुरूजी से सहायता की प्रार्थना की।” मैंने सेवादारों को बुलाया और उन्हें निर्देशित किया कि वे सभी मिलकर पैसे एकत्र करें और जितने कम पड़ें वो मुझसे ले लें। उसका काम हो गया उसने वह घर ले लिया जो वह चाहता था।
सरल और विश्वास पूर्ण हृदय वाले लोगों की कमियों को, जिस साधारणता से गुरुजी दूर करते हैं, देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है।