12 साल का भानू, जो जैन साहब (दिल्ली के डी.एस. जैन) का बेटा है। गुरुजी के शिष्य होने के नाते, जैन साहब अपने साथ अपने बच्चों को, आशीर्वाद और सेवा भक्ति के लिए अक्सर ले जाते थे। साधारणतयाः शिष्यों के बच्चे स्वतन्त्र रुप से गुरुजी के कमरे में चले जाते और गुरजी को दिव्य तरीकों से, आये हुए भक्तजनों की तकलीफों को दूर करते हुए देखा करते थे। बाकी समय में, वे शिष्यों के बच्चों के साथ आनन्द लिया करते थे।
ऐसे ही एक दिन जैन साहब भानू को लेकर गुड़गांव पहुंचे। जब उन्हें दर्शन हुए, गुरुजी भानू को देखने लगे और बोले, “क्या बात है बेटा, परेशान क्यों है। उन्होंने कहा, “…इधर आ और मेरे पास आकर बिस्तर पर बैठ ।” उसने तुरन्त आज्ञा का पालन किया। भानू ने उन्हें अपने पेटदर्द के बारे में बताया।
वे दयालु और उदार रुप में बैठे थे। उन्होंने बड़े प्यार से उसे देखा और कहा, “..चल आज मैं तेरे को तेरे से ही ठीक कराता हूँ।” उन्होंने उससे कहा कि अपना दाहिना हाथ अपने बांये हाथ के साथ एक विशेष स्थिति में रखे। फिर उसे करके दिखाया कि कैसे करना है। उसके बाद बोले, “अब जो पाठ मैंने तुझे दिया है, उसे मन में करना शुरू करो…?” भानू ने मन ही मन में मंत्र कर पाठ करना शुरु कर दिया और दो मिनट से भी कम समय में, वह बिलकुल सामान्य हो गया।
भानू कहने लगा किः — उन्होंने इन्तजार नहीं किया कि उन्हें मैं बताऊँ कि दर्द गायब हो गया है। उन्होंने स्वयं ही कहा, “दर्द अब खत्म हो गया बेटा” मैंने जवाब दिया और कहा “हाँजी, खत्म हो गया है।” तब उन्होंने कहा, “तुमने गुड़गाँव के लिए निकलने से पहले दूध पिया था” मैंने दुबारा “हॉजी” कहा। तब वे बोले, “तुमने उसका रंग बदलने के लिए उसमें कुछ नहीं मिलाया था, तुमने सफेद दूध पिया था” मैंने फिर “हॉजी” कहा।
वे बोले, “बेटा तूने आज के बाद सफेद दूध नहीं पीना। सब लोगों को नहीं पर तेरे को सफेद दूध पीना मना है …और कभी भी दर्द नहीं होगी।” हमने अपने अद्वितीय कुछ घण्टे उनकी उपस्थिति में बिताये
और फिर मेरे माता-पिता ने वापिस घर जाने की आज्ञा माँगी, उन्होंने मुझे बुलाया और कहा, “तू आज यही मेरे बिस्तर पर सो जा मेरे पास, कल सुबह चला जाईओ।”
वास्तव में मैं उस उम्र में स्कूल से छुट्टी लेने से डर गया था क्योंकि मेरे पिताजी इस मामले में बहुत सरत्त थे। मैंने गुरुजी से कहा, “गुरुजी, मैं तो रुक जाऊँगा, लेकिन अगर कल स्कूल नहीं गया तो पापा डाँटेंगे।”
…और गुरुजी ने कहा, अच्छा बेटा तुम उनके साथ वापिस जा सकते हो। उस नासमझ उम्र में मैं इसका अंदाजा नहीं लगा सका कि मेरे पिता गुरुजी के पास रुकने पर मुझे कभी मना नहीं करते और ना ही डाँटते। बल्कि वह तो बहुत रोमांचित होते।
बाद में समझ में आया कि सफेद दूध पर प्रतिबन्ध हर एक पर नहीं लगता। यह सिर्फ मेरे ऊपर ही लगा और फिर मुझे अपने साथ सुलाना, इन दोनों बातों के बीच कोई सीधा सम्बन्ध अवश्य रहा होगा। अन्यथा गुरुजी किसी बच्चे को अपने साथ सुलाऐं, ऐसा कभी सुना नहीं था पहले।
मैं गुरूजी से प्रार्थना करता हूँ, कि वे मुझे हमेशा अपनी गोद में रखें। वे अपनी गोद से कभी नीचे ना उतारें। यही गुरुजी की असीम कृपा है।
…हे गुरुदेव।
कृप्या सभी पर अपने अनुग्रह और आशीर्वादों की बौछार करते रहें।