दिल्ली निवासी तिवारी, अस्सी के दशक से गुरुजी की भक्ति में संलग्न है। औरों की तरह वह भी बड़े गुरुवार की प्रतीक्षा करता तथा लाईन में खड़ा होकर उनके दर्शन करता और अपनी इच्छाएं व्यक्त किया करता था। लोगों की लाईन लम्बी होने के कारण गुरुजी हर एक को मिलते तो थे पर समय थोडा सा ही दे पाते थे। अतः तिवारी अपनी पूरी समस्याऐं कह नहीं पाता था। गुरूजी से मिल चुकने के बाद एक-एक करके याद आती तो पछतावा सा होता था।
एक बार उसने एक कागज़ पर सारी की सारी समास्यायें लिख ली। जैसे ही गुरुजी उसके सामने आये, उसने कागज़ निकालने के लिए हाथ जेब में डाला। गुरुजी फ़ौरन कहने लगे, “रहने दे, मुझे पता है जो कुछ भी तू लिख कर लाया है। इतना कह कर गुरुजी ने कागज़ पर लिखी सारी की सारी बातें सुना दी…!! …और कहा, ये ही लिख कर लाया है ना…? गुरुजी ने शुरु से अंत तक सारा का सारा ऐसे बोल दिया, जैसे स्वयं ही लिखा हो।
तिवारी देखता ही रह गया। बचपन से सुना था कि ईश्वर त्रिकाल दी है– अब मैं पूर्ण विश्वास से ज़ोर देकर कह रहा हूँ….
—गुरुजी, त्रिकाल दी हैं–
अपने सामान्य जीवन में, यह दम्पति अपनी कोई भी समस्या गुरुजी के समक्ष रखते और फिर उनके आदेश का पालन करते थे।
एक रविवार दोनो गुडगाँव पहुंचे। उनके पास एक फ्लैट के कागज़ थे लेकिन गुरुजी ने मनाह कर दिया और कहा, यह ठीक नहीं। तिवारी ने कहा कि दस हजार रुपये पेशगी दिए हुए हैं, अगर इन्कार कर देंगे तो पैसे डूब जायेंगे। गुरुजी ने हल्का सा डॉटा और कहा, “क्या मुझसे पूछा था देने से पहले…?”
कुछ समय बीता और किसी मित्र के कहने पर तिवारी और उसकी पत्नी शशि एक जमीन देखने चले गए। तिवारी तो मान गया पर शशि को जमीन पसंद नहीं आयी। बहस होने पर दोनों गुरुजी के पास पहुंच गए …निर्णय के लिए। गुरुजी ने ‘हाँ’ कर दी और आदेश दिया कि चार दीवारी करके एक कमरा बना दो, स्कूल चलाने के लिए यह जमीन अच्छी है।
गुरुजी, “स्कूल के बारे में तो मैंने कभी सोचा नहीं, क्यूंकि हमें इसका कोई तजुर्बा है ही नहीं।” गुरुजी ने कहा, “तुम नहीं, हम चलायेगे बेटा।” शशि कहने लगी कि गुरुजी इस जगह का नाम है निहाल विहार, जो मुझे बिलकुल पंसद नहीं। गुरुजी मुस्कुराए और कहने लगे कि यही निहाल विहार तुम्हें निहाल कर देगा।”
अतः 100 गज़ का प्लाट ले लिया गया और गुरुजी की आज्ञानुसार चार दिवारी और एक कमरा बना दिया गया। एक छोटा सा बोर्ड, ‘बाल विकास पब्लिक स्कूल’ के नाम से लगा दिया गया। जैसे ही कमरा तैयार हुआ, तीन बच्चे दाखिले के लिए आ गए और स्कूल शुरु हो गया।
इस तरह कुछ समय बीतने पर तिवारी ने गुरुजी से कहा कि बच्चे सिर्फ तीन ही हैं, तो गुरुजी ने कहा कि थोड़ा इंतज़ार करो और देखते जाओ, बहुत बच्चे आ जायेंगे। अब बच्चे आने शुरु हुए तो इतने कि जगह छोटी पड़ गयी। अब बड़ी जगह की ज़रुरत थी। इतने में किसी पड़ौसी ने अपना एक प्लाट साढ़े पांच लाख रुपये में प्रस्तुत किया! लेकिन इतने पैसों का प्रबंध कैसे होगा..? …और फिर पहुंच गये गुरुजी के पास।
गुरुजी ने कहा, “हाँ कर दो, पैसों का प्रबंध हो जाएगा।” कुछ दिन बाद एक मित्र ने दो लाख रुपये भेज दिए और किसी रिश्तेदार ने तीन लाख रुपये दे दिए और इस तरह देखते-देखते प्लाट खरीद लिया गया। कमाल की बात यह थी कि सारा पैसा बिना ब्याज के मिला।
अब बिल्डिंग बनाने के लिए पैसा चाहिए था और तिवारी सोच में डूबा, गुरुजी के पास पहुंचा। गुरुजी ने कहा कि जिस प्रकार पहले किया है, यह प्रबंध भी मैंने ही करना है, तू चिंता क्यूँ कर रहा है…?
तिवारी का एक मित्र बैंक में काम करता था और उसे तिवारी की ज़रुरत का आभास था। उसे पता था कि तिवारी को बिल्डिंग बनाने के लिए धन की आवश्यकता है।
अब एक अनोखी घटना घटी — उसकी ब्राँच का लोन मैनेजर किसी दूसरी बाँच में ट्रॉन्सफर हो गया और उसकी सीट पर तिवारी के मित्र को बिठा दिया गया। लोन मैनेजर की सीट पर बैठते ही उसने फौरन तिवारी को लोन अप्लाई करने के लिए कहा और देखते ही देखते दस लाख रुपये का बैंक लोन मिल गया। बिल्डिंग बननी शुरु हो गयी। उधर बिल्डिंग बन रही थी और इधर तिवारी और शशि एक दूसरे को देखते रहते और आश्चर्यचकित थे कि हो क्या रहा है…! कोई अपना धन दे रहा है और वो भी बिना ब्याज के, तो कोई बैंक का लोन दे रहा है। पैसे पास हैं नहीं, फिर भी ज़मीन भी मिल गयी और बिल्डिंग भी बन रही है…!! —कौन सी अदृश्य शक्ति है, जो इतना सब कुछ करती ही जा रही है और हम दोनों को आभास तक नहीं होने देती…? बड़ा स्कूल बन गया और कमाल का चलने लगा। तीन चार साल के अंदर सारे कर्ज उतर गए और तिवारी और शशि को पता ही नहीं चला।
…याद आया कि गुरुजी ने कहा था, “तुमने क्या करना है, स्कूल हम चलाएंगे।”
….हाँ! यही हो रहा है आज तक…!
तिवारी और शशि ऑफिस में बैठते हैं, बहुत थोड़ा सा काम करते हैं और स्कूल बाखूबी-कामयाबी के साथ चल रहा है।
स्वर्ण अक्षरों में लिखी-पढ़ी —और स्मरण करने वाली बात यह है कि जो-जो गुरुजी ने कहा था, वैसा-वैसा होता गया और आज भी हो रहा है….
—हे भविष्य के ज्ञाता, मेरे भगवन् ! –मेरे गुरुदेव, कृपा कीजिये
–कृपा कीजिये
प्रणाम साहिब जी–