रविवार का दिन था, मैं हमेशा की तरह सुबह पंजाबी बाग कल्ब से टेनिस खेलकर घर लौट रहा था। अचानक मेरे दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न मैं घर जाने से पहले गुरुजी के दर्शन कर आऊँ ? और मैं गुड़गाँव चला गया। जब मैं गुड़गाँव पहुंचा तो उस समय गुरुजी चारपाई पर बैठे हुए थे। उनके सामने नीचे, एक वृद्ध महिला बैठी प्रार्थना कर रही थी- ”गुरुजी, मैं आपके पास बहुत आस ले कर आई हूँ। किसी ने मुझे बताया है कि मेरी बाजु का भयंकर दर्द सिर्फ आप ही दूर कर सकते हैं। ये दर्द मुझे पिछले छः साल से है। मैं साल में 365 दिन दवाई खाती हूँ। लेकिन सब व्यर्थ…”
उसी समय, मैं भी गुरुजी के पास पहुंचा और उनके पवित्र चरण स्पर्श किये। उन्होंने कृपापूर्वक अपनी लुभावनी मनमोहक मुस्कान के साथ मुझे आशीर्वाद दिया और फिर वापिस उस वृद्ध महिला की तरफ घूमकर उससे पंजाबी भाषा में बोले :
”लै ऐ ते मेरा शिष्य वी ठीक कर सकदा ऐ ”
(ये तो मेरा शिष्य भी ठीक कर सकता है)
और उन्होंने मुझे आदेश दिया :
”राज्जे, ऐदी दर्द ठीक कर दे।” (राज्जे, इसका दर्द ठीक कर दे।)
मेरी धड़कनें तो जैसे, रुक ही गई। मैं गुरुजी की तरफ अचरज भरी नजरों से देखने लगा। मैं उनके पास गया और धीरे से उनके कान में बोला-”गुरुजी, भला मैं ये कैसे कर सकता हूँ? मैं नहीं जानता कि ये कैसे होगा?” गुरुजी ने धीरे से मेरे कान में कहा ”उसकी बाजु को अपने दा. हिने हाथ से पकड़ो और नीचे तक खींच दो।” घबराहट में संकुचाते हुए मैंने उस महिला के कंधे को छुआ और अपना हाथ उसके कंधे से सरकाता हुआ उस वृद्ध महिला के हाथ तक नीचे खींच लाया।
आफरीन……!!
ये तो चमत्कार हो गया!!
वह महिला तो ठीक हो गई। वह रोना भूलकर मुस्कुराने लगी। उसके पास अपनी खुः शी को जाहिर करने के लिए शब्द ही नहीं थे। उसने कहा-”पिछले 6 सालों में आज पहली बार, मैं अपने आप को दर्द से मुक्त पा रही हूँ और वह भी बिना किसी दवाई के।”
”गुरुजी आपका भला हो……!!”
इसके बाद उसने फिर गुरुजी से मिन्नत भरे शब्दों में प्रार्थना की ‘गुरुजी, मैं अपना हाथ ऊपर नहीं उठा सकती, गुरुजी इसे भी ठीक कर दो ना!!”
इस बार गुरुजी ने फिर मुझे आदेश दिया ‘‘राज्जे, इसका हाथ ऊपर उठा दे।” मैं दुबारा गुरुजी के पास गया और धीरे से उनके कान के पास फुसफुसा कर बोला “गुरुजी अगर मैंने इसके कंधे पर जोर लगाया तो वह टूट जायेगा क्योंकि वह तो पिछले 6 सालों से जाम है।” गुरुजी बोले ”राज्जे घबरा नहीं…., मैंने तो इसे पहले ही खोल दिया है। तू बस जा और उठा दे”।
दुबारा फिर चमत्कार हुआ, वह महिला तो खुः शी से मानों पागल सी ही हो गई।
गुरुजी बोले “माई, अपनी बाजु को दायें बायें घुमा के देख, मेरे शिष्य ने तेरी बीमारी को दूर कर दिया है।”
वह बस यही कहे जा रही थी. ”आपका भला हो गुरुजी….!!”
और फिर वह रोने लगी। लेकिन इस बार उसकी आँखों में विश्वास और खुः शी के आँसू थे।
इस तरह की और कई घटनाएं भी, मैंने उनके साथ महीनों ही क्या, सालों तक रहकर देखी। गुरुजी इन्सान, भगवान
और प्रकृति को अपने वश में रखते नजर आए। उनके इस रुप ने मेरे जीवन की दिशा ही जैसे बदल दी।
मेरी पत्नी गुलशन और मेरी चारों बेटियाँ भी मेरे साथ इस राह पर चलने लगीं। सत्तर के दशक में मेरा और मेरे परिवार के जीवन में एक नया अध्याय शुरु हुआ। मेरी पत्नी
और बेटियाँ, मुझसे भी ज्यादा गुरुजी पर विश्वास और उनसे प्यार करने लगी। अगर कभी मैं गुस्से में भी उन्हें कुछ कह देता तो उल्टा धमकी देकर मुझसे कहती, ”हम आपकी शिकायत गुरुजी से कर देंगे, क्या सुः खद जीवन था।”
अब मेरा परिवार, गुरूजी की छत्र-छाया में पूरी तरह से सुरक्षित हो गया और आने वाले कल में किसी भी डर का कोई स्थान नहीं रहा।
वो पंजाबी में कहते हैं ना
“हुण तां, टुण्ड्डे लाट दी वी, परवाह नहीं।”
ठीक इसी तरह का प्यार हमें पूज्य माता जी से मिला। जिन्हें मैं मातारानी जी के नाम से भी बुलाता हूँ। गुरुजी के अपने बच्चे— रेनू, बब्बा, इला, नीटू और छुटकी भी हमसे बहुत प्यार करते और सम्मान देते हैं। पूरा संसार ही जैसे बदल गया हो।
अब हमारे जीवन में कैसी भी समस्या हो, “उसका समाधान गुरूजी के पास था।” हमारी जिंदगी से हर तरह का डर और कष्ट दूर हो गये।