एक बार मैंने अपनी धर्मपत्नी के भाई दीप के साथ गुरुजी के दर्शन करने के लिए उनके ऑफिस कर्ज़न रोड़ पहुंचा। वहाँ पहुँच कर देखा कि गुरुजी अपने शिष्यों के साथ सड़क पर ही खड़े है। हम सब गुरुजी की तरफ बढ़ने लगे।
उन्होंने भी हमें देख लिया और सीताराम जी से बोले– ”देख वे जो दो लोग आ रहे हैं, उनमें से एक तुम्हारा भाई है। पहचान सकते हो?” सीताराम जी ने दीप की तरफ इशारा करते हुए उसे पहचाना तो गुरुजी ने कहा, ”नहीं दूसरा ।” गुरुजी ने मेरी तरफ इशारा कर दिया।
इस पर सीताराम जी बोले, ”गुरुजी, वो अप-टू-डेट आदमी मेरा भाई (फ़कीर) कैसे हो सकता है….! देखिये तो सही उसने कैसा सुन्दर सूट पहना है, टाई लगाई है और उसके जूते तो देखिये….!!”
इस पर गुरुजी बोले — ”तुमने सिर्फ ऊपर से इसका सूट ही देखा है, लेकिन इसकी कमीज के नीचे छुपी हुई, बनियान को नहीं देखा, वह कितनी छलनी है…?”
मतलब– उन्होंने बाहर और अन्दर से देखा, तो भिन्न पाया और कहा— ”तुम्हारा भाई तुम सब की तरह अन्दर से ‘फ़कीर’ ही है।”
देखा…., कितनी सच्चाई और पारदर्शिता थी, उनके देखने में। वे एक बार किसी व्यक्ति को देख भर लेते, तो उसके व्यक्तित्व के बारे में और उसके भविष्य के बारे में सब कुछ जान लेते थे। उससे उनका क्या रिश्ता है, ये कोई आम इन्सान जान ही नहीं सकता।
यह सुनने में एक साधारण सी बात लगती ज़रुर है, लेकिन है नहीं। इसमें बहुत गहराई छुपी हुई है। इसलिए रुको और इस सच्चाई तक पहुंचने का प्रयास करो कि वे कौन हो सकते हैं, जो इस तरह से कह सकते हैं..? जैसा कि गुरुजी ने कहा।
….सिर्फ और ..सिर्फ गुरूजी !!