नई दिल्ली के मायापुरी इलाके में मेरी एक स्टेनलेस स्टील के सिंक बनाने की फैक्ट्री है।
यह उस समय की बात है, जब हम सिंक के लिये, टब (Tub) तथा ड्रेनेज बोर्ड (Drainage Board), अलग-अलग स्टील की दो शीटों से बनाते थे तथा बाद में उन्हें जोड़ते थे। इस तरह के सिंक को ड्रेनेज बोर्ड-सिंक कहते हैं। टब में बरतन धुलते हैं और बोर्ड पर रखे जाते हैं, सूखाने के लिए।
मैंने सुना कि सिंगापुर में एक स्टेनलेस स्टील सिंक फैक्ट्री है, जो एक ही शीट में से उपरोक्त दोनों चीजें एक साथ बनाती है। मैं यह तकनीक जानने के लिये बहुत उत्सुक हो गया। यदि यह तकनीक मैं विकसित कर लेता हूँ तो हमारी फैक्ट्री का उत्पादन दुगना हो सकता है।
मैंने अपनी फैक्ट्री के जनरल मैनेजर को मेरे लिये सिंगापुर की उस फैक्ट्री को देखने की व्यवस्था करने का आदेश दिया। उसने कुछ हफ्तों के पत्राचार के बाद आखिर मेरा यह व्यवसायिक विदेश-यात्रा (Tour) का कार्यक्रम तय करा दिया।
सब कार्यक्रम अपने तय तरीके से होना था—-
सिंगापुर पहुंचने पर वहाँ की फैक्ट्री के किसी ऑफिसर को मुझे लेने एअरपोर्ट आना था और वहाँ से उस होटल तक ले जाना था, जहाँ मेरे लिए ठहरने की व्यवस्था की गई थी।
ऑफिसर को मुझे लेने दुबारा होटल आना था ताकि वहाँ से मुझे आदर सहित अपनी फैक्ट्री ले जाया जा सके तथा व्यापार सम्बन्धित बातचीत हो सके।
तद-उपरान्त, अपनी टीम के साथ मुझे उस स्थान पर ले जाना था जहाँ उस स्टील सिंक का उत्पादन होता था तथा मुझे वह डाई भी दिखाई जानी थी ताकि मैं उसके डिज़ाईन को भी अच्छी तरह से समझ सकू।
इस तरह से मेरा काम पूरा होता और मैं अपनी यात्रा समाप्त कर, वापिस आ जाता।
अतः यात्रा से पहले मैं गुड़गाँव, गुरूजी के पास आशीर्वाद लेने पहुँचा। मैंने गुरुजी को प्रणाम किया तो गुरुजी बोले—-
“तो अब मेरा शिष्य धोखा देने जा रहा है अपने बच्चों को…… ”
मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने गुरुजी से पूछा, “कौन
सा धोखा गुरुजी……?” मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे किसी को कोई नुकसान हो और न ही मैं कभी ऐसा करूंगा ही…..
गुरुजी ने कहा—
“यह धोखा ही है बेटा, तुम सिंगापुर जा रहे हो हज़ारों सिंक के खरीदार बन कर लेकिन तुम जानते हो कि तुमने सिंक नहीं खरीदने..। इसका मतलब तुम उनकी बिजनेस की उम्मीदों को नष्ट करने जा रहे हो। वे नहीं जानते कि तुम किस उद्देश्य से उनके पास आ रहे हो। वे यह भी नहीं जानते कि तुम अन्दर से क्या चाहते हो। इसलिये यह धोखा ही है।”
मैं बोला, “मैं समझ गया गुरुजी। लेकिन गुरूजी वे मेरे बच्चे कैसे हो गये?”
गुरुजी बोले—-
“जब हम विदेशों के लिये विमान से उड़ान भरते हैं तो वह विमान धरती के जिस-जिस हिस्से के ऊपर से, होकर निकलता है, वह हिस्सा मेरे परिवार में शामिल होता जाता है। इस लिये वह परिवार भी तुम्हारे बच्चों में शामिल हो गया है।” गुरुजी, मेरा आपको कोटि-कोटि प्रणाम है।
आपको सम्पूण [ ज्ञान है, आपके समझाने की शक्ति ‘सर्वोच्च’ है। मेरा ये सौभाग्य है कि मुझे आपका शिष्य होने का अवसर मिला। मैं तो ऐसा, स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था। अतः मैंने अपना सिंगापुर की विदेश-यात्रा (Tour) का कार्यक्रम रद्द कर दिया।
मैंने गुरुजी से फिर पूछा, “गुरुजी, मुझे उस डाई का डिज़ाईन कैसे मिलेगा…? गुरुजी बोले— “मैं बताऊंगा तुम्हें…”
करीब तीन हफ्ते बीत गये। एक दिन मैं स्थान के साथ वाले छोटे कमरे में आराम करने के लिये लेटा हुआ था कि मेरी आँख लग गई और मैं सो गया। स्वप्न में मुझे डाई का एक डिजाईन दिखा, तुरन्त उठकर, मैंने उसे कागज के टुकड़े पर उतार लिया।
अगले दिन मैंने अपने फोरमैन रतन सिंह, जिसकी आयु लगभग सत्तर वर्ष से ऊपर होगी और उसे डाई बनाने का भरपूर ज्ञान था, बुलाया और कहा कि वह इस डिज़ाइन की डाई बनाना शुरु करे। उसने तभी जवाब दिया कि डिज़ाईन ठीक नहीं है। मैंने उससे कहा कि मैंने इसी डिजाईन की डाई बनाने का निर्णय लिया है अतः वह इसे बनाने का काम शुरु करे। वह फिर बोला इसमे बहुत अधिक पैसा लगने की सम्भावना है अतः आप इस तरह का जोखिम न लें। मैंने उससे कहा, “यह मेरा आखिरी फैसला है और मैं यह जोखिम उठाने के लिए तैयार हूँ। बस तुम आदेश का पालन करो।”
इस काम में करीब छ: से आठ महीने का समय लग गया और मेरे सामने हू-ब-हू वैसी ही डाई तैयार थी जैसी मैंने अपने स्वप्न में देखी थी।
हमने वह डाई, मशीन पर परीक्षण के लिये लगाई और अपनी सांसें रोककर प्रेसमेन को आदेश दिया कि वह उसे चलाये।
ओह———
अभियान सफल हुआ।—–
भारत में पहली बार, एक शीट से सिंक का टब तथा ड्रेनेज बोर्ड (Drainage Board) बन कर तैयार था।
गुरूजी ने एक बार मुझे कहा था—- “डिजाईन तुम्हें मैं दूंगा” और
उन्होंने वह कर दिया।
ऐसे इंजीनियर हैं मेरे गुरूजी…!!, सिर्फ और सिर्फ गुरुजी…।।
प्रणाम गुरुजी……, गुरुजी,
मुझे अपनी कृपा का दान दो ।।