अविश्वसनीय झलकियाँ (Un-believable Glimpses) गुरुजी की स्तुति का गायन है, कोई पुस्तक नहीं है ये.. .
किसी भी भाग में कथित कोई भी घटना गुरुजी की आभा और उनके ईश्वर होने को दर्शाती है। कोई ऐसा कार्य जो सिर्फ भगवान ही कर सकते हैं, कोई मानव नहीं। ऐसा कार्य गुरुजी चुटिकियों में कर दें और बदले में कुछ भी नहीं लें तो अपनी बुद्धि के अनुसार क्या समझें…? कौन हैं गुरुजी….? क्योंकि वह सब कार्य, चाहे कोई बीमरी हो या कोई अन्य समस्या। संसारी या फिर मानसिक, सब एक इशारे से कर देते है।
यह सब जानकारी गुरुजी की इन पुस्तकों में उपलब्ध हैं, जिन्हें जानने के बाद एक नया सा विश्वास उत्पन्न होगा पढ़ने वाले की अन्तरात्मा में और विश्वास का होना, बहुत आवश्यक है। एक ऐसी भावना अंतरतल में जागृत होगी कि “अब कोई डर नही, गुरूजी हैं …मेरी रक्षा के लिए।” जो कभी ना तो सुना या कभी सोचा, वह गुरुजी चुटकियों में कर देते हैं। बड़े ही सहज भाव से कह देते हैं कि “…जा बेटा मैंने तेरा काम कर दिया है।”
इसलिए इन पुस्तकों की श्रृंखला नई पीढ़ी के लिए वरदान है। गुरुजी की कृपा के आधीन, संसार के दुखों से बचकर और फिर सुखों से पूर्ण तृप्त होकर, अवश्य ही एक इच्छा उत्पन्न होगी कि ईश्वर कौन है और कहाँ है। उसके उपरान्त “ईश्वर की प्राप्ति की इच्छा का जन्म होगा।”
अब गुरू की आवश्यकता अवश्यम्भावी है, क्योंकि अब यात्रा आत्मा की है अकेले शरीर की नहीं और इस यात्रा का दारोम्दार सिर्फ गुरु पर निर्भर होता है। कोई अकेले इस यात्रा पथ पर पैर तो रख सकता है लेकिन चार कदम चल नहीं सकता, यह नामुमकिन है। गुरु के बिना यह संभव नहीं। गुरु की कृपा से एक आध्यात्मिक समझ पैदा होगी जो भक्ति के मार्ग में ईश्वर तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ी का काम करेगी और वह है “जो कुछ भी मैंने किया है उसका दायित्व ईश्वर पर है, मुझ पर नहीं” “कर्ता” मैं नहीं, सिर्फ ईश्वर है। यह समझ गुरुकृपा से ही आ सकती है और कोई रास्ता नहीं। गुरू कृपा का पात्र बनने के लिए गुरू के पास बार-बार जाना और उनकी सेवा करना एक मात्र रास्ता है।
पुस्तक का यह भाग आपकी सहायता करे, ऐसी मेरी भावना है और गुरुजी से प्रार्थना है।
कमाल की बात तो यह है कि पूर्णरुप से एक गृहस्थी जैसे दिखने वाले और संसारी लोगों की तरह ऑफिस में काम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले गुरुजी, संसार से पूर्णतया भिन्न थे। जब भी देखा, वे लोगों की बीमारियाँ दूर करते नज़र आते थे। क्या सुबह और क्या शाम। बल्कि रात तक लोगों में घिरे रहते और हर एक का कष्ट दूर करते रहते थे। कोई भी दुखी पूर्ण अपनेपन के भाव से उनके पास आता और सन्तुष्ट होकर वापिस जाता। सबको यही कहते कि अब दवाई लेने की आवश्यकता नहीं, वे अपने आप ठीक कर देंगे और ऐसा ही होता रहा लगातार….
परिवार में दो पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ अपनी अपनी पढ़ाई में संलग्न थे और अपने प्रति पिता के स्नेह और परवरिश से पूर्णरुप से संतुष्ट नज़र आते थे। सुबह से रात तक लोगों में घिरे रहने वाले गुरुदेव, इन बच्चों से कब मिलते थे, इसका ज्ञान लेखक के पास तो है नहीं।
यह सिलसिला लगातार बीस साल तक चलता रहा। लोग उमड़-उमड़ कर ऐसे चले आते जैसे कि उनका पूर्ण अधिकार हो गुरूजी पर और गुरुजी भी ऐसे मिलते थे जैसे कि उनका इन्तज़ार कर रहे हों। इस युग में ऐसा कहीं और देखने को नहीं मिला। …धन्य हैं गुरुजी आप ।
याद करके एक अछूते आनन्द की अनुभूति हो रही है। कितने ऊंचे भाग्य हैं हमारे कि हमने इस युग में जन्म लिया जिसमें गुरूजी ने अवतार लिया। बहुत भाग्यवान हैं हम सब और आप ।
हो सकता है कि बहुत लोगों ने उनके शारीरिक दर्शन न किये हों मगर जिसने यह सौभाग्य प्राप्त किया, उसी की लेखनी से जितना बन पड़ा, आप तक पहुंचाने का प्रयास है। आशा करता हूँ कि आप भी इस आनन्द सागर में शामिल होंगे और इस शानदार दिव्य आनन्द का अनुभव करेंगे जो शायद आपके इस जीवन में लगभग अनुपलभ्य है।
आईये — इस आनन्द के सागर में उतरें ……और डूब कर सफर करें…….।।
राज्जे, गुरू शिष्य,
(राजपॉल सेख़री)
1 जनवरी, 2012
…आइए, अब चतुर्थ भाग का आनन्द लीजिए…