सन् 2010 की बात है कि दो महीने अमेरिका रहने के बाद जब मैं वापिस आया तो उस समय महाशिवरात्रि का समय नज़दीक था। सभी लोग इसी इंतजार में थे कि कब महाशिव अपनी समाधि से उठें और गुरुजी से सभी को आशीर्वाद मिले, जिसका हम लोग भी इंतज़ार कर रहे थे।
मैं परम सुः ख का आनन्द ले रहा था कि तभी गुरुजी ने मेरे दिमाग में एक विचार डाला। जिसका मैं बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था। आज गुरुजी ने मुझे आदेश दिया कि मैं अपने गुरुजी के साथ बिताये गये परम सुः ख के अनमोल पलों के बारे में, एक पुस्तक लिखू । (गुरुजी अपने शिष्यों को आध्यात्मिक रुप से अपनी बात कह देते हैं)
गुरुजी हमेशा से ही हममें से किसी एक को चुनते हैं और उसे सेवा का मौका देते आये हैं। वे हमें सिखाते हैं कि जीवन कैसे जीया जाता है। वे हमें शारीरिक, मानसिक और संसारिक समस्याओं से दूर रख कर जीना सिखाते हैं। हम उनके भय मुक्त बच्चे हैं क्योंकि उन्होंने हमें विश्वास करना सिखाया है।
गुरुजी, लाखों लोगों की जिन्दगी में आये और आगे भी आते रहेंगे जिन्हें वे चाहते हैं। वे हमेशा उन्हें भय-मुक्त करते रहेंगे। ऐसा जिनके साथ हुआ, उनमे से एक मैं भी हूँ। उन्होंने मुझे अपना शिष्य बनाया और वह सब कुछ सिखाया, जो वे मुझे सिखाना चाहते थे। मुझे वैसा बनाया जैसा वे बनाना चाहते थे।
मैंने इस पुस्तक में अपने अनुभव जो मैंने पहले दिन से लेकर आज तक महसूस किये, लिखने की कोशिश की है और ऐसा उन्हीं की कृपा से ही सम्भव हो सका है।
गुरूजी के पास जो लोग आते, उन्हें वे आशीर्वाद देते और जो कुछ भी वे गुरुजी से माँगते गुरुजी उन्हें दे देते। गुरुजी अपने अनुयाईयों को एक ताँबे का कड़ा, जिसमें चाँदी का टाँका लगा होता है, देते थे। ताँबा, शिव और चाँदी, माँ पार्वती के प्रतीक होते हैं। दोनों मिलकर शिव-परिवार बनाते हैं। गुरुजी यह कड़ा अपने माथे से लगा कर पुरुषों के दायें हाथ में और स्त्रियों के बायें हाथ में पहनाते थे और इस तरह हम भी शिव परिवार के सदस्य बन जाते हैं तथा हम, भगवान की सुरक्षा में आ जाते हैं। गुरुजी या उनके शिष्य हमें जल, लौंग, इलायची और काली मिर्च देते और उनको किस तरह से प्रयोग करना है, बताते हैं।
एक बार जब लोग उनके बताये हुए रास्ते पर चल पड़ते हैं, तो उनकी जिन्दगी बड़ी आसान हो जाती हैं। वे आत्म-विश्वास से भर जाते हैं और जिन्दगी में वे जो कुछ पाना चाहते हैं, वे आसानी से पा लेते हैं।
प्रस्तुत हैं, कुछ ऐसी ही उपकथाएं (ऐपीसोडस) उन लोगों की, जो गुरुजी के पास आये और उनकी संम्पूर्ण जीवन शैली ही बदल गई।
गुरुशिष्य,
राज्जे, (राजपाल सेखरी)
18 अप्रैल, 2010