सत्तर के दशक की बात है, एक दिन सुबह-सुबह श्रीमति शीला चौधरी, जो मेरे ससुराल के पड़ोस में रहती थी, आयी और कहने लगी। ”मेरे गुरुजी के हाथ में ॐ है’ और वो आपकी पत्नी श्रीमति गुलशन को ठीक कर सकते हैं। तभी मेरी पत्नी गुलशन को लेकर श्रीमति शीला के साथ, मैं और मेरी पत्नी का भाई कर्जन रोड़ पर स्थित गुरुजी के ऑफिस पहुंचे। वहाँ पहुँच कर उसने हमे रुकने के लिए कहा और स्वयं गुरजी को लेने अन्दर चली गयी। परन्तु ये क्या…?
थोड़ी देर के बाद वह एक बहुत खूबसूरत नौजवान, जिन्होंने हल्के नारंगी रंग का स्वेटर पहना हुआ था और उसके बाजुओं को मोड़ रखा था तथा शानदार जूते भी पहने हुए थे, के साथ बाहर आयी। मैं सोचने लगा कि ये गई तो थी गुरूजी को लेने, परन्तु ये किसके साथ वापिस आई है क्योंकि वे देखने में तो साधु नहीं, साधारण व्यक्ति लगते थे। उसने हमें उनसे मिलवाया और कहा : ”ये ‘गुरुजी’ हैं।” मैं अचम्भित रह गया…… मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा था कि ये ही गुरुजी हैं जो ‘सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के मालिक हैं।’
खैर…….. मैंने उन्हें नमस्ते की तो उन्होंने मुझसे पूछा ”क्या बात है?” मैंने कहा ”सामने कार में मेरी धर्मपत्नी हैं। वह कुछ दिनों से लगभग कोमा की सी स्थिति में है और पिछले कुछ सालों से बीमार चल रही हैं। इन्हें क्या बीमारी है, यह अब तक किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है।” गुरुजी बोले”मैं इसे इस दौरे’ से वापिस ले आऊँगा। लेकिन पूरी तरह से यह अगले कुछ महीनों में आने वाली शिवरात्रि के बाद ठीक होगी।” ऐसा कह कर वे हमें नजदीक के एक घर में जो उनके शिष्य शिवदयाल जी का था, वहाँ ले गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने मेरी धर्मपत्नी को एक कुर्सी पर बिठाया और एक गिलास में पानी लेकर मेरी पत्नी की आँखों में जल के छीटे मार दिये। जैसे ही गुरुजी ने यह सब किया, कुछ ही देर में मेरी धर्मपत्नी बिलकुल ठीक हो गई। मैं विस्मित रह गया……!!
- ये कैसे हो गया… ?
- वह एकदम अपने होश में वापिस कैसे लौट आईं……!!
वास्तव में यही मेरी जिन्दगी का पहला दिन था जिस दिन मुझे गुरुजी का पहला आशीर्वाद मिला।