गुरुजी के एक बहुत पिय शिष्य से सम्बन्धित यह उपकथा (Episode) वर्णित है। गुरुजी ने उसके घर में स्थान बनाया है और बड़े वीरवार को छोड़कर, बाकी दिन सेवा करने का आशीर्वाद और आदेश दिया है। (बड़े वीरवार के दिन वह सारा दिन गुड़गाँव स्थान पर होते हैं।) वह गुरुजी के आदेशानुसार, वहाँ सेवा कर रहे हैं। उनके यहाँ बहुत से लोग आशीर्वाद लेने आते हैं और ठीक होकर जाते हैं। एक बार वह शिष्य गले व गर्दन की किसी समस्या की वजह से बीमार पड़ गये। वह कुछ भी निगल नहीं सकते थे।
अतः गुरूजी ने उन्हें कुछ दिन गुड़गाँव स्थान पर रहने का आदेश दिया।
मैंने और अन्य शिष्यों ने गुरुजी को अपने हाथ से उसे जल पिलाते हुए कुछ दिनों तक देखा। परन्तु किसी को भी गुरुजी ने उस रोग का नाम नहीं बताया। गुरुजी उसके मुँह में जल डालते और उसे पीने का आदेश देते थे।
लेकिन वह उसे अन्दर तक नहीं ले जा पाते थे क्योंकि गला अन्दर से पूर्णतयाः बन्द था। तब गुरुजी अपना बाँया हाथ उसकी गर्दन के पीछे और दायें हाथ से उसके गले को पकड़ कर, उस पर हल्के दबाव के साथ कोमलता से नीचे की तरफ सरकाते हुए कोमलता से उसे आदेश देते कि वह अपने मुँह में रखा जल पी ले।
उस शिष्य के लिये यह एक मुश्किल कार्य था लेकिन फिर भी उसे पीने की कोशिश करते और धीरे-धीरे पी लेते हालाँकि इसमें कई मिनट लग जाते थे। इसी तरह से गुरुजी रोज़ उन्हें जल पिलाते रहे और उनके गले की सूज़न कुछ ही दिनों में चली गई और वह पूर्णतयाः ठीक हो गये।
यह एक बहुत बड़ा चमत्कार था जो गुरुजी ने किया। उक्त प्रदर्शन यह प्रमाणित करता है कि, भगवान शिव और गुरुजी के बीच सीधा सम्बन्ध है या फिर दोनो एक ही हैं।
प्रणाम गुरुजी, आपको प्रणाम है।