गुरुजी हमें समय-समय पर अक्सर तीर्थ यात्राओं पर लेकर जाते रहते थे। कई बार हमें, अपने परिवार को भी साथ ले जाने की आज्ञा मिल जाती थी। इस बार वे हमें बद्रीनाथ, केदारनाथ और ऋषिकेश आदि की, यात्रा पर ले गये। जब हम सब करीब 25 लोग, केदारनाथजी की लगभग नौ या दस किलोमीटर की लम्बी पैदल चढाई कर चुके तो बहुत थक गये और अभी करीब तीन या चार किलोमीटर की चढ़ाई शेष बची थी तथा ये चढ़ाई भी बहुत ही कठिन थी। हम ऐसी चढ़ाई के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे। हम अपने आप को असहज सा महसूस कर रहे थे। इतनी ऊंचाई पर हमें आक्सीजन की कमी की वजह से साँस लेने में भी दिक्कत महसूस हो रही थी। सिर में भी बहुत तेज दर्द हो रहा था। गुरुजी हमारे पीछे-पीछे आ रहे थे। लेकिन वे बिलकुल भी थके हुए नहीं लग रहे थे। वे एक दम तरोताजा प्रतीत हो रहे थे।
गुरुजी ने, एक पैकट केसर का निकाला, उसे गर्म पानी में मिलाया और हम सबको आधा-आधा गिलास पीने को दिया। जैसे ही हमने वह जल पीया, तभी हमें कुछ घबराहट महसूस हुई और हमें उल्टी आ गई। जितना जल हमने पीया था, उससे कहीं अधिक मात्रा में पानी बाहर आ गया।
मैं हैरान हो गया….!! मुझे एकदम आराम आ गया। मैंने गुरुजी से पूछा— “गुरुजी…, आप तो अधिकतर हमें निम्बू चूसने के लिए देते हैं या फिर पानी में डालकर पिला देते हैं।”
गुरुजी बोले— “पुत, निम्बू समुद्र तल से सिर्फ 9000 फीट की ऊंचाई तक ही काम करता है, 9000 फीट से ऊपर की ऊंचाई पर केवल केसर ही काम करता है।”
ये पहले हममें से कोई भी नहीं जानता था। हम पूरी रात उम्मीद से भी कहीं ज्यादा आराम से सोये। जब हम वहाँ से वापिस आ रहे थे, तब गुरुजी अपनी ‘फिएट’ कार चला रहे थे। मैं उनके साथ वाली बाँयी सीट पर था और मेरे दो गुरू भाई पिछली सीट पर बैठे थे।
गुरुजी ने मेरी तरफ देखा और बड़ी सहजता से बोले— ”उस्ताद…., ब्रेक फेल हो गये हैं।” मै भी चौकन्ना हो गया और बोला— “गुरुजी, गाड़ी गियर में डाल दो” वे बोले—- ”पूत, गियर भी ‘फ्री’ हो गये हैं।” मै बोला—- ”गुरुजी, अपनी दाहिनी तरफ गाड़ी को पहाड़ की तरफ टकराओ” मैंने सोचा, इससे कार तो टूटेगी, लेकिन हमारे पास इसे रोकने का और कोई दूसरा चारा भी नहीं हैं। क्योंकि रोड की दूसरी तरफ 40-50 फुट गहरी खाई है और उसमें एक नदी बह रही है।
इसके आगे, मैं और कुछ न कह सका और हम सब अपनी साँस रोक कर बैठ गये। गुरुजी भी, किसी बात का जवाब नहीं दे रहे थे। हमारा दिमाग भी शून्य हो गया था।
अचानक कार की स्पीड़ कम हो गई। जबकि जिस ढलान पर कार चल रही थी, वहाँ पर बिना ब्रेक के इस्तेमाल के स्पीड़ कम होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। लेकिन फिर भी कार बड़े आराम से और सुरक्षित रुप से रुक गई। जैसे किसी ने पीछे से पकड़ कर खींच लिया हो। गुरुजी बिलकुल शांत बैठे रहे। उनके चेहरे पर इस घटना की कोई भी शिकन तक नहीं थी। अब मैं भी भय मुक्त था। हमने गाड़ी से नीचे उतर कर देखा तो आश्चर्यचकित रह गये….!! कार की बांई तरफ का पिछला पहिया एक्सल समेत बाहर आ गया था, परन्तु वह कार से अलग नहीं हुआ था।
लेकिन उसने कार को नदी की तरफ मुड़ने से रोक दिया था।
मैं सीताराम जी को और वे मुझे, बस देखे जा रहे थे।
हम दोनों, कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे और गुरुजी की तरफ श्रद्धा भाव से देखे जा रहे थे।