गुरूजी अपने कुछ शिष्यों के साथ, ईस्ट पटेल नगर की सड़क के किनारे खड़े होकर उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दे रहे थे। वह रात का समय था। मेरे ‘सुपर मॉस्टर’ गुरूजी का यही तरीका था। वे अक्सर इसी तरह अपने शिष्यों पर अपने आशीर्वादों की वर्षा करते थे। बिलकुल सड़क के किनारे खड़े होने के कारण वातावरण में वाहनों का शोर बहुत अधिक था और ये भी ज़रूरी था कि सबका ध्यान गुरूजी पर और उनके द्वारा दिये जा रहे ज्ञान की तरफ केन्द्रित होना चाहिए था।
साधारणतयाः गुरू लोग, ऐसे कार्य के लिए किसी शांत वातावरण का चुनाव करते हैं ताकि आध्यात्मिक ज्ञान में किसी प्रकार का अवरोध न आये। लेकिन गुरुजी यह कार्य अपने हिसाब से करते थे। वे शोर तथा भीड़ भरे माहौल में भी पूर्ण एकाग्रता चाहते थे। गुरुजी को जानना और समझ पाना हमारी समझ से परे है।
जब वे अपना काम कर चुके तो मैंने उनसे अपने लिए अगले दिन चंडीगढ़ जाने की इजाजत मांगी जो उन्होंने खुः शी-खुः शी दे दी। परन्तु मैं उनके द्वारा कही गई तुरन्त ‘हाँ’ से सन्तुष्ट नहीं था।
मैंने फिर कहा, “गुरुजी, आपने पूछा ही नहीं कि मैं क्यों जा रहा हूँ…?”
गुरुजी ने कहा, “हाँ बेटा, मैं जानता हूँ कि तू हरियाणा से फैक्ट्री स्थानांत्रित (Shift) कराने की इजाजत (Permission) लेने के लिए चंडीगढ़ जा रहा है।
मैंने पूछा, “गुरूजी, …..काम हो जायेगा?”
गुरुजी बोले, “नहीं बेटा” मैंने कहा, “…तो फिर मैं नहीं जाता।”
गुरुजी ने कहा, “……जाना है बेटा और इसके बाद भी दो बार और जाना है।”
और फिर ऐसा ही हुआ जैसा गुरूजी ने कहा था। मैं तीन बार चंडीगढ़ गया। आखिर तीसरी बार हरियाणा सरकार ने मुझे स्वीकृति पत्र दे दिया ताकि मैं अपनी फैक्ट्री को हरियाणा से दिल्ली स्थानांत्रित (Shift) कर सकू।
जब डिस्ट्रीक्ट इन्डस्ट्रीज ऑफिसर ने मुझे वह स्वीकृति-पत्र दिया, उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह बोला, “मैं अपनी ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ कि किसी राज्य सरकार ने अपने राज्य से दूसरे राज्य में, किसी उद्योग को इस तरह स्थानांत्रित (Shift) किया हो।” वह विस्मित होकर मुझसे बोला,
“…….आप हैं कौन …सेखरी साहब?”
जब मैंने पुरानी बातों का स्मरण किया और सोचा, जब गुरुजी ने मुझे विधिवत् रुप से रोजाना गुड़गाँव न आने के लिए डाँटा था और मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि गुरुजी मेरा अधिकतर समय तो सड़क पर ही बीत जाता है। मुझे रोजाना पंजाबी बाग से हरियाणा और हरियाणा से दरियागंज और फिर दारियागंज से वापिस पंजाबी बाग जाना पड़ता है। इस पर गुरुजी ने कहा था, “तुम हरियाणा से फैक्ट्री दिल्ली ले आओ।” तब मैंने कहा था, “गुरुजी, हरियाणा सरकार इसकी इजाजत नहीं देगी।” इस पर गुरुजी ने कहा था—
“इजाजत सरकार ने नहीं, मैंने देनी है।”
…और ऐसा सिर्फ मेरे केस में ही हुआ। आजतक कोई ऐसा दूसरा उदहारण नहीं मिलता कि किसी उद्योग को, एक राज्य से किसी दूसरे राज्य में स्थानांत्रित (Shift) करने की इजाज़त मिली हो। गुरुजी का एक बहुत अधिक प्रिय शब्द था, ‘हीला’ । ‘हीला’ का मतलब होता है अप्रयोगिक व अप्रसंगिक तरीके से समस्या का समाधान करना। अर्थात यदि कोई व्यक्ति या गुरू शिष्य, गुरुजी के समक्ष अपनी कोई समस्या रखता था तो गुरुजी स्वयं इस अद्भुत तरीके से उसकी समस्या का समाधान कर देते थे। गुरुजी अक्सर कहते थे “बेटा, मैं तो ‘हीला’ तैयार कर देता हूँ और उसके बाद काम तो अपने आप ही हो जाते हैं।” मेरे इस शिफ्टिंग के केस में भी, गुरुजी ने ‘हीला’ तैयार किया जिसने एक अद्भुत भूमिका निभाई।
विस्तार… जब गुरुजी ने मुझसे कहा कि अपनी फैक्ट्री दिल्ली ले आओ, उसके कुछ दिनों बाद ही क्लब, जिसमे मैं सुबह टेनिस खेलता हूँ एक आश्चर्य जनक घटना घटी। उस दिन खेल समाप्त करने के बाद मैं थोड़ा आराम करने के लिए बैठा ही था कि मेरा एक मित्र खिलाड़ी मेरे पास आया। वह मुझसे पूछने लगा कि क्या मुझे हरियाणा राज्य में किसी प्रकार की कोई दिक्कत तो नहीं आ रही…? उसने आगे बताया कि हरियाणा सरकार में उसका एक बहुत प्रभावशाली दोस्त है और एक अच्छे दोस्त की तरह वह मेरे लिए कुछ करने को उत्सुक है। मैंने कहा कि मैं अपनी फैक्ट्री हरियाणा से दिल्ली शिफ्ट करना चाहता हूँ और इसके लिए हरियाणा सरकार की अनुमति की आवश्यकता है।
वह मुझे अपने एक दोस्त के पास लेकर गया और उसे मेरा पक्ष लेने को कहा। उसने उसकी बात मानकर हमें हरियाणा की राजधानी ‘चंडीगढ़’ बुलाया। उसने अपने व्यक्तिगत प्रभाव से ये काम करवा दिया और इस तरह उसने इस काम में मेरी मद्द की। लोग यह कहते थे कि यह काम तो ‘असम्भव’ है, लेकिन वो हुआ।
यही था वो ‘हीला’, जो उस रात सड़क के किनारे खड़े हुए गुरुजी ने मेरे लिये बनाया था, जब मैंने उनसे चड़ीगढ़ जाने की इजाजत मांगी थी।
मैंने यह कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा दोस्त मुझसे कभी आकर यह पूछेगा कि हरियाणा में मुझे कोई परेशानी तो नहीं है और मुझे अपने दोस्त से मिलवायेगा और वह अपने व्यक्तिगत प्रभाव से मेरा यह कार्य करवा देगा।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि गुरुजी द्वारा रचित इस ‘हीले’ ने इस असम्भव कार्य को अन्जाम दे दिया।
संक्षेप में मैं यदि कहूँ तो जो कोई भी गुरूजी के सामने अपनी समस्या रखे और गुरुजी ‘हाँ’ करते हुए कह दें, ‘हो जायेगा’ तो समस्या अपने आप सुलझ जाती थी। काम कितना भी कठिन क्यों ना हो, हो जाता था।
जब लोग गुरुजी के पास उनका धन्यवाद और आभार प्रकट करने के लिए आते, तो गुरुजी बिलकुल सामान्य होते थे किसी प्रकार की कोई उत्तेजना उनके चेहरे पर नहीं होती थी। जैसे उन्होंने कोई छोटा-मोटा काम ही किया हो।