एक दिन सुबह-सुबह की बात है, मैं अपनी फैक्ट्री में एक रोलिंग मिल के फ्लाईव्हील (Fly Wheel) को शॉफ्ट पर लगा रहा था। इस पहिये (Wheel) का वज़न टनों में था। वह तीन टांगों वाले स्टैन्ड पर टंगे चैन ब्लाक पर करीब 12 फुट की ऊंचाई पर लटकाया गया था। इस पहिये को जमीन पर खड़े होकर ही संतुलित किया जा सकता था।
मैं स्वयं इस कार्य का संचालन कर रहा था और चेन ब्लॉक के बिलकुल नजदीक ही खड़ा था। अचानक कुछ हुआ और स्टैन्ड ने अपना सन्तुलन खो दिया। एक सैंकिण्ड से भी कम समय में पूरा का पूरा ढाँचा मेरे ऊपर गिर गया और मैं घायल होकर बेहोश हो गया।
करीब 12 से 15 कर्मचारी, जो मेरे साथ लगे हुए थे, सबने मिलकर वह ढाँचा मुझपर से हटाया। जब मुझे होश आया तो हमारी फैक्ट्री के प्रोडक्शन मैंनेजर जो कि एक रिटायर्ड फौजी थे, मुझे अस्पताल ले जाने की बात कर रहे थे। इस पर मैं बोला— ”पहले मुझे घर जाकर कपड़े बदलने हैं फिर मुझे अस्पताल ले जाना।” मेरे हाथ से बहुत खून बह रहा था और प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर वे डिटॉल और रुई का प्रयोग कर रहे थे।
घर पहुंच कर कपड़े बदलने के बाद, मैंने पता किया तो पाया कि गुरूजी अपने पूसा इन्सटीटयूट आफिस (जो ईस्ट पटेल नगर के पास है) में हैं। जब मैं गुरूजी से मिलने उनके ऑफिस पहुंचा, तो देखा कि बगीचे में करीब एक दर्जन से भी ज्यादा लोग गुरुजी से मिलने के लिए इंतजार कर रहे थे। मैंने गुरुजी को बिल्डिंग के बरामदे में खड़े हुए देखा
और मैंने अंदाज़ा लगाया कि शायद गुरुजी ने भी मुझे देख लिया होगा।
कुछ देर इंतजार करने के बाद, मैंने किसी के हाथ गुरुजी के पास अपने एक्सीडेन्ट की खबर भिजवाई। उसके वापिस आने पर मैंने उससे पूछा कि गुरुजी ने क्या कहा? वह बड़ा हैरान होकर बोला— ”गुरुजी कहते हैं
‘हाँ’, हाँ मुझे पता है। मरा तो नहीं ना ?”
करीब आधे घण्टे बाद, गुरुजी मेरे पास आए, मुझे आशीर्वाद दिया और आदेश दिया— “….वैलिन्गडन अस्पताल जाओ और चोट पर टाँके लगवाओ।”
दो कारों में लोगों को भरकर, मेरे साथ वैलिन्गडन अस्पताल भेजा। मैं अपना दाहिना हाथ और दाहिनी टाँग उठा नहीं पा रहा था और मुझे बहुत कमजोरी भी महसूस हो रही थी।
टाँके लगवाने के बाद, लोग मुझे गुरूजी के पास गोल मार्किट के एक मकान में, जहाँ गुरुजी की बहन रहती थी, ले गये। गुरुजी ने मुझे एक बिस्तर पर बिठाया और एक गिलास में बर्फ जैसा ठण्डा जल, जूठा करके पिलाया। वह बर्फ जैसा ठण्डा जल पीकर, मुझे एक अजीब सा नशा हुआ और मुझे, बहुत तेज़ बुखार महसूस होने लगा। उस समय गुरुजी, आराम से टी.वी. पर क्रिकेट मैच देख रहे थे।
कुछ घण्टों बाद गुरुजी वहाँ से उठे और मुझसे बोले– ”चल राज्जे, गुड़गाँव चलते हैं।” उस समय मैं बहुत कमजोरी महसूस कर रहा था। मैं जानता था कि गुरुजी को पता है कि मुझे आराम की सख्त जरुरत है। परन्तु गुरुजी, बिलकुल सामान्य और चिन्ता-मुक्त लग रहे थे।
जैसे ही हम, गुड़गाँव जाने के लिए निकले, तो यह सुनकर मुझे अचानक एक और झटका लगा, जब गुरुजी ने मुझे आदेश दिया कि गाड़ी तुम चलाआगे….!! तब मैंने उनसे प्रार्थना की—- ”गुरुजी, कृपा करके गाडी आप चलाईए।” वे बोले—- ”नहीं तुम चलाओगे और मैं तुम्हारी साथ वाली सीट पर बैलूंगा।’ मेरी हालत यह थी कि मेरा दाँया हाथ और पैर उठ नहीं रहे थे और मैं अपने बाये हाथ से अम्बैसेडर कार के गियर बदल रहा था और स्टेरिंग को भी संभाल रहा था और दाँयी टाँग को उठाकर एक्सीलेटर व ब्रेक पेडल पर रख रहा था।
जब हम गुड़गांव पहुंचे, तब तक रात हो चुकी थी। गुरुजी स्थान पर आये लोगों से मिलने लगे और मैं उनके पास बैठा रहा। रात के करीब, 12 बजे का समय रहा होगा, गुरुजी बोले—- ”अच्छा बेटा, अब तुम घर जाओ।” मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि किसी को आदेश दीजिए ताकि वह मुझे दिल्ली छोड़ आये। लेकिन उन्होंने मुझे आदेश दिया—- ”नहीं बेटा, तुम खुद गाड़ी चलाकर जाओगे”
मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि मैंने कैसे अकेले गाड़ी चलाई, जबकि मेरा दाँया हिस्सा काम नहीं कर रहा था और बहुत अधिक कमजोरी महसूस कर रहा था और कुछ-कुछ बेहाशी की हालत में भी था। परन्तु…
”…….ये गुरुजी ही हैं।” जिन्होंने आधी रात को, मुझे स्वयं गाड़ी चलाकर, सुरक्षित पंजाबी बाग पहुंचा दिया।
दो दिन के बाद, जब मैं गुरुजी के दर्शन करने के लिए, उनके कर्ज़न रोड स्थित ऑफिस पहुंचा और उनके ऑफिस के कमरे के बाहर बरामदे में खड़ा था, तो वहाँ मुझे जीवन कत्याल मिला। उसने मुझसे पूछा— ”जिस समय तुम्हारा एक्सीडेन्ट हुआ, उस समय, क्या लगभग, 11 या 12 बजे होंगे…?” मैं बोला—- ”हाँ’
फिर उसने मुझे बताया—- ”उस दिन उसी समय, मैं गुरुजी के साथ, इसी बरामदे में खड़ा था कि अचानक आकाश की ओर देखकर उन्होंने, तुम्हारा नाम पुकारा और तब तक लगातार तुम्हें, गालियाँ देते रहे, जब तक वे सन्तुष्ट नहीं हो गये। उस समय मैं, गुरुजी के इस व्यवहार को समझ नहीं पाया। क्योंकि मैं ये अच्छी तरह से जानता हूँ, कि वे तुमसे बहुत अधिक प्यार करते हैं और आज इतने गुस्से में, तुम्हें गालियाँ क्यों दे रहे हैं? मैं उनका वह रुप देखकर, इतना डर गया था कि मुझमें, उनसे इस बारे में पूछने की हिम्मत ही नहीं थी।” ऐसा मुझे ‘जीवन कत्याल’ ने बताया।
अब सवाल ये उठता है कि—
“गुरुजी अपने शिष्य को गालियाँ तो दे रहे हैं एक जगह…! ….और ठीक उसी समय, उनके उसी शिष्य का एक्सीडेन्ट होता है दूसरी जगह……!!”
मैं और कुछ नहीं जानता, सिर्फ इतना जानता हूँ कि गुरूजी देख रहे थे कि उनके शिष्य के साथ फैक्ट्री में क्या हादसा होने वाला है। गुरुजी ने सिर्फ गालियाँ दे कर ही, अपने शिष्य पर आने वाले भंयकर संकट को टाल दिया। मैं तो इतना जानता हूँ कि यदि आज मैं जिन्दा हूं तो सिर्फ गुरूजी की, उन्हीं गालियों की वजह से। और भी बहुत सी बातें हैं, जिनका हम वर्णन आगे करेंगे।
गुरूजी से प्रार्थना है कि वे हमारा, ज्ञानवर्धन करें और हमें प्रकाश दिखाएँ ।