एक बार गुरुजी, अपने सहयोगियों के साथ, भूमि सर्वेक्षण के लिए रेनुका जी गये। वहाँ उन्होंने एक पुराना सा घर जिसमें दो कमरे थे, किराये पर लिया। कमरों के बाहर बहुत खुला मैदान था। जिसमें बहुत से फल के पेड़ लगे हुए थे, लेकिन वे पेड़ स्वस्थ नहीं थे और न ही उन पेड़ों पर कोई फल ही लगे थे। किसी ने गुरुजी को बताया कि वहाँ पर पानी ही नहीं है। गुरुजी अपने दो सहयोगियों के साथ ऊपर पहाड़ी पर चले गये। उन्हें कुछ ऊंचाई पर पानी मिल भी गया। गुरुजी अपने साथ कुछ औज़ार (Instruments) लाये थे, जिनसे उन्होंने वहाँ, डीप लाईन डाल कर पानी को नीचे ले जाने के लिए एक छोटा सा रास्ता बनाया। ऊपर तो वह रास्ता छोटा सा लगता था, परन्तु जब गुरुजी नीचे उस घर मे आये, तो वहाँ पानी अपनी पूरी तेज़ गति से, आ रहा था। वह पीने, खाना बनाने तथा नहाने धोने के लिए प्याप्त था। पानी लगातार आ रहा था और उससे, पेड़ पौधों को भी सींचा जा सकता था।
जल्द ही वे पेड़, स्वस्थ होना शुरु हो गये। इसके एक हफ्ते बाद, हमें गुरुजी की तरफ से, यह संदेश मिला कि हमें वहाँ पर सेवा के लिए बुलाया है। सीताराम जी, एफ. सी. शर्माजी, आर. पी. शर्मा जी और मैं, रात को ही, रेनुकाजी के लिए चल पड़े। सुबह-सुबह जब हम, रेनुका जी पहुंचे, तो गुरुजी हमारा इन्तजार कर रहे थे। इस अलग-थलग स्थान पर गुरुजी के दर्शन, हमारे लिए एक वरदान से कम नहीं थे। इस स्थान को ‘ददऊ’ के नाम से जाना जाता है और यह रेनुका जी के बिलकुल करीब है। हमने वहाँ गुरुजी के पास परम सुः ख और आन्नद के साथ अपना पूरा दिन व रात बिताई।
अगले दिन सुबह ही, गुरुजी ने हमें आदेश दिया—
“…अब तुम लोग वापिस जाओ और अगले रविवार दुबारा आना।”
अगले रविवार हम लोग दुबारा रेनुकाजी पहुंचे और दुबारा आशीर्वाद प्राप्त किया। हम लोगों को खाना खिलाने के बाद गुरुजी बोले—- ”…यहाँ कोई नहीं जानता, मैं कौन हूँ तुम लोगों को यहाँ पर सेवा करनी है, हममें से एक ने पूछा— “गुरूजी, यहाँ हम किसकी सेवा करें? यहाँ तो लोग ही नहीं हैं। गुरुजी बोले— ”इन्तजार करो, लोग भी आ जाऐंगे।” जैसे ही सूर्योदय हुआ, उसके तुरन्त बाद, कुछ लोग आये और उन्होंने, अपने-अपने दुः ख और दर्द के बारे में बताया। जैसा हमें गुरुजी ने बताया था, हममें से एक ने उनके दर्द से पीड़ित हिस्से को छुआ और दर्द गायब हो गया। इसी तरह और लोग भी आये और वे भी अपनी परेशानियों तथा बीमारियों से मुक्त होते गये। इसी तरह दोपहर तक करीब 15 से 20 लोग आये और स्वस्थ होकर लौट गये।
गुरुजी हमें आदेश दे रहे थे और हम वैसा ही किये जा रहे थे और तुरन्त, उसका नतीजा भी सामने आता जा रहा था। परम सुः ख और आनन्द के साथ, अपना पूरा दिन व रात बिताने के बाद, गुरूजी ने हमें अगले रविवार दुबारा आने का आदेश देकर हमें वापिस भेज दिया।