अगले रविवार जब सुबह हम पहुंचे, तो देखकर चकित रह गये कि करीब 15 लोग लाईन लगा कर हमारा इन्तजार कर रहे थे। नाश्ते के बाद, उसी तरह गुरुजी ने हमें आदेश दिया–“जाओ सेवा करो” और दूर बैठकर हमें देखते रहे।
लोग लाईन में आ रहे थे और उनमें बहुत से नये लोग भी थे। इसी तरह, यह सिलसिला चलता जा रहा था। अनगिनत लोग, आते चले गए और हम, उनकी पीड़ा दूर करते चले गये।
एक पति-पत्नी, अपनी जवान लड़की को अपनी पीठ पर बैठा कर लाये। क्योंकि वह जन्म से ही अपने पैरों पर भी खड़ी नहीं हो सकती थी। केवल अपने हाथों और घुटनों की मदद से ही चल पाती थी। उसे देखकर सीताराम जी ने गुरुजी से अपने अनोखे अंदाज में उकसाते हुए कहा—–
गुरुजी…, मजा तो तब आयेगा जब आप इस लड़की को अपने पैरों पर चला दो….।।
गुरुजी ने सीताराम जी से कहा—- ”तुम इस लड़की के पैरों को अपने पैरों के अँगूठों से दबाकर रखो और आर. पी. शर्मा जी से लड़की को बाँहों से पकड़कर उठाने का आदेश दिया” आर. पी. शर्मा जी ने, उस के हाथ पकड़ कर उसे ऊपर उठाया और सीधा खड़ा कर दिया। लड़की अपने जीवन में पहली बार खड़ी हुई और चलने लगी। इस कार्य में, एक मिनट से भी कम समय लगा।
उस लड़की के माता पिता की हालत देखने लायक थी। वे खुशी से चिल्ला रहे थे और उनकी आँखों से आंसू, बहे जा रहे थे। वे अपनी हिमाचली भाषा में कह रहे थे–
”गुरुजी, आपका भला हो”
वे अपनी लड़की को देखे ही जा रहे थे, जो अपनी जिन्दगी में पहली बार चल रही थी। हम भी आश्चर्य चकित होकर खड़े थे तथा कभी एक दूसरे को और कभी गुरुजी के चेहरे की तरफ देख रहे थे। गुरुजी मुस्कुराए और हमें आशीर्वाद दे कर चले गये। उसी दिन शाम को मैंने गुरुजी से कहा—
”गुरुजी, यहाँ पर जितने भी लोग आये, उनमें से एक जैसी अजीब सी गंध आ रही थी।”
गुरुजी ने मुझे डाँटा और कहा—
”बेटा वो तो अपने भगवान के दर्शन के लिए आये हैं और उनके भगवान को, उनसे गंध आ रही है..?” तुम्हें शर्म नहीं आती।
मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और गुरुजी से क्षमा माँगते हुए कहा—–
“गुरुजी… मुझे माफ कर दो” मुझसे गलती हो गई है।
गुरुजी ने हमें बुलाया और आदेश दिया — ”और शिष्यों को भी सेवा के लिए बता दो क्योंकि अगली बार यहाँ हजारों की तादाद में लोग आऐंगें। इसलिए आप लोग सुबह की बजाय एक दिन पहले शाम तक पहुंच जाओ।”
इस पर सीताराम जी बोले— ”हजारों लोग कहाँ से आ जायेंगे…? हम पहाड़ी पर दूर-दूर तक देखकर आये हैं, एक झोपड़ी यहाँ है और दूसरी बहुत अधिक दूरी पर है, हजारों लोग कहाँ से आयेंगे, गुरुजी…?”
गुरूजी ने कहा—–
”बेटा, अब मेरी आवाज पहाडों के पीछे तक चली गई है।” हम बहुत से शिष्य दिन में ही, रेनुका जी के लिए चल दिये।
लेकिन इस बार सीताराम जी, राजी शर्मा (जो गुरूजी के बहुत प्यारे शिष्यों में से, एक है और ग्रीन पार्क में रहते हैं) के साथ गये। हम लोग, करीब दो किलोमीटर का टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता, जहाँ पर लोगों की टेढ़ी-मेढ़ी ही लम्बी लाइनें लगी हुई थी के बीच में से उसको पार करते हुए, रेनुका जी पहुंच गये। हमने गुरूजी के दर्शन किये। उन्होंने हमें आदेश दिया—कि किसी से भी न कहना कि ‘मैं यहाँ हूँ।’ हम सब लोग कुर्सियों पर बैठ गये, उस समय रात के 9: 30 बजे थे और हमने, सेवा शुरु कर दी।
लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर आने लगे। कुछ लोग अपनी शारीरिक समस्या से पीड़ित थे, तो कोई मानसिक बीमारी से ग्रस्त, लेकिन अधिकतर लोग अपने पेट-दर्द से परेशान थे। वे अपने साथ जल के लिए, एक बोतल, एक कड़ा, एक-एक पैकेट लौंग और इलायची लेकर आये थे।
हम वहाँ ग्यारह शिष्य, बैठकर सेवा कर रहे थे और लोगों को आशीर्वाद दे रहे थे। हम उन्हें कड़ा पहना रहे थे और जल, लौंग व इलायची अभिमंत्रित कर, उन्हें दे रहे थे (जैसा कि गुरूजी ने हमें, आदेश दिया था) कुछ लोगों को, जहाँ उन्हें दर्द था, स्पर्श भी कर रहे थे और किसी के माथे पर स्टोकस (Strokes) भी लगा रहे थे, जिससे उन्हें तुरन्त आराम भी मिल रहा था।
ताज्जुब है…… !! हर व्यक्ति यही कह रहा था कि वह ठीक हो गया है। यह सिलसिला सारी रात चलता रहा।
सेवा के लिए स्थान की व्यवस्था की जिम्मेदारी, एक शिव-भक्त श्री चन्द्रमणि विशिष्ठ ने ली थी। बाद में गुरुजी ने उन्हीं को रेनुकाजी स्थान पर सेवा करने की जिम्मेदारी सौंपी। (वे अब, गुरुजी के चरणों में चले गये हैं।)
अगले दिन सुबह का सूर्योदय हो चुका था। लेकिन लोगों की भीड़ वैसे की वैसी ही थी। उसमें थोड़ी भी कमी नहीं आई थी। पूरी रात बसों से लोग आ और जा रहे थे। मैं सेवा वाले कमरे से थोड़ा आराम करने के लिए बाहर आया तो देखा कि पूरी तरह से भरी हुई बसें और उनकी छतों पर भी लोगों की भीड़ चली आ रही थी। यह सब देख कर मैं भी आश्चर्य चकित था।
सभी शिष्यों के सामने, लोगों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हुई थी। दोपहर के समय, मेरी सेवा करने की गति बहुत धीमी हो गई। लोगों को आशीर्वाद देने के लिए मुझे अपना हाथ उठाना भी मुश्किल पड़ रहा था। कुछ लोगों को माथे पर जिस उंगली से स्ट्रोकस (Strokes) लगा रहे थे, उसका माँस भी बीच में से फट गया था और उसमें से खून भी बह रहा था। रात के 9: 30 बजे से लेकर, अगली दोपहर करीब 2: 00 बजे तक, अर्थातः लगभग 17 घण्टों की लगातार सेवा करते हुए हम बुरी तरह से थक चुके थे।
तभी वहाँ एक अजीब घटना घटी। मैंने देखा कि गुरुजी एक हाथ में पानी की बाल्टी और दूसरे हाथ में एक गिलास ले कर आ रहे हैं। गुरुजी मेरे पास आये और उन्होंने उस बाल्टी में से आधा गिलास भरकर, मुझे पीने के लिए दिया।
आश्चर्य—— जैसे ही मैंने वह जल पीया, मेरी सारी थकान पलभर में ही न जाने कहाँ गायब हो गई। मैं बिलकुल तरो-ताजा हो गया। मानो मेरा शरीर व दिमाग, जैसे बिलकुल नये हो गये हों। मेरे पास सामर्थ्य ही नहीं हैं कि मैं अपने उस अनुभव को शब्दों में बाँधकर आपके समक्ष रख सकूँ।
गुरूजी ने क्या किया था, यह तो सिर्फ और सिर्फ गुरुजी ही बता सकते हैं कि उस आधे गिलास जल के अन्दर, उन्होंने कौन सी ऐसी ताकत डाली थी?
कौन हैं…वे….!! यह शब्दों में व्यक्त करना, सम्भव नहीं है। इसके बाद मेरी तरह उन्होंने अन्य शिष्यों को भी जल पिलाया और वे भी अपनी सारी थकान भूल कर पुनः तरो-ताजा हो गये।
जब गुरूजी हमें जल पिला रहे थे, तो उन्होंने हमें आँखों-आँखों में आदेश दिया, कि कोई भी न तो उनके चरण छुए और न ही प्रणाम ही करे।
ट्रिब्यून समाचार पत्र से कुछ पत्रकार, वहाँ आये और पूछने लगे कि गुरूजी कौन हैं, जो इतने लोगों को आशीर्वाद दे रहे हैं?
सेवा चल रही थी कि मुझे कुछ शोर सुनाई दिया, मैं उठ कर बाहर आया, तो देखा कि कुछ व्यक्ति वहाँ खड़े हुए, सीताराम जी से बहस कर रहे थे——
”आप सब में से, गुरुजी कौन हैं, जो इस तरह लोगों को आशीर्वाद दे रहे हैं?” सीताराम जी ने कहा—- ”मैं नहीं जानता।’ तभी उनमें से एक परेशान सा होकर बोला— ”हम पत्रकार हैं और हम स्थानीय ट्रिब्यून समाचार पत्र से आये हैं, हमने लोगों से पूछा है, वे सभी सन्तुष्ट हैं। सभी यही कहते हैं कि हम पिछले कई सालों से दर्दो से पीड़ित थे और गुरुजी ने हमें, ठीक कर दिया है। लेकिन हम ये जानना चाहते हैं कि आप ग्यारह में से गुरुजी कौन हैं?”
दूसरा पत्रकार बोला—-
”हम एक-एक से पूछ रहे हैं, लेकिन हमें सच्चाई कोई भी नहीं बता रहा। आप ग्यारह में से एक तो कोई गुरू होगा? और आप कह रहे हैं कि आप नहीं जानते। पूरे हरियाणा और पंजाब की बसें इस रुट पर लगा दी गई हैं और फिर भी हर बस स्टैंड पर इतनी भीड़ लगी है, जिसे सम्भाल पाना मुश्किल हो रहा है” वह फिर बोला– “हमें हमारे आफिस से भेजा गया है कि आप वहाँ जाओ, देखो और वापिस अपनी रिपोर्ट हमें दो। ताकि हम, यहाँ पर होने वाले चमत्कारों को और गुरू के बारे में अपनी अखबार में छाप सकें कि वह कौन हैं जिन्होंने, इस दूर दराज के इलाके में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपनी तरफ खींचा है।”
वह आगे बोला—
”हमें किसी ने बताया है कि वह कोई भूमि सर्वेक्षण विभाग के अधिकारी हैं लेकिन वे हैं…..कौन…?, उनका नाम क्या हैं..? वे कहाँ हैं? हमें अभी तक इस बात का पता नहीं लग पा रहा। बहुत देर से लगातार चल रहे, इस कभी समाप्त न होने वाले वार्तालाप को सुनने के बाद, मैं बीच में बोला— ”देखो, ऐसा है कि हमें गुरुजी की तरफ से, यही आदेश है, मैं जानता नही… क्यों? लेकिन कोई भी ये नहीं बोलेगा, कि गुरुजी कौन हैं?”
तब पत्रकार फिर बोला — ”क्या इसमें किसी प्रकार की गोपनीयता है?’
मैंने विनम्रता से कहा—‘ ‘हो भी सकता है कि गुरुजी मानवता के इस पवित्र कार्य जिसमें, वे लोगों के दुः ख-दर्दो का निवारण कर रहे हैं, एक खोखला प्रचार न चाहते हों….!!”
”मैं जानता हूँ कि आप बहुत कुछ पूछना चाहते हैं, लेकिन बेकार है…। गुरुजी यहाँ अनगिनत लोगो को, पीड़ा-मुक्त करने आये हैं, जो मानसिक-पीड़ा और विभिन्न प्रकार की बीमारियों से सालों से ग्रस्त हैं तथा अपनी बीमारी के लिए किसी डॉक्टर के पास अपने इलाज के लिए जाने में भी असमर्थ है। तो कुछ लोगों की बीमारी डॉक्टरों की समझ से भी बाहर है और इसी तरह बीमारी की ही अवस्था में ही वे जीने को मजबूर हैं।
यहाँ गुरुजी अपने शिष्यों के साथ उन्हें ठीक करने के लिए ही आये हैं। गुरुजी ने अपने शिष्यों को आध्यात्मिक-शक्तियाँ दी हैं और आप देख सकते हैं कि इससे लोग ठीक हो रहे हैं। आप जरा समझने की कोशिश कीजिए कि यह प्रेक्टीकल रुप में हो रहा है और उसके परिणाम भी आपकी आँखों के सामने हैं।
स्पष्ट रुप में अगर मैं बोलूं, तो लोग अपनी परेशानियाँ ले कर आ रहे हैं और उन्हें यहाँ ठीक करवा कर ही अपने घरों को लौट रहे है। उनके पूर्ण इलाज के लिए उन्हे लौंग, इलायची और जल दिया जा रहा हैं।”
यहाँ पर मैं, एक ही बात कहना चाहता हूँ कि गुरूजी ने जैसा चाहा, वैसा कर दिखाया उन्होंने ।