यह तब की बात है जब मैं अपने पुराने घर में सेवा किया करता था। हमारा एक संयुक्त परिवार था और हम चारों भाई उसी घर में रहते थे।
1990 से पहले की बात है, भूमितल (Ground Floor) पर एक बड़ा सा लाउंज है जिसमें लगभग 150 या उससे भी अधिक लोगों के बैठने और स्थान पर जाने के लिए अपनी बारी का इन्तजार करने की जगह है। स्थान वाले कमरे में रखी सैटी पर बैठकर मैं लोगों से मिलता था। स्थान के कमरे में मेरे सामने करीब 10 लोग संगठित व अनुशासित तरीके से बैठ सकते थे और बारी-बारी से मुझे अपनी-अपनी समस्यायें व्यक्त कर सकते थे। ‘गुरुजी’ के विशेष शब्दों में इसे ‘सेवा’ कहा जाता है।
अपनी बारी आने पर, एक जवान लड़की बड़े ही आक्रमक अंदाज से बोली, “आज मैं वो सब प्राप्त करूंगी जो मैं चाहती हूँ।” …और कहने लगी कि यहाँ हर एक की इच्छा पूर्ण होती है, तो फिर मेरी क्यों नहीं…?
सुनकर मैं भावुक हो गया। मैंने गुरुजी की बेहिसाब आध्यात्मिक शक्तियों का ध्यान किया और पूछा कि उसे क्या चाहिए…! उसने कहा, “आँखों की रौशनी” फिर कहने लगी कि आज के बाद वो बिना चश्में के, पूर्ण स्वस्थ आँखों से देखना चाहती है।
पता नहीं क्या हो गया मुझे, छूटते ही मैंने कहा, “जाओ, पानी की एक बोतल लाओ।” वह बोतल लाई और गुरुजी के आदेशानुसार, उनकी कृपा से मैंने जल बना कर उसे थमा दिया और बड़े आत्मविश्वास से कहा, “कल सुबह तेरी आँखें बिलकुल ठीक होंगी।” …और वो लड़की आशीर्वाद लेकर बाहर चली गयी।
स्थान से बाहर जाने से पहले उसके मन में आया कि क्यों ना रसोई में जाकर थोड़ी बर्तनों की सेवा कर लूं। इस विचार से वो रसोई में जाकर काउंटर पर खड़ी हो गयी। जल की बोतल काउंटर पर रख कर, उसने प्लेटें धोना शुरु कर दिया। धोने के बाद उसने प्लेटें जैसे ही काउंटर पर रखी, उसका हाथ लगा और बोतल काउंटर पर गिर गयी।
आश्चर्य — बोतल गिरते ही बुरी तरह से फट गयी और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गयी। सारा जल बिखर गया– वो और बाकी की लड़कियाँ अचम्भे से देखती ही रह गयीं। रखी हुई बोतल तीन-चार इंच नीचे गिरी और इस तरह फटी, जो संभव नहीं था। सभी हैरान रह गए।
अगले दिन गुरुजी के दर्शनों के लिए और कल जो कुछ हुआ था, बतलाने के लिए, मैं गुरुजी के पास गुडगाँव पहुंचा। मैंने कहा, “गुरुजी, यह कैसे हो सकता है कि जल की बोतल तीन-चार इंच नीचे लुडकी और गिर कर टुकड़े-टुकड़े हो गयी जबकि बोतल शीशे की नहीं, नरम प्लास्टिक की थी।
“गुरुजी ने कहा, “मैं जानता हूँ।”
“ईश्वरीय शक्ति का प्रयोग करते समय तू इतना भावुक हो गया और भूल गया कि उसकी नज़र मालिक ने ही कमजोर बनाई है, उसके कुछ कर्मों की वजह से। उसके माँगने पर तूने आठ-दस घंटों में पूरी नजर ठीक कर दी। तुमने यह भी नहीं सोचा कि ईश्वर ने किसी कर्म के कारण ही उसकी नज़र कमज़ोर की है। उसके माँगने पर दस घंटों में सारी की सारी ठीक करने के बजाय दस महीनों में करते ताकि वह दस बार गुरु स्थान पर फुल्लियाँ चढ़ाती और मालिक के रिकार्ड में उसकी श्रद्धा, भक्ति और गुरु के प्रति विश्वास दर्ज हो जाता।
तुम सबको भरपूर शक्तियों से संपन्न करने के बावजूद, मैं तुम पर नियंत्रण स्वयं करता हूँ ताकि कहीं कोई भूल हो तो हाथ के हाथ सुधार भी कर दूं। इसीलिए मैंने जल को, बोतल फाड़ कर गिराया था ताकि उस जल की एक बूंद भी उसके पास न रहे। उसकी आँखे ठीक तो हो जायेंगी परन्तु कुछ समय के बाद ।”
वाह ! …हे गुरुदेव — वाह !
आप अतुलनीय हैं… आप सब बड़ों से बड़े हैं।
संसार में कोई भी ऐसा नहीं कर सकता और न ही कह सकता है सिवाए देवो महेश्वरा के…! लेकिन मैंने तो सिर्फ आपको ही देखा है मेरे साहिब…!
—हे गुरुओं के गुरु, मुझे हमेशा अपनी शरण में रखना। मेरी प्रार्थना है कि जो भी आप की शरण में आयें, उन पर भी अपनी कृपा बनाये रखना।
…….मैं प्रार्थना करता हूँ जी।