मेरे पति अक्सर गुरुजी के पास जाया करते थे। मगर मेरा विश्वास बिलकुल नहीं था। मेरे पति मुझे मनाने की भरपूर कोशिश करते, मगर मैं नहीं मानती थी।
एक दिन मैंने कहा, …चलो आज मैं भी चलती हूँ। अपने पति के साथ मैं भी लाइन में खड़ी हो गई। गुरुजी आये और लाइन में लगे सब लोगों से मिले और जैसे ही मेरी बारी आयी, वो वापिस चले गए बिना मुझे मिले और मैं उनका आशीर्वाद लिए बिना, वापिस घर चली आई। अगली बार फिर मैं चली गयी और इस बार भी लाइन में मेरे आगे 2 लोग रह गये कि गुरूजी फिर वापिस चले गए और मैं इस बार भी बिना आशीर्वाद लिए वापिस आ गई। ऐसे लगातार मैं 15 बार गयी मगर वे मुझे मिलने से पहले, हमेशा की तरह वापिस लौट जाते, बिलकुल पहली बार की तरह। सौलवीं बार घर से निकलने से पहले मैंने उनकी फोटो के सामने खड़े होकर कहा कि इस बार अगर आप ना मिले, तो मैं जिन्दगी भर नहीं आऊँगी। मैं गई और हमेशा की तरह इस बार भी लाइन में खड़ी हो गई। गुरुजी आये और उन्होंने पहली बार मुझे आशीर्वाद दिया। मैंने उन्हें रोक लिया। मैंने कहा, आप से बात करनी है। उन्होंने कहा कि 2 दिन के बाद आना। मैंने कहा, “दर्शन दोगे ना.?” उन्होंने कहा “हाँ”। तो इस तरह सौलवी बार में मुझे, गुरुजी से बात करने का आश्वासन मिल ही गया। मेरी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। यहाँ तक कि मेरे पास बस के किराये का इन्तजाम भी नहीं था। मैंने गुरुजी के पास जाने का रात को ही प्रोग्राम बना लिया था। लेकिन कैसे..? अब मैंने उनकी फोटो के आगे खड़े होकर प्रार्थना की, कि गुरूजी मेरे लिए कुछ पैसों का इन्तजाम कर दीजिए ताकि मैं आपके पास आ सकू। गुरुजी मैं आपके पास आना और आपके दर्शन करना चाहती हूँ और फिर मैं सो गई। एक अविश्वस्नीय बात हुई। सुबह जब मैं उठी तो मैंने देखा कि मेरे कमरे की शैल्फ पर पचास रुपये का एक नया नोट रखा हुआ था। मैं खुशी से उछली और मैंने महसूस किया कि कुछ भी हो, यह इन्तजाम गुरूजी ने ही किया है। आखिर में दो दिन के बाद गई और गुरुजी के कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ी हो गयी। गुरूजी ने अन्दर आने का ईशारा किया तो मैंने कहा कि नहीं, मुझे डर लग रहा है। तब सेवादारों ने पकड़ कर मुझे अन्दर किया। लेकिन मैं डर रही थी, क्योंकि अन्दर साँप ही साँप दिखाई दे रहे थे। गुरुजी ने पूछा, “डर क्यों रही है…?” मैंने बताया कि इतने साँप देखकर तो कोई भी डर जाएगा। गुरुजी ने पूछा, “कहाँ हैं …साँप?” । मैंने कहा दीवारों पर लटके तो हैं। उन्होंने दूसरों से पूछा तो सबने इन्कार कर दिया। तब गुरुजी ने कहा कि अगर साँप होते तो सबको नज़र ना आते। तेरे को जो नज़र आ रहे हैं वो साँप नहीं, तेरे पाप हैं बेटा। विश्वास तो मेरा पूरा हो गया परन्तु मैंने फिर कहा, गुरुजी मुझे कोई चमत्कार दिखाओ। गुरुजी मुस्कुराये और हाथ को खोलकर बोले, ….ले देख चमत्कार” इतना सुंदर रुप, पूरा का पूरा शिव-परिवार, गुरुजी की हथेली पर नजर आया।
गुरुजी ने पूछा, देखा चमत्कार..? ना जाने क्या हुआ, मैंने ऐसे ही बोल दिया कि मेरा मन नहीं भरा। “…..तब गुरुजी ने कहा,…. ले और देख ।” तब उन्होंने फिर हाथ खोला और उनकी हथेली के बीचोंबीच ओम ‘ॐ’ लिखा हुआ था, पूरा लाल रंग का, जो 2 सैंकिड तक मैंने देखा फिर लुप्त हो गया और मेरा विश्वास जो कायम हुआ वो आज तक कायम है
हे भगवान…. यह तो अविश्सनीय है।
तब मैंने उनके समक्ष पूर्ण समर्पण कर दिया। कितनी भाग्यशाली है यह महिला… ‘रानी’ नाम है उसका….!!
समय बीतता गया और रानी के बच्चे बड़े हो गये। रानी लगातार गुड़गाँव तथा नीलकण्ठ धाम जाती है। मेरी फैक्ट्री की मैनेजर भी उसी कॉलोनी में ही रहती है और संयोगवश सितम्बर 1, 2011 के बड़े वीरवार के शुभ अवसर पर वे गुड़गाँव स्थान पर मिले। उसने रानी की कार में ही दिल्ली वापिस आने का निर्णय लिया और पूरे रास्ते गुरुकृपा की चर्चा होती रही। रानी ने अपनी कहानी सुनानी शुरु की और मैनेजर भी पूर्ण दिलचस्पी से सुनती रही। अगली सुबह मैनेजर मेरे ऑफिस में आईं और जो कुछ उसने रानी से सुना था मुझे बता दिया।
अगली सुबह चार बजे, मुझे गुरुजी ने आदेश दिया कि मैं रानी से मिलूं। मैंने अपनी मैनेजर को भेज कर उसे बुलवाया। मैं फैक्ट्री नहीं गया और उससे पंजाबी बाग स्थान पर ही मिला और उससे महागुरू की महान कृपा के बारे में सुना।
उसने जो कुछ बताया वह नीचे लिख रहा हूँ—
बात का वृत्तांत इस तरह था कि— सन् 2003 में, वह अपनी बाँह में दर्द के कारण वैसे ही दीन दयाल अस्पताल गई। डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाये। लेकिन दर्द का कम होना तो दूर, दर्द बढ़ती ही गई। ऐसा लगातार एक महीना चलता रहा। जिस कैमिस्ट से दवाई लेती थी, उसने कहा कि आप एक्सरे करवाओ ताकि इसका कारण तो पता लगे। …आपकी बाजू नीली पड़ गयी है और सूज भी गयी है। तब उसने एक्सरे करवाया और पता चला कि इंजेक्शन की सुई अन्दर ही रह गयी है। जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि जहर अन्दर फैल चुका है, इसलिए बाजू काटनी पड़ेगी। रानी और उसके बच्चे इस खबर से डर गये। रानी गुरुजी की फोटो के आगे खड़ी होकर प्रार्थना करने लगी, “गुरूजी मेरी बाजू कटनी नहीं चाहिए। सिर्फ ऑपरेशन से ही ठीक कर दो इसे।” ऑपरेशन का दिन और समय तय कर दिया गया और उसे अस्पताल में सर्जरी के लिए भर्ती कर दिया गया। आखिर मैं ऑपरेशन कक्ष में लेटी हुई थी और डॉक्टरों ने मेरी बाजू सुन्न करने के लिए इंजेक्शन दे दिया। उस इंजेक्शन ने काम नहीं किया और एक दूसरा इन्जेक्शन दिया गया और वह भी निष्फल हो गया। फिर एक तीसरा इन्जेक्शन दिया गया और आश्चर्य… वह भी निश्कृय साबित हुआ। अतः करीब ₹5000/- मूल्य के तीन इन्जेक्शन दिये गये लेकिन सभी बेकार साबित हुए और डॉक्टरों ने सर्जरी को स्थगित घोषित कर दिया। उसने बताया कि मैंने दृढ़तापूर्वक कहा कि आप ऑपरेशन करो, मैं दर्द बर्दाश्त कर लूंगी क्योंकि गुरुजी यहाँ आ जायेंगे, मेरा ध्यान वे स्वयं रखेंगे और मुझे दर्द नहीं होगी। लेकिन वे मेरी बात समझ नहीं सके। लेकिन बाद में सर्जन डॉक्टरों की टीम मेरी बाँह को सुन्न किये बगैर ऑपरेशन करने को तैयार हो गई। और ऑपरेशन शुरु हो गया। रानी ने मुझे बताया —-
आप जानते हैं कि क्या हुआ….? मैंने देखा कि गुरुजी आये हैं— सफेद सफारी सूट में और मेरे सिर की तरफ खड़े हैं। उन्होंने आकर मेरी बाजू को पकड़ा है और उनका बांया हाथ मेरे सिर पर है। वो मुझे देख रहे हैं और मैं उन्हें देख रही हूँ.. डॉक्टरों ने ऑपरेशन शुरु कर दिया था जो लगभग ढाई घन्टे तक चलता रहा।
डॉक्टर अपने काम में व्यस्त थे और मैं सारा समय सिर्फ उन्हें ही देखती रही। सफलता पूर्ण ऑपरेशन हो गया। ऑपरेशन के बाद, वहाँ पर खड़े लोगों से मैंने कहा, “देखो– मेरे गुरुजी खड़े है …और मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। लोगों ने भी देखा …सबने उनके दर्शन किए और मंत्र-मुग्ध से हो गए कि वे ऑपरेशन कक्ष में कैसे खड़े हैं।
ना मेरी बाजू कटी और ढाई घण्टे के ऑपरेशन में ना ही कोई तकलीफ़ ही हुई….
उसने मुझे अपनी बाजू पर जल्म के निशान भी दिखाए और कहा कि देखो, मेरा बाजू भी ठीक है और मैं सारा काम आराम से करती हूँ।