गुरुजी के आदेशानुसार मैं अपने घर पंजाबी बाग में हर शनिवार को सेवा करता था। यह सेवा सुबह से शाम तक चलती थी। दोपहर को दो बजे के बाद, आए हुए सब भक्तजनों को लंगर खिलाया जाता था। राजमा, सब्जी और चावल का यह लंगर सब लोग भरपेट खाते थे। साँयकाल जब सेवा सम्पूर्ण हो जाती और वहाँ कोई भी भक्त नहीं रहता, तब मुझे लंगर खाने की इजाजत मिलती थी। ऐसे ही सेवा का एक दिन था और शाम को जब मुझे लंगर दिया गया, तभी एक भक्त ने स्थान में प्रवेश किया और मैंने अपनी प्लेट उसे दे दी। तत्पश्चात् दूसरी थाली मेरे लिए लायी गयी परन्तु एक भक्त और आ गया तो मैंने वह थाली भी उसे दे दी। इसके पश्चात् मैंने इन्दु को दुबारा और लंगर देने के लिए कहा क्योंकि मुझे गुडगाँव गुरुजी के पास जाने में देर हो रही थी। इंदु ने कहा कि वह और लंगर बना रही है।
इतना सुनने पर मैंने उसे रोका और कहा कि और लंगर बनाने की कोई आवश्यकता नहीं, जो कुछ भी बर्तन में बचा हो, वही दे दो। इन्दु ने उत्तर दिया कि बर्तन खाली हैं इस पर मैंने उसे बर्तन दिखाने के लिए कहा। देखने पर कुछ चावल और राजमा, करीब डेढ़ चम्मच इकट्ठा हुआ और मैंने प्लेट में डाला और खाने लगा।
मगर एक विचार आया कि सुबह से शाम तक भूखा रहने के बाद अब बस इतना ही….? क्या बनेगा इतने में मेरा…!! इतना सोचने के बाद जैसे ही मैंने एक चम्मच मुँह में डाला और चबाकर गले से नीचे उतारा तो एक डकार आया और पेट इस कदर भर गया के दूसरा चम्मच खाने की हिम्मत नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से खा पाया वो दूसरा चम्मच ।
जब मैं गुडगाँव गुरुजी के पास पहुंचा और उनके चरणों में माथा टेका तो गुरूजी ने मुझपर अपनी नज़रें गाड़ते हुए कहा, “क्यों बेटा दूसरा चम्मच खाया नहीं गया…?”
नामुमकिन और आश्चर्यजनक…! गुरुजी को मेरे मन में उठे उस विचार का पूरा पता था। मुझे बहुत शर्म महसूस हुई। यानि वो गुड़गाँव में बैठे मेरी सारी गति विधियाँ नोट कर रहे थे।
—-अद्भुत्….
गुरुजी कहने लगे, “बेटा, मैंने तुम्हें इतना बलवान बनाया हुआ है कि तुम दूसरों को तृप्त कर सको और एक चम्मच भर चावल तो क्या, मैं तो चावल के एक दाने से तुम्हारा पेट भर सकता हूँ। तुमने सोचा कैसे कि तुम भूखे रह जाओगे…?
खूब डाँट पड़ रही थी और मैं था भी इसी के लायक —
मैंने माफ़ी माँगी और कृपा के लिए प्रार्थना की।
ऐसे है गुरुजी और उनका नियंत्रण। चावल के एक चम्मच से मेरा पेट भर दिया।
असम्भव…
…. और इससे भी ज़रुरी जानने योग्य बात यह है कि गुडगाँव में बैठकर मुझे पंजाबी बाग में देख रहे हैं…!!
—-बेमिसाल– गुरूजी कृपा करते रहिये जी…