आमतौर पर इसका नाम चूड़ी, कंगन इत्यादि जाना जाता है और आम लोग इसे खरीद कर सजावट के लिए अपने आप पहन लेते हैं। महिलाएं सोने, चाँदी इत्यादि की धातु से बनवा कर पहनती हैं। कुछ धार्मिक संस्थानों जैसे मंदिर या गुरुद्वारों में भक्त लोग स्टील से बना कड़ा खरीद कर खुद ही पहन लेते हैं। लेकिन, जो कड़ा गुरुजी पहनाते हैं, उसे उन्होंने खासतौर पर खुद डिजाईन किया है, जो तॉम्बे से बना और जिसमें चाँदी का टाँका होता है। कुछ भक्त जिन्हें आर्थिक कष्ट हैं उन्हें आधा ताम्बा और आधी चाँदी का कड़ा लाना होता है।
गुरुजी उसे हाथ में लेकर अपने माथे से छूकर और उसमें ईश्वरीय शक्तियाँ डालकर अपने भक्तों के दाहिने हाथ में पहनाते हैं मगर महिलाओं को बाँये हाथ में। कड़ा पहनाने के बाद भक्त का 24 घंटो का गुरुजी से सीधा संपर्क हो जाता है। इसलिए इस बात पर जोर दिया जाता है कि इसे कभी भी उतारा न जाये चाहे बाथरुम ही क्यों न हों। इसे सिर्फ दो मौकों पर, जहाँ जन्म हुआ हो या जहाँ मृत्यु हुई हो, उतार कर घर पर रखना या फिर दूसरे हाथ में डालना आवश्यक है। यह परहेज़ कम से कम 21 दिन का होता है।
गुरूजी कहते हैं कि तॉम्बे में भगवान शिव और चाँदी में माँ की शक्तियों का वास करते हैं और इसके आलावा गणेश जी की शक्तियों का भी वास किया जाता हैं। ऐसी सूरत में जब किसी के जीवन में धन की समस्या अधिक हो और बरकत न हो तो उसे वो कड़ा पहनाते हैं जिसमे आधा भाग तॉम्बे का और आधा चाँदी का हो।
जिस तरह गुरुजी का कड़ा कार्य करता है, वो इंसानी सोच से बहुत परे है। सभी को ज्ञात है कि जैसे ही कोई गुरुजी का कड़ा पहनता है, उसकी 40% प्रतिशत समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। लेकिन पूर्ण विश्वास का होना परम-आवश्यक है।
सत्तर के दशक में जब मैंने गुरुजी के पास जाना शुरू किया था तो मेरे साथ मेरा मित्र दीप शाही जो मेरी पत्नी का भाई भी था, अक्सर मेरे साथ होता था। वह एक अध्यात्मिक पुरुष था, उसने भी कड़ा पहना था। वह कुछ कम जाया करता था। शायद उसमें विश्वास की कमी थी। एक बार उसे दिल का दौरा पड़ा और उसे दिल्ली के कपूर अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। क्योंकि मैं उसे बहुत प्रेम करता था अतः मैंने गुरुजी के पास उसे ठीक करने की प्रार्थना की और किसी तरह गुरुजी को मना कर उन्हें अस्पताल ले गया। हालांकि यह कोई साधारण बात नहीं थी कि गुरूजी किसी के लिए अस्पताल जायें।। जैसे ही हम अस्पताल के कमरे में पहुंचे, दीप बिस्तर पर लेटा हुआ था। मैंने खुशी से पुकारा, “देखो दीप, …कौन आये हैं?” वह एकदम उठा और उनके चरणों में गिर पड़ा और बड़ी उत्सुकता से फर्श पर बैठ गया। कहने लगा, “गुरुजी, मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूँ इसलिए मरना नहीं चाहता।”
इतना सुनते ही गुरुजी ने कहा,
“बेटा, जब तक तुम्हारे हाथ में मेरा कड़ा है, तुम्हें मौत नहीं आएगी, इसे कभी नहीं उतारना।”
कुछ दिन वहाँ रहकर दीप अपने घर आ गया और पत्नी, छोटे भाई और उसकी पत्नी के साथ एक आम जीवन बिताने लगा।
उसके भाई की पत्नी गर्भवती थी और इर्विन अस्पताल, मेडिकल चैकअप के लिए अक्सर जाया करती थी। ऐसे ही एक दिन अस्पताल में चैकअप के लिए सब लोग गाड़ी में जा रहे थे। अस्पताल पहुंचने से चन्द मिनट पहले दीप ने कहा कि उसे उसकी तबीयत खराब लग रही है, उसकी पत्नी ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा कि थोड़ी देर में अस्पताल पहुंचने वाले हैं अत: डॉक्टर से चैक करा लेंगे। लेकिन तबीयत कुछ और बिगड़ने पर वह पत्नी पर क्रोधित हो, कहने लगा कि वह उसकी हालत समझ नहीं रही है।
इस तरह 2 मिनट और बीतने पर वह अपना संतुलन खो बैठा। अपने कड़े को देखते हुए कहने लगा कि यह कड़ा बहुत भारी लग रहा है और मैं इसका वज़न सह नहीं पा रहा।
पत्नी ने समझाया कि थोडा सबर करें, अस्पताल बिलकुल नज़दीक है। पत्नी कि सलाह पर उसका क्रोध और बढ़ गया। उसने हाथ से कड़ा उतारा और कहा कि मेरी खराब हालत, इस कड़े के ही कारण है और कड़ा उतार कर गाड़ी से बाहर फेंक दिया। उसकी हालत में एकदम सुधार आ गया और उसने आँखें बंद की तथा सीट पर लेट गया, जैसे सो रहा हो।
अस्पताल पहुंच कर वे सब एमरजेंसी वार्ड की तरफ भागे। बहुत से डॉक्टरों ने दीप का मुआइना किया ….लेकिन वह जीवित नहीं था।
उसके भाई के फोन पर, मैं अस्पताल पहुंचा तो देखा कि डॉक्टर अपनी आखरी कोशिशें कर रहे थे। बिजली के शॉक दे रहे थे और छाती पर पम्पिंग कर रहे थे। आखिर उसे मृत घोषित कर दिया गया।
इस घोषणा को मानने के लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं था, क्यूंकि चन्द माह पहले गुरुजी के कहे शब्द मेरे कानों में गूंजने लगे, “जब तक मेरा कड़ा तुम्हारे हाथ में है, तुम्हें मौत नहीं आएगी।” मैं उस पर झुका और उसे पुकारने लगा। जब उसने उत्तर नहीं दिया तो मैंने उसका हाथ देखा…
कड़ा नहीं था…!!!
उसकी पत्नी से पूछा तो उसने पूरी कहानी सुना दी और गाड़ी में जो कुछ हुआ था और कैसे उसने गुस्से में कड़ा उतार कर फेंका, सब सुना दिया।
—-तो कड़ा उसके हाथ में नहीं था—
गुरुजी के शब्द मेरे कानों में और मेरे सिर के मध्य में गूंजने लगे, “बेटा, जब तक तुम्हारे हाथ में मेरा कड़ा है,
तुम्हें मौत नहीं आएगी –इसे कभी नहीं उतारना।”
…बहुत भाग्यशाली हूँ मैं, कि गुरुजी की आभा और उनकी स्तुति का गायन कर रहा हूँ …और साथ-साथ बारम्बार गुरुजी के कड़े का यश गा रहा हूँ…
बारम्बार–प्रणाम –हे गुरुदेव !