एक दिन शाम की बात है, कि अचानक मैं अचम्भित रह गया, जब मैंने देखा कि गुरुजी पंजाबी बाग हमारे घर आये हैं। हमारे लिए तो ये ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी खुः शी का समय था कि गुरूजी ने हमें, अपने ही घर में दर्शन दिये और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के। मेरी धर्मपत्नी व बच्चे, इस अचानक मिली खु: शी से आन्नद विभोर हो उठे। वे खुःशी से चिल्लाने लगे,
“…..गुरुजी आ गये !! …..गुरुजी आ गये!!” वह शोर मचाते हुए, इधर-उधर भागने लगे। इस अपार खुःशी का बयान शब्दों में कर पाना असम्भव है— ‘गुरुजी का आना और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के…!!”
खुःशी का वर्णन करना बहुत मुश्किल है, कि महीनों-महीनों बीत गये गुरुजी के इंतजार में, और आज आये तो ऐसे..!!
श्री आर. पी. शर्मा तथा एफ. सी. शर्मा जी के अलावा और भी कई लोग, उनके साथ आये थे। मैं और मेरे बच्चे, गुरुजी व और लोगों के लिए कुर्सियाँ लेने दौड़े। गुरुजी मेन हॉल के मुख्य द्वार पर खड़े थे, जहाँ पर करीब 50-60 लोग, आराम से बैठ सकते थे। गुरुजी वहाँ बैठ गये और हमने गुरुजी के पवित्र चरणों में साष्टाँगावत् प्रणाम किया।
क्या उनके चहरे का आलौकिक तेज और क्या उनकी दिव्य मनमोहक मुस्कान, वह दृश्य अविस्मर्णीय था ।
मेरा घर मानों, किसी दिव्य ऊर्जा से भर गया हो…! मैं नहीं जानता कि मैं क्या कहूँ, उस नजारे को शब्दों में बाँधना असम्भव है …..बिल्कुल असम्भव । जैसे महाभारत की कथा में, विदुर के घर भगवान कृष्ण आये, तो वह इतना आत्म-विभोर हो गया कि वह उन्हें केले छील कर खिलाने की बजाये, केले बाहर फेंककर उसके छिलके भगवान कृष्ण को अपर्ण कर रहा था। उसे आभास ही नहीं था कि वह कर क्या रहा है…..? तभी किसी ने उन्हें पकड कर झिझोंडा और कहा— ”विदुर जी, ये आप क्या कर रहे हैं?” …तो कुछ ऐसी ही हालत, उस समय मेरी भी थी। (मेरी भाभी की माँ, जो कि बहुत आध्यात्मिक थीं, और मुम्बई में, उनके पास बहुत से लोग, आध्यात्म और भजन आदि के लिए, आते थे। पिछले कुछ दिनों से अपनी बेटी, यानि हमारी उषा भाभी के पास, पंजाबी बाग आकर रह रही थी। जैसे ही उन्हें, गुरुजी के आने की सूचना मिली, वे तुरन्त हमारे घर गुरुजी से मिलने आई और उनके पास कुर्सी पर बैठ गयी। )
उन्होंने गुरुजी से एक प्रश्न पूछा—”गुरुजी, बताईए, क्या कारण था कि पिछले कुछ महीने पहले, मेरी लड़की का कार एक्सीडेन्ट हुआ…?’
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वह गुरुजी को परखने की कोशिश कर रही हो। गुरूजी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा- ”जिस समय उषा कार चला रही थी, उसके साथ उसकी भतीजी, (रश्मि) भी बैठी थी। वह एक ऐसी जगह से निकली, जहाँ पर कुछ आत्मायें विश्राम कर रही थी। उस समय उषा, अपने मासिक धर्म के दिनों में थी। वे आत्मायें, उसकी तरफ आकृर्षित हुई और उसके शरीर में प्रवेश कर गई। लेकिन उषा, इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ थी। उषा ने, अपना सन्तुलन खो दिया और उसकी कार एक बिजली के खम्बें से जा टकराई और इस तरह एक्सीडेन्ट हो गया।’ गुरूजी ने उसे फिर आगे बताया— “तभी मेरे शिष्य, राज्जे को पता चला, तो वह अपने ड्राईवर बहादुर को लेकर, घटना-स्थल पर पहुंचा। उसने अपनी उषा भाभी और रश्मि को दूसरी कार से अस्पताल पहुंचाया।….अगर राजा वहाँ नहीं पहुंचता, तो वह आज जिन्दा नहीं होती।’ परन्तु सोचने की बात यह है, कि घटना-स्थल पर जो
कुछ हुआ, गुरुजी सब जानते थे!! इसके बाद उसने अपनी, आध्यात्मिक उपलब्धियों के बारे में, गुरुजी से बताना शुरु कर दिया। गुरुजी ने उसके माथे पर, जैसे ही हाथ रखा, उसने बोला—- ”मैं भी आपकी तरह ही ध्यान लगाती हूँ।”
परन्तु ये क्या —? वह बार-बार ‘ध्यान”, ”ध्यान” शब्द दोहरा रही थी, वह अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पा रही थी। फिर उसने एक भजन गाना शुरु कर दिया, लेकिन वह उसकी अगली लाईन ही भूल गई। तब उसने, दूसरा भजन गाने की कोशिश की, पर ये क्या…!! वह उसकी भी अगली लाईन भूल गई।
……हम पहली बार उसे इस तरह भूलते हुए देख, …अंचम्भित रह गये।
गुरूजी ने मेरी तरफ देखा और बोले—– ”बेटा…, अब हम, गुड़गाँव के लिए निकलते हैं” और वे उठे और चलने लगे। इतने में हम क्या देखते हैं कि वह भी उठी और गुरुजी को बाहर कार तक, विदा करने के लिए आई। वह अपने समाज में एक जानी-मानी हस्ती थी, सैंकड़ों लोग उनके समक्ष श्रद्धा-भाव से अपना सिर झुकाते थे और उन्हें ‘माँजी’ के नाम से, सम्बोधित करते थे। लेकिन आज गुरूजी के लिए, जिस आदर और सम्मान के साथ उठी, मेरे लिए ये आश्चर्य का विषय था। क्यों कि आज तक मैंने उसे, किसी के लिए, इस तरह विनम्र होते हुए, पहले कभी नहीं देखा था।
इस एक्सीडेंन्ट के बारे में, जो कुछ मुझे, याद आ रहा है, मैं यहाँ पर लिखना चाहूँगा।
जैसे ही मुझे सूचना मिली, मैं अपने ड्राईवर को लेकर, घटना-स्थल पर पहुंचा और उन्हें, दूसरी कार में डालकर, अस्पताल ले गया। लेकिन रास्ते में मैंने देखा कि मेरी भाभी, अर्द्ध-मूर्छित अवस्था में थी, परन्तु उसने मेरी बाजुओं को कस के पकड़ रखा था और मुझे, उनसे अपने आप को छुड़ाना मुश्किल जान पड़ रहा था।
उस समय मैं, इस बात को समझ नहीं पाया। जब मैं अस्पताल के एमरजैन्सी विभाग में पहुंचा, तो कुछ डॉक्टर तेजी से वहाँ आ गये और घायलों को देखने लगे। एक सीनियर डॉक्टर ने दूसरे डॉक्टर से कहा— ”कि लगता है—इस महिला के बचने की उम्मीद नहीं है, तुम दूसरी को देखो” मैं ये सब सुन कर घबरा गया।
उस समय मुझे, कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। लेकिन तभी……..गुरुजी के वो शब्द, मुझे स्मरण हो आये, जो उन्होने मुझसे कुछ समय पहले कहे थे”यदि तुम किसी की जान बचाना चाहो, तो अपना कड़ा निकाल कर उसके हाथ में डाल देना”
मैंने तुरन्त वैसा ही किया। मैंने वहीं से एक बीकर लिया और उसमे पानी डाल कर उसमे से एक घुट पिया और बाकी जल, अपनी भाभी के मुँह में डाल दिया और गुरूजी से, उनके जीवन के लिए प्रार्थना की। तीसरे दिन जब मैं भाभी से मिलने उनके कमरे में गया, तो वे सबको बता रही थी— ”…मेरा सिर ऊपर की ओर था और मैं उड़ी चली जा रही थी, लेकिन तभी किसी ने मेरे पैर पकड़ कर मुझे वापिस नीचे खींच लिया…।”
कुछ दिनों में, वह बिल्कुल ठीक हो गई।