बड़ा वीरवार था, हमारे जीवन का एक बहुमूल्य दिवस…
हर महीने की तरह, मैं सुबह-सुबह गुडगाँव पहुंचा और गुरुजी के चरण-कमल छुए। मगर आशीर्वाद के बदले गालियाँ सुनने को मिली। गुस्से में कहने लगे, “सुबह-सुबह बच्चों का दिल दुखा कर आया है..?
…जा, …वापिस जा, जिसको डॉट कर आया है उसे और बाकी के सब बच्चों को लेकर आ, तभी सेवा करने दूंगा।”
बात यह हुई थी कि मैं जैसे ही गुडगाँव जाने के लिए बाहर निकला तो गाड़ी नहीं थी। पता चला कि बिटिया अपनी स्कूल ड्रेस लेने के लिए धोबी के पास गयी थी। देर होने की सम्भावना से मैं क्रोधित हो गया था इसलिए उसे कुछ ज्यादा डॉट दिया। अब तो कोई चारा नहीं था मेरे पास, अतः मैं वापिस दिल्ली आ गया। पहले स्कूल गया, बच्चे की प्रिंसीपल को मनाया और बाकी बच्चों को लेकर, वहाँ से बड़ी बेटी पुन्चू को कॉलेज से लिया
और पहुँच गया स्थान पर, चारों बच्चों को लेकर। अपनी गलती का पूरा आभास हो चुका था मुझे। क्षमा याचना की और वे मान गये और फिर सेवा पर बैठने की आज्ञा मिल गयी। इस छोटी से लगने वाली घटना ने मुझे गुरुजी का आकार और उनका छुपा हुआ रुप स्पष्टतया बता दिया।
1. पहली बात यह कि यह कहीं भी हों, जितनी दूरी पर क्यूँ न हों, मेरी हर गति विधि को देख लेते
हैं।
2. दूसरी बात यह कि बच्चों की भावनाओं का कितना ध्यान रखते हैं।
3. तीसरी बात यह कि किसी भी बुराई को मेरे व्यक्तित्व पर छाने नहीं देते। अनेक रुपों वाले मेरे इस मालिक का, मेरे आराध्य गुरुदेव का ऐसा रुप ब्यान नहीं हो सकता। बिलकुल अनोखा है।
ऐ मेरे हजूर, आपको कोटि-कोटि प्रणाम के बाद प्रार्थना है कि कभी भी बिसारना नहीं मुझे। हर पल मुझे देखते रहना।
ब्रह्माण्ड में सबसे महान-साहिब जी !