मेरी सबसे छोटी बेटी चारू स्ट्रा की मद्द से अपनी माँ को नारियल पानी पिला रही थी। उस समय उसकी माँ, गुलशन, बहुत अस्वस्थ थी। उसके एक्सीडेन्ट को हुए करीब पाँच साल बीत गये थे। उसने अपना एक हाथ उसके सिर के नीचे रखा हुआ था और दूसरे हाथ से उसके मुँह में स्ट्रा लगा कर नारियल पानी पिला रही थी। लेकिन यह बहुत मुश्किल प्रतीत हो रहा था क्योंकि कमजोरी की वजह से उसका सिर स्थिर नहीं था। वह इधर-उधर झुक जाता था और चारू को दोनों कार्य एक समय पर करने पड़ रहे थे। अर्थात वह नारियल को स्ट्रा के साथ सम्भालते हुए उनके मुँह में लगाती और उसके सिर को इधर-उधर लुड़कने से रोक भी रही थी। चारु बार-बार इस कार्य को करने की कोशिश करती लेकिन यह मुश्किल कार्य था क्योंकि गुलशन का आत्म संतुलन खो चुका था। चारु सोचने लगी और प्रार्थना करने लगी, “गुरुजी, यदि मेरी मम्मी सिर्फ मेरे कारण ही इस दर्दनाक स्थिति में है, तो उसे जाने दो। मैं अपना ख्याल स्वयं रख लूंगी।” वास्तव में कुछ समय पहले चारू ने गुरुजी से प्रार्थना की थी कि उसकी माँ जीवित रहे, जब तक कि उसकी शादी तथा बच्चे हों। लेकिन उसकी आज की हालत देखते हुए उसने अपना विचार बदल लिया और गुरुजी से प्रार्थना की, कि यदि ऐसे ही जीना है तो उसकी माँ को चला जाना चाहिए। यह बात उसने सिर्फ सोची थी, गुरूजी से कही नही थी और कुछ ही दिनों में उसकी माँ चली गईं। अपनी माँ के दुखद् निधन के बाद वह परेशानी और गहरे दुख के बीच, गुरुजी के पास गयी। वह बहुत अधिक दुखी थी। उसे इतनी परेशानी की हालत में देखने पर गुरुजी ने कहा, “चारया, तू आपे ही ते मेनूं कया सी कि गुरुजी, मैं अपना ख्याल आप रख लवांगी, मम्मी नूं जान दयो ।” चारु यह सुन कर स्तब्ध रह गई। ऐसा उसने गुरुजी के समक्ष रू-ब-रू होकर कभी नहीं कहा था। माँ की दयनीय हालत देखकर उसके मन में विचार जरुर आया था कि वह प्रार्थना करेगी। गुरुजी, “मुझे तो यह विचार आया था और मैंने आपसे प्रार्थना की थी, लेकिन आपने मेरे विचारों को भी सुन लिया…?” आप परमेश्वर हैं गुरुजी…….
….प्रणाम जी