पूरे साल में, केवल एक ही दिन आता है जिस दिन सभी शिष्य गुरुजी की पूजा करते हैं।
गुरूपूर्णिमा के दिन से कुछ दिन पहले सम्पूर्ण भारत से ही क्या विदेशों से भी लोग उनकी इस पूजा में सम्मिलित होने के लिए आते हैं। गुरुजी अर्द्धरात्रि 2 : 15 बजे से आशीर्वाद देना शुरु करते और अगले दिन मध्य-रात्रि तक यह सिलसिला जारी रहता।
गुरुजी द्वारा आशीर्वाद देने का यह सिलसिला इसी तरह सारा दिन चलता रहता था। एक बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन एकत्र होते और लगभग दो किलोमीटर लम्बी लाईन में खड़े होकर गुरुजी के दर्शनों का सारा दिन इन्तजार करते थे। अपने गुरुजी के प्रति प्रेम प्रकट करने का नजारा देखने का अनुभव अपने आप में अनोखा था।
दोपहर का समय था। सूरज बिलकुल सिर पर था और बहुत असहनीय गर्मी थी। तभी दो सेवादार गुरुजी के पास आये और प्रार्थना करने लगे कि गुरुजी अपने उन श्रद्धालुजनों पर भी कृपा कीजिए जो बाहर सड़क के किनारे लाईन में आपके दर्शन के लिए इस असह्य गर्मी में खड़े हैं। उनमें से एक सेवादार बोला—
”गुरुजी, बारिश करा दो। …लोग, गर्मी से बहुत परेशान हैं।”
गुरुजी ने मुझे बुलाया और कहा, ”बेटा, बाहर देखो कि आसमान में कोई बादल नजर आ रहे हैं?” किसी को बाहर भेजा तो उसने देखकर गुरुजी को बताया कि स्थान से काफी दूर एक छोटा सा बादल नज़र आ रहा है।
तभी कुछ पलों के बाद ही एक अविश्वस्नीय घटना घटी। मैंने देखा कि स्थान के बाहर लगभग दो किलोमीटर के ऐरिया में बारिश हो रही है और पूरा ऐरिया जल-मग्न हो गया है तथा ठण्डी हवाएं चलने लगी है। मैंने बाहर जाकर देखा कि दो किलोमीटर तक लाईनें वैसी की वैसी लगी पड़ी हैं। उनमे से एक भी क्या बच्चा क्या बूढ़ा और क्या जवान स्त्री या पुरुष मुझे थका हुआ या परेशान नज़र नहीं आया। सभी लोग बहुत खुः श थे और वे सिर्फ ये ही सोच रहे थे कि बस हमें गुरुजी के दर्शन करने हैं।
जहाँ बरसात की कोई सम्भावना ही नहीं थी, वहाँ बरसात हुई। ये बे-मौसम की बारिश जो केवल उन लोगों के लिए हुई, जो लोग बस गुरुजी का दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए लाईन में गुरुजी का इन्तजार कर रहे थे।
ये बे-मौसम की बरसात उन्होंने कैसे करवाई, इसके बारे में कुछ भी व्याख्या करने में, मैं असमर्थ हूँ।