बड़े वीरवार का दिन था। बेसमैन्ट में और शिष्यों के साथ मैं भी बैठा लोगों की सेवा कर रहा था। यानि उन्हें लौंग, इलायची और जल दे रहा था। गुरुजी अपने कमरे में थे और सभी श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के उपरान्त, उन्हें शिष्यों के पास जाने का निर्देश दे रहे थे। तभी मेरे पास, एक व्यक्ति आया और बोला– ”गुरुजी, (अधिकतर लोग, गुरुजी के शिष्यों को, इसीतरह सम्बोधित करते थे) मुझे अदालत ने मौत की सजा सुनाई है।…गुरुजी, मुझे बचा लीजिए।”
उसकी बात सुनकर, मैंने उससे पूछा, ”क्या ये सच है कि तुमने कत्ल किया है?” उसने तुरन्त उत्तर दिया— ”हाँ गुरुजी, मैंने कत्ल किया है।”
यह सुनकर, मैं हिल गया और फिर मैंने उससे पूछा– ‘‘क्या वह ऊपर गुरुजी के कमरे में उनसे मिल चुका है…? उसने बताया कि वह गुरुजी से पहले आशीर्वाद लेकर ही नीचे आया है और उन्होंने ही उसे मेरे पास आशीर्वाद लेने भेजा है।
मैं एकदम, वहाँ से उठा और उसके द्वारा बताई गई सच्चाई बताने गुरुजी के पास गया।
गुरुजी बोले ”बेटा, मैं जानता हूँ कि उसने कत्ल किया है।” मैंने बोला ”गुरुजी, फिर भी आप उसे बचाना चाहते हैं?
गुरुजी बोले ‘बेटा, वह गुरू की शरण में आया है और उसने अपना गुनाह कबूल किया है। मैंने उसे मॉफ कर दिया है और उसे बचाना है।”
मैंने गुरुजी से फिर सवाल किया– ”गुरुजी, यह जानते हुए भी कि उसने क्या गुनाह किया है..!! उसने एक इन्सान का कत्ल किया है। क्या वह सजा का हक़दार नहीं है?”
गुरुजी ने, मेरी तरफ देखा और अपने पास कारपेट पर बैठने का आदेश दिया और वे मुझसे बड़ी गम्भीरता के साथ बोले : ”जो कोई जैसा कर्म करता है भगवान उसे वैसा फल देता है ।” ”सजा देनी है तो वो देगा, मैं नहीं।
मैं तो गुरु-रुप में हूँ ।। माँगने वाले को मॉफ करना ही है मुझे…। क्योंकि, मॉफ करना ही मेरी प्रकृति है… ।।”
करीब सात या आठ महीने बाद, हमेशा की तरह बड़े वीरवार के दिन ही मैं बेसमैन्ट में सेवा कर रहा था? कि एक व्यक्ति बड़ा सा लड़डुओं का डिब्बा लेकर मेरे पास आया और बोला, गुरुजी यह प्रसाद है। मैंने उससे वह डिब्बा लेकर माथे से लगाया और वहाँ पर खड़े सेवादार को पब्लिक में बाँटने के लिए दे दिया।
तभी उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा– ‘‘लगता है गुरजी, आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं वही हूँ, जिसे गुरुजी ने फाँसी से बचाया है, मैं बरी हो गया हूँ।”
वाह गुरूजी वाह… कमाल है।