डॉक्टर शंकर नारायण, जो भूमि विज्ञान के ज्ञाता और पुस्तक लेखक के अतिरिक्त, गुरुजी के ऑफिस में गुरुजी के सीनियर भी थे। एक दिन वे मुझे पकड़ कर, एक कोने ले गये और बोले– ‘राजपॉल, मुझे तुमसे एक व्यक्तिगत बात करनी है। कल हमारे ऑफिस में एक कॉन्फ्रेन्स थी। जिसमें सभी ऑफिसर आये थे और पत्थरों की जाँच की चर्चा चल रही थी। जो पत्थर मेज पर रखे गये थे, उन पत्थरों की पहचान करना ही कॉन्फ्रन्स का मुख्य विषय था।”
एक पत्थर की तरफ इशारा करते हुए, मैंने कहा— ”यह लाईम स्टोन है।” लेकिन गुरुजी कहने लगे…. नहीं डॉक्टर साहब, (ऑफिस में गुरुजी, उन्हें इसी नाम से सम्बोधित करते थे) यह तो सैण्ड स्टोन है। एक अधिकारी होने के नाते मैं ये मानता था कि वह लाईम स्टोन है। लेकिन वहाँ मैंने उनकी बात तो मान ली, लेकिन दिल से नहीं। क्योंकि सभी जानते हैं कि मैं उनकी बात को काट नहीं सकता। शाम के समय, जब मीटिंग समाप्ति के निकट थी, तो यह ऐलान कर दिया गया कि वह सैण्ड स्टोन ही है। सभी के साथ मैं भी इससे सहमत था कि वह सेण्ड स्टोन ही है।
डॉक्टर शंकर नारायण बोले—- ‘राजपॉल, मैंने इस भूमि विज्ञान के अध्ययन में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। मैं हमेशा अपने निष्कर्ष को ही ठीक समझता था। लेकिन आज पता चला कि सिर्फ गुरजी ही तथ्यों और सच्चाई को जानते हैं।” डॉक्टर फिर बोले, ”…..राजपॉल, आज मेरी सारी पढ़ाई मेरा सारा ज्ञान और यहाँ तक कि ऑफिस का मेरा पद भी,गुरुजी के सामने छोटा पड़ गया है।” गुरुजी को सिर झुका कर प्रणाम है। राजपॉल, गुरुजी और सिर्फ गुरुजी को ही सच्चाई और वास्तविकता का पूर्ण ज्ञान है। हमारा ज्ञान हमें, कभी भी कहीं भी धोखा दे सकता है। ……लेकिन गुरुजी, हमेशा ही ठीक होते है।