वह भी एक सुबह थी, जब गुड़गांव में यह घटना घटी। गुरुजी को अपने ऑफिस जाना था और उन्होंने मुझे आदेश दिया कि कार तुम चलाओ और वे मेरी साथ वाली सीट पर बैठ गये।
मैंने कार स्टार्ट की और रेलवे रोड़ को पार कर बाँये तरफ मुड़ा। मारुति फैक्टरी की तरफ से होते हुए, मैं धौला कुआँ की तरफ जा रहा था, तो अचानक मुझे ऐसा लगा कि गुरूजी मुझे पंजाबी भाषा में धीरे से डाँट रहे हैं—
”….ओय, हुन ते जाग जा, गड्डी, ट्रक दे अन्दर ई वाड देणी आ?” (ओय अब तो जाग जा, कार ट्रक के नीचे ही ले जानी है क्या?)
——और मैं जाग गया—— (मैं कार चलाते समय सो गया था)
मैंने आँखें खोली और तुरन्त ब्रेक दबा दी। मैंने देखा कि मेरे आगे करीब पन्द्रह फुट की ही दूरी पर एक ट्रक चल रहा है। मेरी कार तेजी से चल रही थी और अगर गुरुजी मुझे, केवल दस सैंकण्ड और न उठाते, तो मैं ट्रक के पीछे से उसके नीचे घुस जाता। मैंने तुरन्त ब्रेक लगाई और अपने आप को बहुत शर्मिन्दा महसूस किया।
मैंने घबराते हुए, गुरुजी से पूछा—”गुरुजी, मैं कब सो गया?” गुरजी दुबारा मुझे एक मीठी सी गाली देते हुए बोले—
“ओय, तू जागा ही कब था? जब से रेलवे रोड़ से मुड़ा, वहीं से सो रहा है।”