गुरु पूर्णिमा का समय था। गुरु पूजा हो चुकी थी। लेकिन लंगर सेवा चल रही थी। हजारों की संख्या में लोग गुरुजी से गुरूपूर्णिमा के अन्तिम आशीर्वाद का इन्तजार कर रहे थे। स्थान पर बहुत भीड़ थी। दोपहर के समय गुरुजी ने मुझे बुलाया और कहा— तुम पंजाबी बाग चले जाओ और आराम करो लेकिन शाम को आ जाना, ….क्योंकि आज तुम्हारी देशी बुआ की शादी है। मैंने कहा– ”गुरुजी यह कैसे हो सकता है…!! हजारों की तादाद में लोग यहाँ हैं…… || कुछ स्थान के हॉल में हैं और कुछ कमरों में है। कुछ सड़क पर हैं, तो कुछ लोग बगीचे में बैठे हैं। कुछ लोग, जो बाहर से आये हुए हैं, वे तो अपने-अपने परिवार के साथ इधर-उधर रुके हुए हैं।”
कमाल है… गुरुजी कहने लगे—- ”बेटा यहाँ पर शाम को कोई भी नहीं होगा और शादी का समारोह बड़ी शान्ति से हो जायेगा। मैं नहीं चाहता कि कोई किसी तरह का उपहार मेरे पास लाये।”
मैंने पूछा— ”परन्तु गुरुजी ये सभी लोग जाऐंगे कहाँ—-?”
गुरुजी बोले— ”राज्जे, जब तक मेरी मर्जी नही होगी, कैसे कोई आ सकता है?”
मुझे गुरुजी की ये गहरी बात, बिलकुल समझ में नहीं आ रही थी कि हजारों की संख्या में लोग स्थान पर इधर-उधर घूम रहे हैं और गुरुजी कह रहे हैं कि मेरी इच्छा के बगैर यहाँ कैसे कोई आ सकता है…..? इतने लोग यहाँ पर हैं। भीड़ थोड़ी कम जरुर हो सकती है, लेकिन यहाँ रात को एक भी व्यक्ति नहीं होगा, बात समझ में आने वाली नहीं थी।
खैर छोड़ो—– मैं गुरुजी की आज्ञा का पालन करते हुए, पंजाबी बाग चला गया और फिर दुबारा शाम को जब गुड़गाँव पहुंचा, तो मैं दंग रह गया। मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। स्थान पर एक भी व्यक्ति नहीं था। बरामदे में गुरुजी के प्रिय शिष्य आर. पी. शर्मा जी, टहल रहे थे। मैंने उनसे पूछा, क्या गुरू जी अन्दर हैं?
उन्होंने ‘हाँ’ कहा। मैं उनके कमरे में जाने के लिए आगे बढ़ा, तो गुरूजी के दर्शन मुझे कमरे के बाहर ही हो गये। गुरूजी को देखकर, मैं मुस्कुराया और धीरे से बोला—
”…..गुरुजी, बाहर तो कोई भी नहीं है,
सारी भीड़ कहाँ गायब हो गई?”
गुरुजी गम्भीर हो गये और बोले—
”मैंने कुछ अदृश्य सीमायें बाँध रखी हैं, मैं जिसे चाहता हूँ, वही स्थान पर आ सकता है,
….दूसरा कोई नहीं।”
आखिर शादी का कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से मनाया गया। दूल्हा भी घोड़ी पर आया। लेकिन शादी में गुरूजी के केवल कुछ शिष्य ही थे। ना तो संगत थी और न ही भक्तजन ।
ताज्जुब है– यहाँ आकर इन्सानी दिमाग, निष्क्रिय हो जाता है।
- गुरुजी ने यह सब, कैसे किया?
- किस तरह की मर्यादाओं और बंन्दिशों का, जिक्र कर रहे थे गुरुजी, जो उन्होने लगाई हैं?
- किस तरह गुरुजी ने हजारों की संख्या में लोगों के दिमाग को घुमा दिया? ।
- कौन से ज्ञान का गुरुजी ने यहाँ प्रयोग किया है?
इसका यहाँ कोई जवाब नही है।
कृप्या मुझे अपने गुरु के पवित्र चरणों में, प्रणाम करने दो, जैसा कि मेरी पत्नी गुलशन उन्हें सम्बोधित करती थी, कि वह तो सम्पूर्ण सृष्टि के मालिक हैं।
मैंने गुरुजी के साथ हुए, इस वार्तालाप के बारे में, अपने बड़े गुरू भाई, श्री एफ. सी. शर्मा और सीताराम जी को भी बताया।