गुरुजी अपने ऑफिस सम्बन्धित कार्य से, हिमाचल प्रदेश के टूअर पर थे। हमेशा की तरह गुरुजी, अपना कार्य समाप्त करने के उपरान्त, उनके पास आने वाले लोगों की हर प्रकार की समस्याओं का समाधान कर रहे थे।
एक दिन की बात है, मैं गुरुजी के पवित्र-चरणों में बैठा हुआ था कि तभी चार भाई, गुरुजी के पास आये और हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करने लगे, ”….गुरुजी, हमारी माँ बहुत बीमार है और अन्तिम साँसे ले रही है। कृपा कर उसे बचा लीजिए, हमें परिवार में उसकी बहुत जरुरत है।’ वे लोग पुनः बोले— “हम जानते हैं कि आप उन्हें बचा सकते हैं, …प्लीज गुरुजी, उन्हें बचा लीजिए।”
गुरुजी ने उन भाईयों का, अपनी माता के प्रति प्रेम और गुरुजी के प्रति विश्वास को देखते हुए, मुझे इस आदेश के साथ एक ताँबे की अंगूठी देते हुए कहा—
”राज्जे, तुम इन लोगों के साथ जाओ और यह अँगूठी तुम इनकी माँ की, उंगली में पहना दो।’
फिर उन भाईयों की तरफ मुड़े और बोले— ”जाओ, जब तक यह अंगूठी तुम्हारी माँ की उंगली में है, वह नहीं मरेगी।” मैं उन लोगों के साथ उनके घर पहुंचा। वहाँ जाकर देखा कि उनकी माँ नीचे फर्श पर बेहोश पड़ी अन्तिम साँसें ले रही थी। गुरूजी ने मुझे जैसा आदेश दिया था, मैं वह अंगूठी लेकर उसके पास पहुंचा और जैसे ही मैंने उसे अँगूठी पहनाने के लिये उसकी उंगली को पकड़ा वह होश में आने लगी और उसने मेरी बाजु को कस कर पकड़ा और मुझे अपनी ओर खीचना शुरु कर दिया। मेरे लिए यह एक असाधारण, अजीब अनुभव था। मुझे कुछ समझ नहीं आया और तब मैंने जोर लगाकर अंगूठी उसे पहना दी।
मैंने वापिस आकर, गुरुजी को सारी बात बताई। गुरुजी कहने लगे— ”बेटा, अब वह तब तक नहीं मर सकती, जब तक कि उसके हाथ में वह अंगूठी है।”
हम वहाँ कई दिनों तक रहे। लोग गुरुजी के पास आते रहे और गुरुजी उनका काम करते रहे।
चार दिन बाद वे चारों भाई दुबारा गुरुजी के पास आये और बोले— ‘गुरुजी, हमारी माँ अपना शरीर नहीं छोड़ रही, उसके प्राण नहीं निकल रहे।” गुरुजी बोले— ”बेटा, जब तक उसके हाथ में वह अंगूठी है, …वह नहीं मर सकती, ऐसा ही तो तुम, चाहते थे……!!” वह बोले— ”गुरुजी, ये पहाड़ी इलाका है। हमारे घर में बहुत से सगे-रिश्तेदार आकर रुके हुए हैं। वे वापिस नहीं जायेंगे, जब तक कि अन्तिम क्रिया न हो जाये। हम लोगों के लिए भी उन्हें सम्भालना मुश्किल हो रहा है। कृपा करके गुरुजी, वह अँगूठी उसके हाथ से उतार दीजिए…… गुरुजी बोले—
”मैं अँगूठी पहना तो सकता हूँ, परन्तु उतार नहीं सकता, बेटा…” तब उनमें से एक बोला—‘ ‘गुरुजी, फिर इसका क्या उपाय है?” गुरुजी बोले— ”बेटा, यदि तुम उसके हाथ से अंगूठी उतार दोगे, तो वह शरीर छोड़ देगी।’ वे सब, एक दूसरे की तरफ देख रहे थे। वे एक दूसरे को अंगूठी उतारने को कह रहे थे, लेकिन कोई भी यह काम को करने को तैयार नहीं हो रहा था। आखिर किसी एक भाई ने रात के अंधेरे में ऐसा कर दिया, तो सुबह उनकी माँ इस दुनिया में नहीं थी।
यह तो सब अच्छी तरह से जानते है :
जीना और मरना सिर्फ भगवान के हाथ में है।
लेकिन मैं इस बात पर सोचने को मजबूर था कि….
वह कौन सी विद्या है ? जिससे वह अंगूठी, महिला की उंगली में डालकर उन्होंने उसकी मौत पर, काबू पा लिया…!!
ऐसी विधा तो सिर्फ गुरुजी, आप के पास ही है। क्योंकि उस घटना के समय मैं भी वहाँ उपस्थित था। इसलिए मैं जानना चाहता हूँ और आपसे अनुरोध करता हूँ,
…….हे गुरुओं के गुरू, महागुरू…!!,
आप कृपा कर इस सच्चाई पर, कुछ तो प्रकाश डालिए, उन भक्तजनों के लिए जो आपके पास सिर्फ आपके लिए आते हैं और जीवन की सच्चाई की, जिज्ञासा रखते हैं।