गुरुजी पर अपार श्रद्धा और पूर्ण विश्वास, रखने वाला भक्त डॉक्टर सूरी एक बार गुरुजी के दर्शन करने और उनसे आशीर्वाद लेने गुड़गाँव स्थान पर आया। वह बरामदे में खड़ा उनका इन्तजार कर रहा था कि गुरुजी आये और उसने उन्हें प्रणाम किया। गुरुजी बोले— ”जब तक मैं वापिस ना आ जाऊँ, …तुम स्थान पर बैठो और इंतजार करो’ डॉक्टर सूरी बोले—- ”गुरुजी, मेरे ऑफिस में आज निरीक्षण (Inspection) है। मैं आपसे वहाँ जाने की इजाजत लेने आया हूँ।
गुरुजी बोले— ”तुझे कहा ना जब तक मैं वापिस आऊं, जाओ ….और स्थान पर बैठो”
वह चुपचाप जाकर, स्थान पर बैठ गया। शाम के करीब साढ़े चार बजे जब गुरुजी वापिस आये तो उन्होंने देखा कि डॉक्टर सूरी स्थान पर ही बैठे हैं। गुरुजी डॉक्टर सूरी को देखकर बोले—- ”अरे………!! तुझे तो मीटिंग में जाना था,
…..तू गया क्यों नही ?”
डॉक्टर ने बड़े अदब व धीरे से जवाब दिया—‘ ‘गुरुजी, आपने ही तो कहा था कि जब तक मैं वापिस ना आऊं बैठे रहो।…तो मैं कैसे जा सकता था?” गुरुजी शरारतपूर्ण अंदाज में बोले—-
“खुद तो आप बैठे रहते हैं और मुझे इनके काम करने पड़ते हैं।”
फिर उसे आशीर्वाद दिया और वह अपने घर दिल्ली चला गया। अगले दिन डॉक्टर सूरी अपने ऑफिस गया। वह अपने साथ बीते हुए कल की छुटटी का प्रार्थना पत्र भी लेकर गया। उसने वह प्रार्थना पत्र अपने ऑफिसर को दिया और कहा कि कल वह किसी काम से गुड़गाँव गया था और वहीं पर अटक गया। इसलिए वह ऑफिस में निरीक्षण कार्य के लिए नही आ सका।
खुः श किस्मती से वह ऑफिसर उसका दोस्त भी था। वह आश्चर्य चकित होकर कहने लगा— ”ये तुम क्या कह रहे हो? कल तो तुम यहीं ऑफिस में ही तो थे। तुम मीटिंग में भी थे और तुमने रजिस्टर में अपने हस्ताक्षर भी किये थे।” उसने उसे रिकार्ड रुम में जाकर चेक करने को भी कहा।
डॉक्टर उसकी बात सुनकर भौंच्चका सा रह गया। वह अपनी सुध-बुध खो बैठा। उसको तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, तब आखिर वह रिकार्ड रुम में गया, तो देखा कि वह हस्ताक्षर तो उसी के थे।
वह चिल्लाया ”ये कैसे हुआ…!!”
वह बोला— “गुरुजी तो गुरुजी हैं”
उसने बड़े प्यार और विश्वास के साथ आकाश की तरफ देखा और मन ही मन गुरुजी का धन्यवाद किया।।