गुरुजी साल में कम से कम दो तीन बार मुम्बई जाते थे। लोग उनका वीरजी (कुलबीर सेठी, जो कि यश सेठी के बडे भाई थे, वही यश सेठी, जिसे गुरुजी ने चमत्कारी ढंग से ठीक किया था) के घर गुरुजी का इन्तजार करते थे। गुरुजी ने उनके घर स्थान बनाया था। वीरजी और उनके भाई संदीप सेठी को आध्यात्मिक शक्तियाँ, इस आदेश के साथ दी थी कि वे मुम्बई में लोगों की सेवा करें। बहुत से लोगों ने वहाँ आना शुरु कर दिया था और वे ठीक भी होने लगे थे।
एक बार जब गुरुजी वहाँ गये तो उस दिन वहाँ सुबह से रात तक लोगों की भारी भीड़ थी। गुरुजी, सबकी परेशानियाँ दर्द और बीमारियाँ दूर कर रहे थे। तभी एक सरदार जी, जो लगभग साठ साल के होंगे, आये और गुरुजी से कहने लगे— ”गुरुजी, मेरे घुटने काम नहीं करते, वे बहुत सख्त हो गये है मैं अपनी टाँगें भी नहीं उठा सकता और न ही इन्हें मोड़ सकता हूँ।”
गुरुजी ने बड़े ही सहज भाव में मुझे आदेश दिया—
“राज्जे, इसकी टाँग ठीक कर दे।”
मैंने उसके घुटनों को छुआ। गुरुजी, जो उस समय बिस्तर पर बैठे थे, सरदार जी से बोले—-
”…..बेटा, अपनी टाँगे ऊपर उठाओ और
मोड़ कर देखो, ….ये ठीक हो गयी हैं।” उसने ऐसा ही किया, वह बहुत अधिक चकित था…!! ये कैसे हो गया वह खुः शी से चिल्ला उठा। उसके मुख से निकला—”…ओय!! ”
वह अपनी टाँगें एक-एक कर उठा रहा था और उन्हें मोड़ कर बार-बार देख रहा था। खुः शी उसके चमकते चेहरे पर साफ झलक रही थी। वह दृश्य वास्तव में ही अविस्मरणीय था। वह गुरुजी को देख रहा था और बार-बार अपनी टाँगें ऊपर उठा-उठा कर देख रहा था। उसकी आँखों में उसके हाव-भाव, उसके चेहरे पर सफेद दाढ़ी के बीच खुः शी का का ब्यान करना, संभव नहीं है।
गुरूजी ने सिर्फ दो काम किये : –
- उसकी समस्या को सुना।
- अपने शिष्य राजपॉल को उसकी टाँगें ठीक करने का आदेश दिया
बस इतना ही—–
लेकिन इतने सालों से पुराने जोड़ों के दर्द को इस तरह से ठीक कर देना……!! गुरुजी ने सिर्फ उसकी समस्या को सुना और बस कह दिया और परिणाम उनकी इच्छानुसार सबके सामने था।
क्या इस तरह का कोई उदाहरण कहीं और मिल सकता है?