गुरुजी द्वारा कुछ विशेष निधारित नियम हैं, जो हम सब के लिए आध्यामिक उपलब्धि और शान्तिपूर्ण अच्छी जिन्दगी जीने के लिए मानना जरुरी है। जिसमें से एक नियम वीरवार के दिन शेव न करना भी है।
वीरवार का दिन था। जब मै सुबह नहाने के लिए गया, तो गलती से मैंने शेव कर ली। लेकिन तभी मुझे अपनी गलती का अहसास भी हो गया। स्थान पर लोग आ चुके थे और मुझे सेवा के लिए जाना था। स्थान के कमरे में जाने से पूर्व, मैं गुड़गांव पहुंचा और फिर गुरुजी के कमरे में चला गया। उस समय तक गुरूजी, माताजी के साथ बिस्तर पर ही थे। मैंने दरवाजे को धक्का देकर खोला और उनकी रजाई में अपना सिर और मुंह ढका, और गुरुजी के चरण स्पर्श कर पकड़ लिये।
कुछ समय निकलने के बाद, जब गुरूजी ने देखा कि मैं उनकी रजाई में ही हूँ तो गुरुजी जोर से बोले—
”चल, बाहर आजा अब”
मैंने जवाब दिया—‘ ‘पहले मॉफ कर दो फिर बाहर आऊँगा।” गुरुजी ने पूछा— “तुमने गलती क्या की है?” लेकिन मैंने कहा— ”पहले मॉफ करोगे, तो बताऊँगा।”
इस बीच, माताजी हंसने लगी और बोली— ”चलो कर दो ना माफ। ……बच्चा ही तो है।” लेकिन गुरुजी माता जी से बोले— “पर बताये तो सही, करके क्या आया है, माँ दा खसम?”
पर माताजी ने किसी तरह से गुरुजी को मना लिया। गुरुजी बोले— ”अच्छा जा, मॉफ किया, अब बाहर निकल । …पर बता तो दे।” मैंने चेहरा ढके हुए ही कहा—”गुरुजी आज वीरवार को मैंने गलती से शेव कर ली है। पर आपने मुझे माफ तो कर दिया है ना गुरुजी ?”
इतने कड़े अनुशासन वाले गुरुजी, इतने दयालु और इतना विशाल हृदय रखते हैं, यह मैंने आज देखा।