एक परिवार लगभग चालिस वर्षीय एक अद्भुत मरीज़ को गुरुजी के पास लेकर आया, जिसने पिछले चार-पाँच महीने से कुछ भी नहीं खाया था। वह बिलकुल एक कंकाल की तरह लग रहा था। वे गुरुजी के पास आया और बताया कि जब वह खाना चबाता है और उसे निगलने की कोशिश करता है तो काँपने लगता है और सारा खाना बाहर निकाल देता है। उसका गला उसे कुछ भी निगलने की इजाजत नही देता है। गुरुजी ने उससे कहा कि तुम कल आना मैं तुम्हें खाने के लिए एक पराँठा दूंगा। उसने गुरुजी की तरफ देखा और पूछा— “गुरुजी, क्या मैं खा पाऊँगा?”
अगले दिन उस सरदारजी के परिवार वाले, उसको साथ लेकर तथा एक सुन्दर सी प्लेट में एक पराँठा लेकर आये। यह देख कर गुरुजी गुस्से में आकर बोले— ”आप लोग यहाँ से चले जाइए।” उन्होंने आगे कहा—
”क्या मैं, एक पराँठा देने के लायक भी नहीं हूँ कि वह भी तुम,अपने घर से लेकर आये हो?” उसके परिवार के सदस्यों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे माफी मांगने लगे। परन्तु गुरुजी ने उन्हें अगले दिन आने का आदेश दिया। उन्होंने इसके लिए गुरूजी से और कुछ भी नहीं कहा और चुपचाप चले गये।
दुबारा अगले दिन जब वे लोग आये, तो गुरुजी ने अपने शिष्य ‘वीरजी’ की तरफ देखा और उन्हें एक सुन्दर पराँठा लाने को कहा। गुरुजी ने अपने, एक शिष्य से कहा कि वह उस पराँठे में से एक टुकड़ा ले और चखकर बाकी उसके मुँह में डाल दे। उस शिष्य ने ऐसा ही किया। सरदार जी ने उसे चबाना शुरु किया। करीब तीन-चार मिनट के बाद जब उसने, उस पराठे के कौर को निगलना चाहा, तो वह काँपने लगा और उसकी आँखें खुली की खुली रह गई। इससे पहले कि वह उल्टी करता, गुरुजी उठे और अपने दाहिने हाथ की उल्टी तरफ से उसके सिर पर मारा और फिर दूसरे हाथ से भी ऐसा ही किया। फिर दुबारा मारने से पहले, गुरुजी ने उसे ऊंची आवाज़ में कौर को निगलने का आदेश दिया। उसने ऐसा ही किया वह पूरा पराँठा खा गया और वह बिलकुल ठीक हो गया।
जब गुरुजी, उसे मार रहे थे, तो उसके परिवार के सदस्य, एक दूसरे की तरफ देख रहे थे कि यह क्या हो रहा है…? क्योंकि वह पहले से इतना कमजोर है और जिसे अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए भी किसी दूसरे की मद्द लेनी पड़ती है। लेकिन उनमें से, किसी में भी इतना साहस नहीं था कि वे कुछ बोलते या कुछ करते।
गुरूजी ने पिछले चार-पाँच महीनों से बीमार व्यक्ति को कुछ ही मिनटों में चमत्कारिक ढंग से ठीक कर दिया। गुरुजी ने उन्हें, अगले दिन आने का आदेश दिया।
अगले दिन जब वह, गुरूजी के पास आया, तो गुरूजी से कहने लगा—- ”गुरुजी, क्या मैं रसगुल्ले खा सकता हूँ?” गुरुजी बोले—- “हाँ बेटा” और गुरुजी ने उसे, उसके नये जीवन का आशीर्वाद दिया, जिसे सभी डॉक्टर बचाने में असमर्थ रहे।