अपने शयनकक्ष में मैं सो रहा था। मैंने स्वप्न में अपने छोटे भाई को देखा, जो मुझसे कह रहा था—- ”उठो हमारे बड़े भाई, सत्यपाल की मृत्यु हो गई है।” मैंने उसे नज़रादाज़ कर दिया और फिर से सो गया। कुछ देर बाद वह फिर आया और पुनः याद दिलाते हुए बोला— ”तुम अभी तक सो रहे हो? उठो, हमारे बड़े भाई सत्यपाल की मृत्यु हो गई है। लेकिन इस बार भी मैं उसकी बात को सुना-अनसुना करके, दुबारा सो गया। इस बार मेरा भतीजा सुधीर, मेरे सपने में दौड़ते हुआ आया और उसने मुझे मेरे बड़े भाई, सत्यपाल की मृत्यु की सूचना दी।
जब मुझे, तीसरी बार सपने में यही संदेश मिला तो मैं डर कर उठ गया और अपनी पत्नी गुलशन को जगाया और उन्हें अपने सपने के बारे में बताया तथा उन्हें गुरुजी के पास गुड़गाँव चलने के लिए तैयार होने के लिए कहा।
उस समय रात के करीब साढे-ग्यारह बजे थे। मैं अपनी गाड़ी की चाबी लेने सीढ़ियों से ऊपर गया, तो मेरी बड़ी भाभी ने दरवाजा खोला और मुझसे मेरी परेशानी का कारण पूछा। मैंने उन्हें अपने सपने के बारे में बताया और कहा कि मैं गुरुजी के पास गुड़गाँव जा रहा हूँ और मैं अपनी पत्नी गुलशन के साथ गुड़गाँव चला गया।
जब हम गुड़गांव पहुंचे, तो रात्रि के करीब साढ़े-बारह बज चुके थे। मैंने बहुत धीरे से मेन गेट को खोला और हम बरामदे में ही बैठ गये और गुरुजी का इंतजार करने लगे।
एक गुरू शिष्य होने के नाते मैं जानता था
कि रात्रि बारह बजे के बाद,
गुरू को नहीं जगाया जाता। इसलिए हम पूरी रात, बरामदे में ही गुरुजी का इंतजार करते रहे।
सुबह छ: बजे गुरुजी अपने कमरे से बाहर आये और शौच आदि से निवृत होकर वापिस अपने कमरे में चले गये। किन्तु जाते-जाते टिप्पणी करते हुए निकल गये–
“बड़ा मोह है अपने भाई के साथ !!”
कुछ देर बाद, गुरुजी ने मुझे बुलाया और कहा— ‘तुम्हारा भाई पेरिस जाने से पहले, मुझसे मिलकर गया था” उन्होंने आगे कहा— ”अब अगर उसका विमान र्दुघटनाग्रस्त हो भी जाता है, तो भी वह नहीं मर सकता। इसकी चिन्ता तुम क्यों करते हो…? अगर ऐसा होना होता, तो मैं कभी उसे जाने की इजाज़त ही नहीं देता।” उन्होंने आगे कहा—- ”तुम अब उस सपने को भूल जाओ और नाश्ता करो।” जब हम अपने घर पहुंचे, तो उस समय हमारे घर के लोग सत्यपाल की कुशलता जानने के लिए टेलीफोन पर लंदन और पेरिस बात कर रहे थे और उधर से बहुत से लोगों ने बताया कि वह वहीं पर है और बिलकुल ठीक है। बहुत सारी टेलीफोन कॉल करने के बाद सभी घर वाले आखिर सन्तुष्ट हो ही गये। लेकिन जैसा कि आप जानते ही हैं कि मैं और मेरी पत्नी, सुबह सवा छः बजे ही इस चिन्ता से मुक्त हो गये थे।
गुरुजी को सच्चाई जानने के लिए किसी टेलीफोन की आवश्यकता नहीं है,
वे तो अन्तरयामी हैं और अपनी बन्द आँखों से कहीं भी,
कुछ भी देख सकते हैं।