कुछ लोग, जिनमें श्री आर. पी. शर्मा, श्री मारवाह भी थे, कार से गुरुजी के दर्शन करने के लिए शिमला आये थे, आशीर्वाद देने के बाद गुरुजी ने उन्हें दिल्ली वापिस जाने का आदेश दिया। उन्होंने वहाँ एक रात रुकने के लिए प्रार्थना की, लेकिन गुरुजी नहीं मानें। कार का मालिक ‘मारवाह’, गुरुजी से बोला, “गुरुजी, गाड़ी में पेट्रोल बहुत कम है, यह कार मुश्किल से आधे रास्ते तक ही पहुंचेगी।” (उन दिनों रात्रि में पेट्रोल पम्प बन्द रहते थे और उन्हें आधे रास्ते में ही रुकना पड़ेगा) इसलिए उन्होंने गुरुजी से रात रुकने की पुन: प्रार्थना की।
तभी एक आश्चर्यपूर्ण घटना घटी। गुरूजी ने कार की चाबी उठाई और कार स्टार्ट करके बाहर आ गये और पेट्रोल टैंक की तरफ गये। उन्होंने पेट्रोल टैंक का ढक्कन खोला और उसमें कुछ डाल दिया और कहा : “अब तुम लोग इस कार में बैठो और इसे चलाते जाओ। इसे तब तक नहीं रोकना, जब तक तुम दिल्ली अपने निवास स्थान तक न पहुँच जाओ।” उन्होंने आगे आदेश दिया : “तुम रास्ते में भी इसे मत रोकना और यह देखने की कोशिश भी मत करना कि इसमें पेट्रोल है या नहीं।”
ये क्या हुआ…..? वे पूरी रात की पूर्णतयाः सुरक्षित यात्रा करके दिल्ली के पटेल नगर पहुंच गये।
फिर क्या था… यह खबर जंगल की आग की तरह सभी शिष्यों व सेवादारों के बीच फैल गई। बहुत से लोग इस घटना को विस्तार से जानने के लिये श्री आर. पी. शर्मा जी के पास आये।
गुरुजी के वे शिष्य भगवान तुल्य थे और सभी उनको सम्मान की दृष्टि से देखते थे तथा उनकी बात पर विश्वास करते थे। शर्मा जी अपने साथ हुई इस पूरी घटना के सम्बन्ध में हमें विस्तार से बता रहे थे। लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर सके कि उनकी कार बिना पेट्रोल के दिल्ली तक पहुँची कैसे…!! वह स्वयं भी असमंजस में थे। उन्होंने हमें भी यही सलाह दी कि यह तो आपको सीधे गुरुजी से ही पूछना पड़ेगा। मैंने साहस बटौरा और उस उचित अवसर का इन्तज़ार करने लगा कि जब मैं सीधे गुरुजी से इस तथ्य के बारे में जान सकू। सौभाग्यवश, वह अवसर भी आ गया और मैंने गुरुजी से पूछ ही लिया, “गुरुजी, उस दिन क्या हुआ था और आपने पेट्रोल टैंक में क्या डाला था कि एक अविश्वस्नीय चमत्कार हो गया..? गाड़ी बिना पेट्रोल के दिल्ली पहुंची कैसे……?”
मैंने जो कुछ गुरूजी से पूछा था, वह मेरे लिये एक बहुत बड़ा सवाल था लेकिन गुरुजी ने उसे इतनी सहजता से लिया जैसे मैं आलू, भिण्डी का भाव पूछ रहा था। उन्होंने मुझे उस चीज़ का नाम और उसकी शक्ति के बारे में बताया, जिसने इंजन को पूर्ण रुप से अपने नियंत्रण में कर लिया था और निश्चित स्थान तक पहुंचने के लिए बाध्य कर दिया।
हे भगवान………..!! मैं गुरुजी के दिव्य प्रकाश से चमकते हुए चेहरे की तरफ, देखता ही रह गया…।।
इतनी बड़ी बात, गुरूजी के लिये इतनी सरल थी…!! जिसका अभी तक विश्वास नहीं होता। गुरुजी आपको दंडवत प्रणाम है। गुरुजी, मैं और मेरे अलावा जो लोग भी मुझसे जुड़े हुए हैं, उन सबके लिये भी आपसे कृपा माँगता हूँ।