सुरेन्द्र तनेजा, गुरुजी के मुख्य शिष्यों में से एक हैं जो कर्मयोगी है और अपने स्टोन क्रशर उघोग में कार्यरत हैं जब कभी उनके स्टोन क्रशर में कोई बाधा आती तो वह स्वयं बाज़ार जाकर अपनी ज़रूरत के हिसाब से मशीन के पुर्जे तक भी लेकर आते। वह गुरुजी से बहुत अधिक प्यार करते हैं। वे गुरुजी से कभी साथ चलने के लिये कहते तो गुरुजी भी उसके साथ चलने के लिए अक्सर राजी हो जाते। गुरुजी भी उसके साथ बड़े प्यार और कोमलता का व्यवहार करते थे।
एक बार सुरेन्द्र अपनी जोंगा जीप चला रहे थे और गुरुजी उनकी बांयी तरफ की सीट पर बैठे थे कि अचानक इंजन में कोई खराबी आने के कारण जीप बीच सड़क में ही रुक गई।
सुरेन्द्र ने उसे दुबारा स्टार्ट करने की भरपूर कोशिश की परन्तु काफी समय निकल जाने के बाद भी इंजन को दुबारा स्टार्ट नहीं कर पाये।
गुरुजी यह सब देखते रहे। जब बात सुरेन्द्र के बस से बाहर हो गयी तो गुरुजी बोले :
“तुम बाहर आ जाओ, अब जीप मैं चलाऊंगा…” गुरूजी ड्राईवर की सीट पर बैठ गये और सुरेन्द्र से पूछने लगे—–
“उस इन्जीनियर भगवान का क्या नाम है,
जिसने रावण की लंका बनाई थी?” सुरेन्द्र ने, कुछ सोचकर जवाब दिया, “गुरुजी, उनका नाम ‘बाबा विश्वकर्मा’ है।
गुरूजी कुछ देर तक चुप रहे और उसके बाद उन्होंने इंजन को स्टार्ट करने का बटन दबाया, इंजन स्टार्ट हो गया और गुरूजी जीप को चलाते हुए गुड़गाँव स्थान पर ले आये । गुरुजी, सुरेन्द्र को लेकर अपने कमरे में गये और उसे चाय का प्रसाद दिया। जब वह अपनी चाय का प्रसाद पी चुके तो गुरुजी से वापिस दिल्ली जाने की आज्ञा माँगी। गुरूजी ने उनसे पूछा—
“बेटा, तुम अब कैसे जाओगे…?” सुरेन्द्र ने जवाब दिया, “जीप से ही जाऊंगा, गुरुजी… ”
गुरूजी मुस्कुराये और बोले— “अब जीप को तो दिल्ली, क्रेन ही लेकर जायेगी। तुम अपने दिल्ली जाने का और ही कोई इन्तजाम करो।”
इसके बावजूद भी सुरेन्द्र ने बाहर जाकर जीप को स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके अन्ततः जीप को ‘टोह’ करके ही दिल्ली ले जाना पड़ा।
दिल्ली में जीप का मैकेनिक इंजन की हालत देख कर हैरान रह गया और वह विश्वास ही नहीं कर सका कि इस धरती पर ऐसा कौन है जो जीप को इस हालत में हॉईवे से मीलों दूर घर तक ले गया..!!
ये तो गुरूजी ही जानें कि उन्होंने भगवान के इन्जीनियर ‘बाबा विश्वकर्मा’ से क्या बात की और कैसे उन्होंने गुड़गाँव स्थान तक पहुँचने के लिए उनसे इन्जन ठीक कराया…? ताकि वह सारी रात सड़क पर ही न बैठे रहें, क्योंकि स्थान पर दर्शन के लिए सैंकड़ों भक्त उनका इंतजार कर रहे थे।
इस तरह गुरूजी ने ‘बाबा विश्वकर्मा’ की उपस्थिति को भी कायम कर दिया जिनकी तस्वीरें भारतीय कारीगर अपने कर्म-स्थल पर लगाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।