मेरी पत्नी गुलशन, चाँदनी चौक बाज़ार घर के लिये कुछ खरीदारी करने गई। खरीदारी करते समय उसने वहाँ कुछ लुंगियाँ देखीं और उसमें से दो लुंगियाँ गुरुजी के लिये खरीद ली और वहाँ से सीधी गुड़गाँव चली गई।
गुड़गाँव पहुंचकर जब गुलशन गुरुजी के कमरे में गईं, तो उस समय गुरुजी अपने कमरे में विश्राम कर रहे थे उसने उन्हें प्रणाम किया, आशीर्वाद लिया और बैठ गई। तभी उसके मन में यह विचार आया कि वह जो कुछ गुरुजी के लिये लेकर आई है, वास्तव में यह उपहार गुरुजी को देने के लिये बहुत छोटा है। उसने वह लिफाफा छुपा लिया और सोचा कि यह गुरुजी को देना उचित नहीं होगा अतः मुझे यह उन्हें नहीं देना चाहिए।
गुरुजी जानते थे कि वह उनके लिये कुछ लेकर आई है और वह उन्हें देने में झिझक महसूस कर रही है। वह यह भी जानते थे कि गुलशन यह सोच रही है कि उस महान व्यक्तित्व को भेंट करने के लिये, उसका यह उपहार बहुत छोटा है इसलिये उसे शर्म आ रही है और वह चुपचाप बैठी है।
गुरुजी कभी किसी से कोई उपहार नहीं लेते थे। उन्होंने गुलशन की तरफ देखा और बोले—
“गुलशन, तू मेरे लिये क्या लेकर आई है..?”
गुलशन ने जवाब दिया, “कुछ नहीं गुरुजी…..” और लुंगी का लिफाफा उसने अपने पीछे छुपा लिया।
गुरूजी दुबारा बोले—- “मैं जानता हूँ कि तू मेरे लिये कुछ लाई है।
वह तुम दे दो मुझे…”
उसने फिर दो बार ‘ना’ बोला और अन्त में झिझकते हुए वह लिफ़ाफा गुरुजी को दे दिया।
गुरूजी ने लिफाफे में से लुंगी निकाली तथा उनकी आँखों व चेहरे के हाव-भाव बदल गये। उसी समय उन्होंने अपने बिस्तर पर ही वह लुंगी पहन ली। जबकि उस समय गुरुजी ने पहले से एक लुंगी पहनी हुई थी उसी के ऊपर उन्होंने दूसरी लुंगी पहन ली।
यह देखकर गुलशन का चेहरा आनन्द से लाल हो गया और वह सोचने लगी उस लुंगी के बारे में कि वह क्तिनी मामूली सी कीमत की लुंगी और गुरुजी ने उसे किस प्यार से स्वीकार करते हुए पहन भी लिया…..!!
गुलशन ने आज से पहले कभी नहीं सोचा था कि गुरूजी का हृदय, इतना विशाल है और वे हमारी भावनाओं की इतनी कद्र करते है।
गुलशन, गुरुजी का यह रुप देख कर गद्गद हो गई। अपने आंसू रोककर, गुरुजी के विशाल हृदय को समझने की कोशिश करने लगी कि गुरूजी ने उसके द्वारा लाई गयी उपहार स्वरुप लुंगी, जो कीमत में नगण्य थी स्वीकार करके, उसकी भावनाओं की कितनी कद्र की तथा उन्हीं के द्वारा दिया गया वह आदेश कि “मैं किसी से कोई उपहार नहीं लेता”, दुबारा एक अलग सच्चाई के साथ स्थापित किया कि उन्हें न तो कोई जान सकता है और न ही पूरी तरह से समझ ही सकता है।
गुरुजी जानते थे कि गुलशन ने उनके लिये लुंगी खरीदी है और वह अपने साथ लेकर आई है। वैसे तो गुरूजी को कोई भी उपहार नहीं दे सकता था, लेकिन फिर भी गुरुजी उसका इन्तजार कर रहे थे और उसके द्वारा लाई गई लुंगी, उन्होंने स्वीकार की और पहन भी ली।