एक बार मुझे व्यापार प्रदर्शनी (Trade Exhibition) में भाग लेने के लिए, शिकागो (अमेरिका) जाना पड़ा। मैंने सोचा कि कितना अच्छा हो यदि गुरूजी भी अमेरिका चलें और मेरी व्यवसायिक यात्रा, एक आध्यात्मिक यात्रा बन जाये…/ मेरी प्रार्थना पर गुरुजी मान गये और उनके आदेशानुसार मैंने हवाई जहाज़ के दो टिकट बुक करा लिये। कार्यक्रम के अनुसार तय समय पर, मैं गुड़गांव पहुंचा और उनसे बोला, “गुरुजी, अब हमें एअरपोर्ट के लिए निकलना चाहिए।” लेकिन मैंने देखा कि उस समय गुरुजी के पास कई लोग उनके दर्शनों के लिए आये हुए थे। देर होने की सम्भावना से गुरुजी बोले—
“राज्जे, तुम एअरपोर्ट पहुँचो, मैं इन लोगों से मिलकर सीधा एअरपोर्ट पहुँच जाऊंगा, तब तक तुम बोर्डिंग पास और चेक-इन की लाइन में लगो।”
आदेशानुसार, मैं एअरपोर्ट पहुंचकर तथा बोर्डिंग पास लेकर व्याकुलता से गुरुजी की प्रतीक्षा करने लगा। इतने में मैंने विमान उड़ने की घोषणा सुनी और विमान में बैठकर फिर गुरूजी की प्रतीक्षा करने लगा। विमान उड़ा और लंदन एअरपोर्ट पर उतर गया। वहाँ पर कछ देर रुकने के बाद मैंने दूसरी फ्लाईट पकड़ी और शिकागो पहुंच गया। शिकागो में व्यापार प्रदर्शनी से निर्मुक्त (Free) होने के पश्चात् मैंने गुरुजी से उनके आने का प्रोग्राम पूछा। उन्होंने कहा—
“मैं आ रहा हूँ, तुम मेरा वहीं इन्तजार करो।” इस बीच मैंने सोचा कि क्यों न मैं ‘ऐलके’ (सिंक की एक विश्व विख्यात फैक्ट्री) जाकर देख आऊं…? मैंने गुरूजी से इसकी इजाजत मांगी और उन्होंने ‘हाँ’ कर दी। सुरेन्द्र और बिल (एक अमेरिकी युवक) ने फोन पर ‘ऐलके’ कम्पनी के अधिकारियों से इजाजत लेने की कोशिश की परन्तु कम्पनी के अधिकारियों ने यह कह कर मना कर दिया कि कम्पनी में किसी आगुन्तक के फैक्ट्री देखने पर प्रतिबन्ध है।
मैंने रात को ही गुरुजी को फोन करके, सारी घटना और कम्पनी वालों द्वारा मना करने का कारण भी बताया।
गुरूजी बोले—- “किसी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है तुम सुबह सवा आठ बजे फैक्ट्री देखने के लिए निकल जाओ और ध्यान रहे तुम्हारे कार्यक्रम के बारे में न कोई कुछ कहे और न ही कोई सलाह दे।”
अतः मैंने सुरेन्द्र को गुरुजी के आदेश के बारे में बताया और उसे सुबह चलने के लिए कह दिया।
मैंने कार स्टार्ट की, सुरेन्द्र तथा बिल के साथ, करीब एक घन्टे के बाद, हम फैक्ट्री पहुंच गये। थोड़ा इधर-उधर देखने के बाद हमें वहाँ ‘स्वागत-कक्ष’ (Reception Counter) नज़र आया और मैंने सुरेन्द्र को कार, पार्किंग में लगाने को कहा।
स्वागत कक्ष में पहुँच कर मेरी नज़र दीवार पर लगे नोटिस बोर्ड पर पड़ी, जिस पर एक नोटिस लगा हुआ था। नोटिस के नीचे पर्सनल मैनेजर तथा उसका नाम डैनी समर्स लिखा हुआ था।
तभी मैं स्वागतकक्ष में बैठी एक महिला की तरफ मुड़ा और उसने मेरे आने का कारण पूछा।
अचानक एक अजीब घटना घटी। मैं भूल गया कि मैं कौन हूँ और मैंने उस महिला से कहा, “मैं मिस्टर डैनी से मिलना चाहता हूँ।” उसने मिलने का कारण पूछा तो मैंने उससे कहा कि—–
“व्यक्तिगत (Personal) काम से मिलना चाहता हूँ ।”
उस महिला ने फोन पर कुछ बात की और कुछ ही मिनटों में वहाँ एक गोरा, सुन्दर आदमी आया। उस महिला ने उसे मेरी तरफ इशारा करते हुए कुछ कहा मैंने अंदाजा लगा लिया कि यह आदमी डैनी समर्स ही है। वह मेरे करीब आया इससे पहले कि वह कुछ कहे, एक अजीबो-गरीब व्यवहार मेरे अन्दर आ गया। यह व्यवहार बिलकुल अलग तरह का था। मैं अत्यधिक उत्साहित व्यक्ति लग रहा था। मैं भी उसकी तरफ बढ़ा और उसके हाथ से, हाथ मिलाते हुए बोला—
“हाय डैनी, तुम कैसे हो?” उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना मैंने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा—
“डैनी, भारत में, बहुत पहले से मैं आपकी यह ‘ऐलके’ फैक्ट्री देखना चाहता था, अब मेरा अमेरिका में आना हुआ है और क्या संयोग है कि आज मुझे इसे देखने का मौका भी मिल गया। देखो आज मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ।” कहकर, मैंने दुबारा उससे हाथ मिलाया और कहा—
“चलो फैक्ट्री के अन्दर चलें।”
मेरी आवाज़ में एक आदेश सा था।
मुझे इस लहजे में बात करते देख, वह स्तब्ध हो गया और कुछ कहे बिना शिष्टतापूर्वक बोला, “मैं आपके लिए हैलमेट और चश्में का इन्तजाम करता हूँ क्योंकि चलती हुई फैक्ट्री में बिना इस सुरक्षा के खतरा बना रहता है।” अतः हम तीनों डैनी के साथ हैलमेट और चश्में पहन कर, शुरु से लेकर आखिर तक फैक्ट्री देखते रहे।
वह फैक्ट्री में चलते हुए हमें प्रत्येक मशीन के बारे में विस्तार से बताता जा रहा था कि किस-किस मशीन की, कितनी-कितनी क्षमता है और वह कितनी-कितनी मात्रा में प्रतिदिन उत्पादन कर सकती है, इत्यादि। वह एक बहुत बड़ी फैक्ट्री थी और उसे पूरा देखने के लिए हमें बहुत समय लग गया।
जब मैं फैक्ट्री में चल रहा था तो सभी मुझे अति-विशिष्ट व्यक्ति की तरह से देख रहे थे और डैनी भी हमारे साथ चलते हुए अपने आप को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा था।
जब डैनी हमें लेकर वापिस स्वागतकक्ष में पहुंचा तो वह बहुत खुश था और स्वागतकक्ष में बैठी रिस्पेशनिस्ट महिला भी, बहुत प्रसन्न प्रतीत हो रही थी। सुरेन्द्र अपने साथ एक कैमरा लेकर आया था जिससे उसने बहुत से फोटो खींचें।
डेनी फिर बोला, “राजपॉल, अगली बार जब तुम्हारा अमेरिका आने का प्लान हो तो कृप्या मुझे फोन जरुर करना।”
अतः हमने ‘ऐलके’ कम्पनी अति-विशिष्ट व्यक्ति की तरह देखी और बाहर आकर अपनी कार में बैठ गये।
अपने इस अद्भुत व्यवहार पर मेरे लिए यह अनुमान लगाना बहुत कठिन था कि—
कैसे मैंने उसके ऑफिस के ऑफिश्यिल नोटिस बोर्ड को देखा…?
कैसे उस पर मैंने डेनी समर्स का नाम पढ़ा…?
क्यों उस रिस्पैशनिस्ट महिला को डैनी समर्स से व्यक्तिगत मीटिंग के लिए कहा…?
कैसे मैंने डैनी समर्स को उसके पहले नाम, ‘डैनी’ से पुकारा जैसा कि, अक्सर अमेरिकन पुकारते हैं…
कैसे उसे, उसके सीनियर की भाँति आधिकारिक तौर पर आदेश दे रहा था, न कि प्रार्थना की…
ओह नहीं….!!
यह कोई आम बात नहीं थी। मैं अपने आप को अच्छी तरह से जानता हूँ कि मैं ऐसा नहीं हूँ। यह भी मानता हूँ कि मेरे अन्दर ये योग्यता नहीं है, कि ऐसे समय में, मैं ऐसा उपयुक्त व्यवहार कर सकूँ और अमेरिकन स्टाईल की इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल सकू। मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि उस समय या तो गुरूजी स्वयं मेरे अन्दर विराजमान थे या फिर उन्होंने किसी दिव्य शक्ति को अदृश्य रुप में, मेरे साथ भेजा जो मुझसे इस तरह कार्य करवा रही थी। जैसा कि पिछली रात फोन पर गुरुजी ने कहा था कि उनके शिष्य को कोई मना नहीं कर सकता। ठीक उसी तरह मुझे किसी ने मना नहीं किया बल्कि एक अति-विशिष्ट व्यक्ति की तरह बर्ताव भी किया। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि जिस तरह से मैं बर्ताव कर रहा था, ऐसी योग्यता वाला पुरुष, मैं नहीं हूँ। यह सब सिर्फ गुरूजी के आदेश पर ही हो रहा था।
जैसा कि रात को उन्होंने मुझे फोन पर कहा था–
कि कोई मेरे शिष्य को फैक्ट्री देखने से नहीं रोक सकता…।
मुझे सुबह सवा आठ बजे निकलने का आदेश दिया… और किसी के भी विचार या उनसे सलाह लेने को भी मना कर दिया था…
स्पष्ट है…. सुबह से लेकर फैक्टरी देखने तक का सारा प्रोग्राम, गुरुजी ने स्वयं ही निर्धारित किया था।
वाह!——हे गुरुदेव !
—–वाह——!!
साष्टांग प्रणाम है,
……गुरुदेव!!
आप हम पर लगातार अपनी अपार कृपा बनाये रखना और अटूट विश्वास के साथ अपने पवित्र चरणों में स्थान देना।