एक बार गुरुजी, अपने शिष्यों के साथ हरिद्वार गये और उनके साथ उनके अन्य शिष्यों के अलावा, जालन्धर वाले मामाजी और नदौन के संतोष भी थे।
एक रात वहाँ पर उपस्थित, पाँच लोगों के लिए ही चपातियाँ बनाई गई और राशन समाप्त हो गया। काफी रात हो गई थी, अतः उन्होंने सोचा कि अब और आटा सुबह ही ले आयेंगे।
गुरूजी कहीं बाहर गये थे और सब लोग खाने पर उनका इन्तज़ार कर रहे थे। जैसे ही गुरुजी आये तो उनके दर्शन के लिये चार लोग और आ गये। अतः संतोष तथा मामा जी, यह इन्तजार करने लगे कि कब ये लोग जायें और खाना शुरु किया जाये।
इसी बीच गुरुजी ने मामा को खाना परोसने का आदेश दिया लेकिन मामा जी और संतोष एक दूसरे की तरफ देखने लगे। क्योंकि वह खाना तो सिर्फ पाँच लोगों के लिये पर्याप्त था। उन नौ लोगों के लिये कैसे पूरा हो सकता था..?
गुरूजी ने हालात को समझते हुए संतोष को आदेश दिया कि वह सभी की थालियों में सब्जी परोसे। गुरूजी ने चपातियाँ का कैसरोल अपने हाथों में ले लिया। उसके बाद गुरुजी ने सभी नौ व्यक्तियों को दो-दो चपातियाँ दी और दुबारा फिर सभी को दो-दो चपातियाँ और दी।
यह देखकर संतोष व मामा जी अचम्भित रह गये क्योंकि उन्होंने तो केवल बीस चपातियाँ ही बनाई थी लेकिन उस कैसरोल से छत्तीस चपातियाँ, गुरूजी बाँट चुके थे और अब भी कैसरोल में कुछ चपातियाँ शेष बची हुई थी।
ये कैसे सम्भव हुआ…..?? यह देखकर वे गुरुजी के समीप आये और कहने लगे, “गुरुजी, यह क्या है…? हमने तो इतनी चपातियाँ बनाई ही नहीं थीं? आपने नौ व्यक्तियों को पूरा खाना खिला दिया और इसके बावजूद भी चपातियाँ शेष बची हुई हैं….? कृप्या बताईए कि आपने इस कैसरोल के साथ क्या किया है कि इसमें से चपातियाँ निकलती ही जा रही हैं?”
गुरूजी बोले— “मुझे नहीं मालूम….” और वे मुस्कुरा दिये बस…
उन चारों लोगों के जाने के बाद गुरूजी ने बताया कि चिन्ता करने की कोई बात नहीं होती। मैं बर्तन में खाना उस समय तक समाप्त नहीं होने देता, जब तक सब लोग भरपेट खा न लें।
लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि बर्तन में झाँककर कभी मत देखो कि बर्तन में कितना खाना शेष बचा है…
आप विधाता की तरह ही सम्पूर्ण हो, गुरुदेव……
प्रणाम साहेब जी………!!