श्रीवास्तव जी, गुरूजी के शिष्य हैं और ‘लखनऊ’ में सेवा करते हैं। निजी जीवन में उनका प्रकाशन का कारोबार है और वह वहाँ से ‘उत्थान की दिशा’ नामक एक आध्यात्मिक पत्रिका भी निकालते हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य गुड़गाँव तथा अन्य गुरूस्थानों के प्रति जानकारी देना है।
गुरुशिष्य श्रीवास्तव जी की पत्नी गायत्री श्रीवास्तव, एक धार्मिक विचारों की महिला हैं और गुरुजी की परम भक्त हैं। जब एक बार उनको पता चला कि गुरुजी उनकी प्रिन्टिंग प्रेस में आये हुए हैं, तो वह अपने आप को रोक न सकी और उसने गुरुजी के दर्शनों के लिए जाने का प्रोग्राम बनाया। परन्तु उसके परिवार-जनों ने उसे मना कर दिया। शायद गुरुजी का ऐसा ही आदेश था कि उनसे मिलने वहाँ कोई न आये। इस पर वह जिद्द करते हुए बोली, “यह कैसे हो सकता है कि गुरुजी यहाँ आयें और मैं यहीं बैठी रहूँ……?” लेकिन फिर भी परिवार-जनों ने उसे गुरुजी के पास जाने के लिए रोक ही दिया। इस पर वह आपे से बाहर हो गई और मन में आया कि क्यों न मैं छत से कूद कर आत्महत्या कर लूं। बाद में… जब उसे गुरुजी के दर्शन करने का मौका मिला तो गुरुजी ने उसे देखा तो कहा— “तुम क्या सोचती हो कि तुम छत से कूदोगी तो मर जाओगी…?” “नहीं बेटा, तुम तब तक नहीं मर सकती, जब तक मैं न चाहूँ।” “यदि तुम्हारी मुझसे मिलने की इच्छा है तो यह तुम मुझपर छोड़ दो। लेकिन जिद्द मत करो तथा खुशी-खुशी मेरे आदेशों का पालन और इंतजार करो।”
खुशी से गायत्री का चेहरा लाल हो गया और वह सोचने लगी कि मेरे मन में आये विचार गुरुजी तक कैसे पहुँच गये…?
श्रीवास्तव और गायत्री एक अद्वितीय जोड़ी है, गृहस्थी में भी और गुरु भक्ति में भी। माताजी ने इन्द्रा की शादी, उनके छोटे बेटे के साथ कर दी और वे अपनी बच्ची सिया के साथ, सुन्दर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
गुरूजी ने ‘लखनऊ’ में उनके घर स्थान बनाया है और वे गुरूजी के आदेशानुसार वहाँ सेवा करते हैं। उनके पास बहुत से लोग आते हैं, प्रार्थना करते हैं और गुरू कृपा पाते हैं तथा ठीक होकर जाते हैं। यहाँ महीने के कुछ विशेष दिनों में सेवाकार्य होता है। उनका पूरा परिवार गुरुजी तथा माताजी को पूर्ण समप्रण के साथ, महाशिवरात्रि, गुरू पूर्णिमा और अन्य दिनों में गुड़गाँव स्थान पर आता है।