गुरुजी के पास, एक स्कूटर था। जिसे वे अक्सर अपने ऑफिस जाने के लिए प्रयोग करते थे।
एक बार गुरुजी वही स्कूटर चला रहे थे और उनके पीछे उनके शिष्य एस. के. जैन साहब बैठे थे। अचानक स्कूटर खराब हो गया और गुरुजी ने उसे फुटपाथ पर ही खड़ा कर दिया।
गुरूजी गुस्से की मुद्रा में बोले—
“गंजे, (गुरुजी प्यार से एस. के. जैन साहब को इसी नाम से बुलाते थे) ये मुझे कई बार तंग कर चुका है, आज मैं इसे देखता हूँ।” जैन साहब ने मुझे बताया कि गुरुजी इस तरह से बात कर रहे थे कि जैसे स्कूटर कोई मशीन ना होकर, वह एक जीता-जागता इंसान हो। यह सब देख कर मैं हैरान था। गुरुजी बोले—
“मुझे औज़ार दो, मैं इसे अभी खोलता हूँ।” जैन साहब बोले, “गुरुजी, आप स्कूटर के इंजीनियर तो हैं नहीं, आप इसके साथ क्या करने जा रहे हो?” बिना कोई जवाब दिये गुरूजी ने औजार अपने हाथ में लिए और इंजन के पुर्जो को खोलना शुरु कर दिया। सारे पुर्जे फुटपाथ पर ही रखते चले गये। कुछ फुस्फुसाते हुए उन्होंने ‘बाबा विश्वकर्मा’ का नाम लिया और इंजन के पुर्जो को दुबारा जोड़ना शुरु कर दिया। पूरा इंजन वापिस जोड़ने के बाद वे जैन साहब से बोले—-
“गंजे, अब ये स्टार्ट हो जायेगा?”
जैन साहब बोले, “गुरुजी, अब ये तो क्या………..? इसका तो बाप भी स्टार्ट नहीं होगा।”
जैन साहब आगे बोले, “मैं आपको आज से नहीं, पिछले कई सालों से जानता हूँ और मुझे अच्छी तरह से पता है कि आप कोई ऑटो-मोबाईल इंजीनियर तो हैं नहीं।” गुरुजी ने जैन साहब को स्कूटर में किक मारने के लिए कहा और
ये
क्या …………..?
स्कूटर तो स्टार्ट हो गया।
जैन साहब, आश्चर्य चकित हो, भौंचक्के से रह गये और फिर चिल्लाये—–
—-असम्भ
व…….।।
गुरुजी आप इन्सानों की बीमारियाँ तो ठीक करते ही हैं, ……आज मशीनों की भी। आप धन्य हैं गुरुदेव….।।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, गुरूजी जानते थे कि यह स्कूटर स्टार्ट होगा और दूसरी बात यह कि उन्होंने इसके लिये भगवान के इंजीनियर बाबा विश्वकर्मा को आदेश दिया था और उसने गुरुजी का आदेश माना भी।
साहेब जी,
आप महान हैं ——–