गुरुजी के आशीर्वाद से जब मैंने, उनके साथ व्यापारिक विदेश-यात्रा (Business Trip) के लिये अमेरिका जाने का प्रोग्राम बनाया, तो गुरूजी ने अपनी स्वीकृति दे दी। इस बात से मैं बहुत प्रसन्न था। लेकिन गुरूजी किसी कारणवश लोगों में व्यस्त थे। अतः उन्होंने मुझे आदेश दिया कि मैं एअरपोर्ट पहुंचकर उनका इन्तज़ार करूं और वो पीछे-पीछे आ जायेंगे।
एअरपोर्ट पहुंचकर, मैंने वहाँ उनका फ्लाईट के उड़ने तक बहुत इंतज़ार किया और अंत में विमान में बैठ गया। विमान उड़ा और लंदन होता हुआ शिकागो पहुँच गया।
शिकागो पहुंचने पर मुझे वहाँ एक बहुत अच्छा व्यापारिक-संस्थान मिला। परन्तु उस कम्पनी के वाईस प्रेसिडेन्ट, मिस्टर जीन शवॉटर्स ने मुझसे व्यापार सम्बन्धी बातचीत के लिए सिर्फ तीस मिनट का समय ही दिया। लेकिन तीस मिनट की मीटिंग में वह इतना प्रभावित हो गया कि हमारी बातचीत करीब छः घण्टे तक चली। वाईस प्रेसिडेन्ट ने स्वयं दो बार उठकर कॉफी बनाई तथा मुझे और मेरे साथ जो व्यक्ति ऐजेन्ट (Agent) गया था, उसे भी पिलाई।
उसने लगभग चार से पाँच लाख अमेरिकी डालर का ऑर्डर दिया तथा अतिरिक्त पचास हजार डॉलर, नये टूल्स बनाने के लिए मंजूर किये जो हमारी रिसर्च एवं डेवलपमैन्ट के लिए खर्च होने थे। यह मेरे जीवन का एक अतुलनीय व्यापारिक लेन-देन था।
अपनी इस पहली मुलाकात का इतना अच्छा परिणाम आयेगा और वह भी अमेरिका के इतने बड़े व्यापारिक-संस्थान से, मुझे इसका अंदाजा नहीं था।
मैं यह जानता हूँ कि मैं यंत्र-कला (Technical) में तो निपुण हूँ परन्तु मैं एक अच्छा सेल्समैन नहीं हूँ। मेरा ऐजेन्ट (Agent) भी इस उपलब्धि को लेकर आश्चर्य चकित था। मैंने गुरुजी को यह सब फोन पर बताया और उनसे भारत लौटने की इजाजत मांगी।
अब एक दुर्घटना घटित हुई…….
जब मैं अपनी विदेश-यात्रा (Tour) समाप्त करके, भारत वापिस आया तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं गुरूजी की हवाई यात्रा की वह टिकट, जिसका गुरुजी ने इस्तेमाल नहीं किया था ट्रेवल ऐजेन्ट को वापिस लौटा दूं..?
मैंने गुरुजी से उस टिकट के लिए कहा तो गुरूजी ने कहा—
“मैं ढूंढ़ कर बाद में दे दूंगा।”
इस बीच ट्रेवल ऐजेन्ट, बाकी पेमेन्ट और/या न इस्तेमाल की गई टिकट वापिस करने के लिए ज़ोर देने लगा।
मैं दुबारा गुरुजी के पास टिकट के लिए गया और उन्होंने मुझे फिर भी टिकट नहीं लौटाई…। मुझे यह समझ नहीं आया कि मैं गुरुजी से बार-बार टिकट लौटाने के लिए क्यों कह रहा था?
तीसरी बार मैंने अपने बेटे बब्बू को गुड़गाँव भेजा और वो वह टिकट ले आया तथा मैंने वह टिकट, ट्रेवल ऐजेन्ट को लौटा दी। बबू ने मुझे बताया कि जब गुरुजी ने टिकट लौटाई, तो उनका मूड ठीक नहीं था। तब तक भी मुझे अपनी गलती का अहसास नहीं हुआ।
शाम को जब मैं गुरुजी के पास गुड़गाँव पहुंचा और गुरुजी को प्रणाम किया तो उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा—
“अमेरिका का पानी लग गया है तुझे।”
मैं अपना पक्ष रखते हुए बोला, “गुरुजी, मुझसे कोई गलती हुई है क्या..?” परन्तु उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
वह व्यक्ति, जो हमारे साथ, अपने व्यापारिक सम्बन्ध अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए अति-आतुर था और भारत आकर हमसे मिलना चाहता था, अचानक चुप्पी साध गया। करीब डेढ़ महीने के लम्बे इन्तजार के बाद, मैंने गुरुजी के सामने उसकी इस असाधारण चुप्पी की बात रखी।
गुरुजी अपने बेडरूम में अपनी उसी प्रसिद्ध मुद्रा में (अपनी दाँयी टाँग, बाँयी जाँघ के ऊपर रख कर) बैठे थे उनके दर्शन कर आनन्द विभोर हो मैंने गुरुजी से कहा, “गुरुजी, एक पार्टी जिससे मैंने चार-पाँच लाख डॉलर का ऑर्डर लिया था उसने मेरी चिट्ठियों का जवाब तक देना बन्द कर दिया है और न ही किसी तरह की कोई बात ही कर रहा है। जबकि कुछ समय पहले तक वह बहुत उत्साहित था।” गुरूजी बोले—- “कौन सा ऑर्डर…?” मैंने जवाब दिया, “वो ही, जो मैंने अमेरिका में लिया था।” गुरूजी बोले, “वो तो मैंने लिया था।” मैंने हंसते हुए कहा, “ठीक है…गुरूजी, आपने ही लिया था, मुझे मालूम है लेकिन… उस ऑर्डर का हुआ क्या…?”
गुरुजी बोले—- “कौन सा ऑर्डर बुक किया था मैंने…? और कब…? मैं तो वहाँ कभी गया ही नहीं।” “तुम्हारे टिकट वापिस करने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि मैं तो अमेरिका गया ही नहीं था। मैंने कोई ऑर्डर बुक नहीं किया।”
गुरुजी अब गम्भीर मुद्रा में थे और कठोरता उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा—-
“नीचे बैठो और जवाब दो।”
अब उन्होंने कहना शुरु किया,
• “जब तुम हवाई जहाज में अपनी सीट पर बैठे, तुमसे अगली वाली सीट खाली थी?” मैंने याद करके उत्तर दिया……..
___ “…….जी गुरुजी” • “जब तुम लंदन से शिकागो की दूसरी फ़्लाईट
की सीट पर थे, तो भी तुमसे अगली सीट खाली थी?
___ मैंने फिर उत्तर दिया, “…….जी गुरुजी”
• “एक महीने बाद वापसी पर जब तुमने वॉशिंगटन के लिए फ्लाईट ली, तब भी अगली
सीट खाली थी…….
• “वॉशिंगटन से पेरिस जाते हुए भी तुमसे अगली सीट खाली थी……”
• “पेरिस से नई दिल्ली आते हुए भी तुमसे अगली सीट खाली थी……”
मैंने अपनी सभी फ्लाईटस के बारे में सोचकर देखा….. मेरे पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे।
अविश्वस्नीय……….!! मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं जानता था कि सभी फ्लाईटस में मुझसे अगली सीट हमेशा खाली रही थी।
मुझे अपने अमेरिका-भम्रण की पुरानी सारी यादें ताजा हो आई। दिल्ली से लंदन, लंदन से शिकागो, शिकागो से वॉशिंगटन, वॉशिंगटन से पेरिस और अन्त में पेरिस से दिल्ली तक… मुझसे अगली सीट पर कोई भी नहीं था। वह हमेशा खाली ही थी और किसी और को दी ही नहीं गई थी। इससे पहले मुझे इस बात का ध्यान भी नहीं आया था।
गुरुजी बोले, “बेवकूफ, वहाँ मैं बैठा था, हमेशा तेरे साथ…..” और तूने. मेरी टिकट वापिस कर दी…….!! और साबित कर दिया कि अमेरिका में मैं मौजूद नहीं था……?? अब मुझे सब समझ में आने लगा और मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ, मैंने यह महसूस किया कि—-
• कैसे मेरी वह व्यवसायिक-मीटिंग असाधारण हुई थी
और पार्टी ने मेरी सभी बातें मान ली थी… और क्यों मिस्टर जीन शवॉटर्स, मुझसे मेरी हर बात पर पूर्णतयाः प्रभावित था.. और क्यों मेरा ऐजेन्ट (Agent) चकित रह गया, जब वाईस प्रेसिडेन्ट ने हमारी रिसर्च एवम् डेवलपमेन्ट के लिए, पचास हज़ार डॉलर बिना किसी शर्त के देने के लिये अपनी अनुमति दी।… मुझे सब कुछ याद आने लगा कि कैसे-कैसे असाधारण प्रश्न उसने मुझसे किये और उन प्रश्नों के कैसे-कैसे नपे-तुले उत्तर, मैंने उसे दिये और उसने अपना सिर हिला कर बिना कुछ कहे उसे स्वीकार कर, मुझसे बिज़नेस ऐग्रीमेन्ट कर लिया। पूरी मीटिंग में उसने मेरी किसी भी बात का विरोध नहीं किया। जब मेरे ऐजेन्ट (Agent) ने, मेरे लिए मीटिंग का समय लिया था तो कहा था कि वाईस प्रेसिडेन्ट बहुत अधिक व्यस्त है और मुश्किल से केवल तीस मिनट का ही समय मिल पाया है। लेकिन, वही इस मीटिंग की बातचीत को लम्बा खींचते हुए तीस मिनट से छः घण्टे तक ले गया।
मैं अपने आपको तथा अपनी योग्यताओं को अच्छी तरह से जानता हूँ। मैं यहाँ सच्चे मन से कहना चाहता हूँ कि मीटिंग में हुए एक तरफा परिणाम का श्रेय, उस अदृश्य महाशक्ति को जाता है जिसने मेरे रुप में विराजमान होकर, वहाँ पर छ: घन्टे बिताये और वह कार्य किया जो मेरे लिए पूर्णतः असम्भव था।
यह कोई कहानी नहीं है बल्कि यह मेरा अपना निजी और व्यक्तिगत अनुभव है।
ये………, गुरुजी हैं। गुरुजी …और सिर्फ गुरुजी।।
वे कहीं भी चमत्कार कर सकते हैं। चाहे वे अदृश्य रुप में शिकागो में हों और या फिर शारीरिक रुप में गुड़गाँव में… जैसा भगवान करते हैं।