मैं यहाँ आपकी जानकारी के लिये कुछ लिख रहा हूँ, जो एक अलग तरह के ज्ञान पर आधारित है। अतः इस पर गम्भीरता पूर्वक विचार करें। इसे समझने के लिये ज़रूरी है कि अपने विचारों की तरंगों को रोकें। थोड़ा रुकें और उपयुक्त समय का इन्तज़ार करें। सच्चाई साबित करने के लिये किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
यदि किसी प्रकार की कोई शंका है तो एक सलाह है कि आप इसे ना पढ़ें और अगले पृष्ठ पलट दें।
अगर आप यह सोचते हैं कि कहीं आपसे आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति का वह लक्ष्य छूट न जाये तो, आपको सलाह दी जाती है कि वो तरीका अपनाओ जो अब तक अनकहा है। जो उन अज्ञानी लोगों को पता है जिनका ढाँचा गुरुजी ने स्वयं तैयार किया है और उन्हें सेवा करने का आदेश दिया है।
केवल ऐसे ही लोग, उन इच्छुक लोगों के लिये हितकर होंगे, जो आपको इस ज्ञान के बारे में समझा सकेंगे। यदि तुम्हें उन शिष्यों के साथ रहकर फिर भी ऐसा लगता है कि इस तरह से ज्ञान प्राप्त करना मुश्किल है तो एक और दूसरा उपाय भी है…. जो निम्न लिखित है : –
आप हर हफ्ते, हर महीने या महीने में दो-बार, गुड़गाँव सैक्टर 7 और सैक्टर 10 के स्थान में जाओ। वहाँ गुरूजी के किसी भी रुप पर अपना ध्यान केन्द्रित करो तथा वहाँ अपने को विचारों से दूर रखते हुए कुछ मिनट शान्ति से बैठो।
कुछ समय तक विचार रहित किया गया ये अभ्यास, इसका विलक्षण नतीजा आपके सामने लेकर आयेगा। इसमें कुछ अधिक समय लग सकता है लेकिन आप अपना धैर्य न खोएं। सबसे पहले अपने अन्दर झांक कर देखें और फिर सोचें कि आप क्या जानना चाहते हैं। यह सिर्फ आपकी अपनी जाँच के लिये है। (इसके लिये अधिक समझने की जरुरत नहीं है, सिर्फ आपकी जानकारी के लिये ही लिखा गया है।)
यदि आप आध्यात्मिक ज्ञान का वह ‘सर्वोच्च लक्ष्य’ प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो बस इसी कथन पर स्थिर रहो और बस ऐसा ही करते रहो। ऐसा करने से ही आपके अन्दर विश्वास का एक अकुंर फूटेगा और लगातार किये गये इस कार्य से आपके अन्दर पूर्ण विश्वास विकसित होगा। यह उपलब्धि आपके जीवन में एक चमत्कार ले आयेगी।
सिर्फ एक विश्वास देकर आप गुरूजी के करीब और करीब आ जायेंगे। बिना गुरुजी की कृपा के और कोई रास्ता नहीं है। यह लगातार किया गया अभ्यास आपके जीवन को सरल (Effortless) बना सकता है, जो सिर्फ गुरुजी ही कर सकते हैं तथा आपके अन्दर इस दृढ़ विश्वास की शक्ति को स्थिर कर सकते हैं। कि—–
“सब कुछ, गुरुजी ही करने वाले है…..,
मैं नहीं……”
यह एक लम्बा अभ्यास है लेकिन यह अभ्यास करना उतना ही जरूरी है जितना कि जीने के लिये सांस लेना।
जब हजारों लोग रात के 12 बजे से लेकर अगले दिन रात के 1 बजे तक, लम्बी-लम्बी कतारों में गुरुजी के दर्शन के लिये खड़े होते थे, तब किसी संस्था के लोगों का ध्यान इस तरफ गया और उन्होंने इस भीड़ को एकत्र करने वाले, जिन्हें वह भीड़ ‘गुरुजी’ कहती थी, उनकी सत्यता जानने का प्रयास किया।
इसके लिये चार ऑफिसर्स का एक दल (Team) बनाया गया और उनको वॉकी-टॉकी सेट (Walki-Talkie Handsets) इस आदेश के साथ दिये गये कि वे गुरुजी की हर गतिविधि पर नज़र रखें और इसकी सूचना उन्हें दें। इसके लिये उनको गुरूजी के चार मुख्य स्थानों पर जहाँ गुरुजी अक्सर रोज़ आते-जाते थे, नियुक्त किया गया।
वह चार स्थान निम्न लिखित थे: –
1. गुरुजी का घर, सैक्टर 7, गुड़गाँव । 2. गुरुजी का कर्जन रोड का ऑफिस 3. गुरूजी का गोल-मार्किट का सरकारी आवास तथा 4. गुरुजी का गुड़गाँव का फार्म ।
सभी ऑफिसर्स निश्चित समय पर अपने-अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गये।
अब जैसे ही गुरूजी ने अपने कर्जन रोड स्थित ऑफिस में प्रवेश किया वैसे ही वहाँ पर तैनात ऑफिसर ने, गुड़गाँव फार्म पर तैनात ऑफिसर को सूचित किया और कहा, “हाँ, गुरुजी यहाँ हैं और अभी-अभी ऑफिस में आये हैं।”
दूसरी तरफ़ से उस ऑफिसर ने, उसकी बात को नकारते हुए कहा, “नहीं, ये तुम कैसे कह सकते हो? वे तो यहाँ हैं और अभी-अभी ऑफिस में आये हैं।” उनका तीसरा और चौथा ऑफिसर भी पूर्ण विश्वास के साथ यही बात कह रहा था कि गुरुजी तो वहाँ हैं।
उन चारों ऑफिसर्स के बीच, एक असमंजस की सी स्थिति पैदा हो गई। वे चारों वॉकी-टॉकी पर बात कर रहे थे और चारों इस बात को एक साथ, इसी यकीन से कह रहे थे कि गुरुजी तो उनके सामने हैं और अभी-अभी आये हैं। उन सबने गुरुजी को एक साथ पूर्ण मनुष्य रुप में देखा लेकिन अलग-अलग जगहों पर। एक ने गुरुजी को कर्जन रोड ऑफिस में तो दूसरे ने गोल मार्किट में, तीसरे ने सैक्टर 7 में तो चौथे ने गुड़गाँव फार्म पर ।
अब एक बहुत मजेदार घटना घटी…
जो जिन्दगी की बेश-कीमती घटना है तथा संजों कर रखने योग्य है। बहुत उतेजना से भरपूर और अत्यधिक खूबसूरत……
गुरूजी ने सैक्टर 7 के स्थान पर, ऑफिसर को चाय के साथ मिठाई खिलाई और उसके सभी प्रश्नों के उत्तर दिये….
गुरुजी ने गुड़गाँव फार्म पर भी, ऑफिसर को चाय के साथ मिठाई खिलाई और उसके भी कुछ प्रश्नों के उत्तर दिये…. और
कर्जन रोड पर ऑफिसर को भी, गुरुजी ने चाय के साथ मिठाई खिलाई और उसके भी प्रश्नों के उत्तर दिये….
गुरूजी ने गोल मार्किट के सरकारी आवास पर, ऑफिसर को भी चाय के साथ मिठाई खिलाई और उसके भी प्रश्नों के उत्तर दिये।
वाह…………!! चार अलग-अलग जगहों पर सभी ऑफिसरों को एक ही समय में गुरुजी ने स्वयं चाय पिलाई तथा मिठाई भी खिलाई तथा उनके प्रश्नों के उत्तर भी दिये।
सभी ऑफिसरों ने गुरुजी को अलग-अलग साष्टांग प्रणाम करते हुए माफी माँगी।
आफरीन…………. गुरुदेव !!
यह एक असम्भव सी बात है जो एक साधारण व्यक्ति के आँख, कान व दिमाग की पहुंच से बहुत ऊपर है।
जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ कि बिना किसी शर्त के गुरूजी के समक्ष समर्पण ही, आपको इस दिव्य ज्ञान की ओर ले जा सकता है।
बेशक कोई भी जिज्ञासु, भक्ति और साधना से आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त तो कर सकता है लेकिन आगे चलकर ये असन्तुष्टता व थकाने वाली हो सकती हैं। क्योंकि वह स्वयं अपनी इस यात्रा का भविष्य व अन्त नहीं जानते। वे सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं। यदि यही सब गुरु को समर्पण करके प्राप्त किया जाये तो इस तरह की परेशानियाँ नहीं आती। क्योंकि करने वाले गुरुजी स्वयं ही हैं और वे ही तुम्हारा भविष्य जानते हैं, …जो कि तुम नहीं। शुरु-शुरु के दिनों में जब मैं गुरुजी के पास आया था तो मुझे आदेश मिला था कि मैं साधना, भक्ति, आध्यात्मिक किताबें पढ़ना और मंदिरों में माथा टेकना आदि बन्द कर दूं। इस बात पर तब मैंने गुरुजी से पूछा था कि गुरुजी फिर मैं क्या करूं…..?
गुरुजी ने कहा था—– “तुम लोगों की सेवा करो और मुझसे प्यार करो।”
उन्होंने आगे कहा,
“तुम कुछ नहीं करो, अब जो कुछ करना है मैं करूंगा और तुम्हें तुम्हारे लक्ष्य, ‘मोक्ष’ तक खुद ही लेकर जाऊंगा।” मैंने ‘मोक्ष’ और ‘मुक्ति’ के बारे में सुना और पढ़ा तो था लेकिन व्यवहारिकता के रू-ब-रू (Across In Practical) कभी नहीं आया। केवल लोगों के मुख से सुना और किसी का लिखा हुआ पढ़ा था। पता नहीं वह सही है या गलत, जबकि गुरुजी तो मेरे सामने सब कुछ शारीरिक तथा व्यवहारिक रुप से कहते थे और करते हैं। वे जो कुछ कहते हैं वह हो जाता है। यह कोई एक दिन, एक महीना या एक साल का अनुभव नहीं है, मैंने शारीरिक रुप में, उनके चरणों में पंद्रह साल रहकर, यह सब कुछ देखा और जाना है तथा हर रोज़ अनगिनत चमत्कार भी देखे हैं। मेरे अन्दर किसी भी तरह का कोई सवाल आता तो वे गुरुओं के गुरू, ‘महागुरुदेव’ मुझे उसका जवाब तुरन्त दे देते हैं। वे लोग, जिन्होंने गुरुजी को शारीरिक रुप में नहीं देखा है वे उनके शिष्यों द्वारा उन्हें जानने का हक रखते हैं। गुरूजी कहीं नहीं गये… वह हर कदम पर हमें राह दिखाते है तथा ज्ञान देते हैं। जब सारा संसार थककर सो जाता था तो गुरूजी हमें, अपने कमरे में ले जाकर रात्रि 12 बजे से लेकर मध्य रात्रि 2: 30 बने तक, अपनी भरपूर कृपा और अनकहे आध्यात्मिक ज्ञान से मालामाल करते थे।