एक बार मैं, अपने दारियागंज स्थित शोरुम में बैठा था कि गुरुजी आये और उन्होंने मुझसे पूछा – ”बेटा, तुम्हारा महा मृत्युन्जय मंत्र का जाप… कैसा चल रहा है?” मैंने जवाब दिया–”गुरुजी, बहुत मजा आ रहा है। मैं जब भी इस मंत्र का जाप शुरु करता हूँ, अभी दो-तीन बार ही पढ़ता हूँ कि एक अजीब सा नशा आ जाता है और ऐसा लगता है कि मैं अभी गिर पडूंगा।” गुरुजी बोले-”अब इस जाप को रोक दो” मैंने जवाब दिया– ‘नहीं गुरुजी, बड़ा मजा आ रहा है”
गुरुजी बोले—बेटा, मैं नहीं चाहता कि तुम्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने से पहले, किसी छोटे स्टेशन पर ही उतरने दूं। तुम्हारी यात्रा अभी बाकी है और मैं यह चाहता हूँ, पहले एक बार तुम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लो, उसके पश्चात् इन छोटे-छोटे स्टेशनों पर बेशक मजे लेते रहना” फिर उन्होंने मुझे आदेश दिया– “……कल सुबह 11 बजे से पहले मेरे पास गुड़गांव पहुंचो।” सुबह जब मैं गुड़गांव पहुंचा, तो गुरुजी मुझे स्थान के कमरे में ले गये। उन्होंने एक गिलास में ठण्डा जल लिया और उसका एक चूंट भरकर बाकी जल मुझे पीने के लिए दे दिया। उसके साथ-साथ ‘महाशक्ति–महा-गायत्री’ के मंत्र की दीक्षा भी दी। साथ ही, उसका जाप किस तरह से करना है, वह भी सिखाया तथा उन्होंने यह भी आदेश दिया, कि ”….स्थान पर आने वाले हर एक व्यक्ति से प्यार से बोलो।”
उन्होंने कहा—- ‘‘राज्जे, मैंने तुम्हें बहुत सी आध्यात्मिक शक्तियाँ दी है, तुम उसका प्रयोग करो और जो भी तुम्हारे पास अपनी समस्या ले कर आये, उसकी समस्या का समाधान करो। तुम सबका भला करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” “तुम्हारे पास, कोई किसी भी समस्या को लेकर, क्यों न आये, तुम सिर्फ हाँ कर देना और मुझे पुकार लेना, मैं वह काम कर दूंगा।”
…और तब से ऐसा लगातार हो रहा है।
यह सब कार्य तो गुरुजी करते हैं, फिर चाहे वे यहाँ हों या कहीं ओर……