महाराज-किशन गुरुजी के प्रिय शिष्यों में से एक हैं। गुरुजी अक्सर उन्हें “रामाकृष्णा” के नाम से ही बुलाते थे।
महाराज-किशन, गुरुजी के पास उनके कमरे में थे कि अचानक गुरूजी उठे और बोले—
“बेटा, मैं नहाने जा रहा हूँ। तब तक तुम यहाँ मेरा इन्तजार करो।”
महाराज-किशन ने किसी से सुन रखा था कि जब गुरुजी नहाने जाते हैं तो समय बहुत लगाते हैं। वे तुरन्त बोले, “गुरुजी, मैं घर जाना चाहता हूँ।” लेकिन गुरुजी बोले—
“मैंने तुम्हें कुछ देना हैं…/ इसलिए तुम मेरे वापिस आने तक रुको।” परन्तु महाराज किशन ने जिद्द की और कहा कि उसे रात नौ बजे तक दिल्ली पहुंचना है, इसलिए वह किसी और दिन आकर ले लेगा और वह चला गया।
उस दिन महाराज-किशन के पास बहुत से ‘नगद पैसे’ भी थे। वह बस में दिल्ली जाने के लिये सवार हुआ लेकिन वह बस रास्ते में ही खराब हो गई। बस के सभी यात्री दूसरी बस में सवार हुए लेकिन वह बस भी रास्ते में खराब हो गई। उन्हें मजबूरन तीसरी बस में बैठना पड़ा परन्तु उस बस ने उन्हें पटेल नगर के बजाय कशमीरी गेट बस अडड़े पर उतारा।
रात का समय था और उन्हें घर पहुंचने के लिए किसी स्थानीय वाहन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने वहाँ से पंजाबी बाग के लिए एक ऑटो रिक्शा लिया। ऑटो ड्राईवर ने रास्ते में अपना ऑटो रोका और किसी दूसरे व्यक्ति को, यह कह कर कि वह उसका दोस्त है, अपने साथ आगे बिठा लिया। कुछ समय बाद उसने दुबारा अपना ऑटो रोका और कहा कि उसका रिक्शा खराब हो गया है। तभी वहाँ से अचानक एक पुलिस कॉन्स्टेबल गुजरा। उसने उसके इस तरह रास्ते में रिक्शा रोकने पर, ऐतराज़ किया तो वह वहाँ से रिक्शा स्टार्ट करके चल दिया।
लेकिन करीब दो-तीन मील चलने के बाद एक सुनसान जगह पर आकर उसने फिर अपना रिक्शा रोक दिया और कहा कि उसके रिक्शे का इंजन खराब हो गया है। महाराज-किशन को उसकी इस हरकत ने शंका में डाल दिया और वह डर भी गया। क्योंकि उसके पास बहुत अधिक संख्या में नगद पैसे थे अतः उसने गुरुजी से प्रार्थना की, कि कृप्या उसकी रक्षा करें। तभी एक चमत्कार हुआ। दो मिनट में ही सामने से पैट्रोल पुलिस के जवान आ गये। एक ऑफिसर घोड़े की पीठ से नीचे उतरा और रिक्शा चालक से रास्ते में रुकने का कारण पूछा। इस पर महाराज-किशन ने उसके शंकाशील व्यवहार
और उसके इरादे के बारे में शिकायत की तथा सहायता माँगी। घुड़सवारों ने उसका लाइसेंस ले लिया और उसे हिदायत दी कि वह सवारी को छोड़कर वापिस थाने में आकर रिपोर्ट करे। महाराज-किशन नगद पैसे के साथ सुरक्षित रुप से पिछली रात नौ बजे के बजाय अगले दिन सुबह के चार बजे अपने घर पहुंचा। अगले दिन जब महाराज-किशन ने गुरुजी को प्रणाम किया तो गुरुजी ने मुस्कुराते हुए पूछा—
“क्यों बेटा, नौ बजे पहुंच गया था कल…?” बसों को खराब करके गुरूजी ने उसे यह सबक दिया कि उसने गुरूजी की इंतजार करने की बात न मान कर गलती की थी और स्वयं पुलिस के घुड़सवार बनकर उसकी रक्षा भी की तथा उसे सुरक्षित घर भी पहुंचा दिया।