एक बार मैं अपनी पत्नी तथा बेटियों के साथ रात के समय गुड़गाँव गया। वहाँ पहुँच कर हमने गुरुजी के पवित्र चरणों में प्रणाम किया।
अचानक मेरी पत्नी ने गुरुजी से मेरी शिकायत की, “गुरुजी, अपने बेटे को तो देखिये……!! रास्ते में इन्होंने, सड़क पर तीन व्यक्तियों को करीब-करीब मार ही दिया होता…||”
गुरुजी ने पूछा कि क्या बात हो गई..? तो वह बोली, “ये कार चलाते समय सो रहे थे” जब इन्हें उठाया तो इन्होंने, एक साईकल रिक्शा, जिसमें दो सवारियाँ भी थी और जो हमारी साईड पर ही आगे-आगे जा रहा था, उससे केवल चार फुट की दूरी पर ही ‘ब्रेक’ लगाई। गुरुजी ने मेरा सिर पकड़ा और मेरे माथे पर स्ट्रोक्स लगाने शुरु कर दिये। गुरुजी की उंगली ऐसे लग रही थी, मानों वह कोई लोहे की छड़ हो।
एक…….. दो…….. तीन……… जब तक इक्कीस नहीं हो गये, वे मारते ही चले गये….।। मेरी हालत ऐसी हो गई जैसे मैं आकाश में घूम रहा हूँ। वह दर्द बहुत असहनीय था। कुछ देर के बाद अपने होश में वापिस आया और तय किया कि
—– अब गाड़ी चलाते हुए कभी नहीं सोऊंगा। तभी मेरे दिमाग में अचानक एक ख्याल आया और मैंने गुरुजी से पूछा, “गुरुजी, अगर मैं सो रहा था तो कार की ‘ब्रेक’ किसने लगाई…!!” गुरुजी ने अधिकाराना अंदाज में, अपनी छाती पर हाथ रखते हुए कहा—
“……बेक मैंने लगाई थी”
मैंने आगे फिर पूछा, “गुरुजी, आप तो जानते ही हो कि मैं सो गया था, तो कार कौन चला रहा था.? ” गुरूजी दुबारा बोले—
“……बेवकूफ, कार मैं चला रहा था।”
मैंने बड़े हल्के-फुल्के अंदाज में अपने भगवान के चमकते तेजपूर्ण चेहरे की तरफ देखते हुए कहा, “गुरुजी, जब कार आप चला रहे थे, ‘ब्रेक’ भी आपने लगाई, तो मेरी नींद क्यों खराब की ……मुझे सोने दो ना, गुरुजी…… ||” उन्होंने मुझे प्यार से पुचकारा और अत्याधिक प्यार भी किया।—
कितने भाग्यशाली हैं हम शिष्य, जिन्हें इन जैसे गुरु मिले। अगर हम गाड़ी चलाते समय सो भी जाएं तो वह स्वयं आकर उसकी कमान सम्भाल लेते हैं। वह उन सभी का भाग्य संवार देते है, जो इनके पास पूर्ण विश्वास के साथ आते हैं।