मेरी फैक्ट्री का जनरल मैनेजर मि. अरोड़ा, एक कृत्रिम मिज़ाज
ऑफिसर था जो सिर्फ अपने काम से मतलब रखता था। एक बार हम बैठे हुए साधारण बातचीत कर रहे थे कि वह बोला, “सर, अक्सर मैं ये देखता हूँ कि आपके पास लोग आते हैं आपके चरण छूते हैं आप भी उन्हें आशीर्वाद देते हैं और वे लोग सन्तुष्ट होकर चले जाते हैं।” “वास्तव में यह सब मेरी समझ में नहीं आ रहा। अगर आप बुरा न मानें तो मैं इस विषय में और अधिक जानना चाहता हूँ।” उसकी बात का तात्पर्य समझते हुए, मैंने उसे बताया कि मैं ‘गुड़गाँव वाले गुरुजी’ का शिष्य हूँ। उन्होंने मुझे बहुत सी आध्यात्मिक शक्तियाँ दी हैं, जिनका मैं लोगों की भलाई के लिए प्रयोग करता हूँ। इसे सेवा कहते हैं वास्तव में यह सेवा…
‘भक्ति और साधना का ही एक मार्ग है।’ यह रास्ता मुझे मेरे गुरुजी ने दिया है यही कारण है कि लोग मेरे पास आते है।
इसके बाद बहुत दिन निकल गये। एक दिन सुबह-सुबह, मिस्टर अरोड़ा मेरे ऑफिस में आये और कुर्सी पर बैठने के बजाय ज़मीन पर बैठ गये और मेरे चरण छू लिये। उसके व्यवहार में आये, अचानक इस बदलाव को मैं समझ नहीं सका और उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा क्योंकि वह मेरी फैक्ट्री के पूरे स्टाफ का सीनियर ऑफिसर था। ऑफिस में शिष्टाचार व अनुशासन जरुरी है। अतः मैं नहीं चाहता था कि स्टाफ़ यह देखे कि उनका ऑफिसर, अपने ही ऑफिस में जमीन पर बैठा है।
उसने कहा कि वह मुझसे कुछ मिनटों के लिये अकेले में बात करना चाहता है। जिसके लिये मैंने हाँ कर दी। मि. अरोड़ा ने कहना शुरु किया—
“सर, उस दिन जब आप अपने गुरुजी के बारे में बता रहे थे तो मैं आपकी बात से सहमत नहीं था। इसलिये मैंने सोचा कि क्यों न मैं भी बड़े वीरवार के दिन, गुड़गाँव गुरूजी के पास जाऊं, और मैं गया भी तथा मैंने उनके दर्शन भी किये। गुरूजी ने मुझसे पूछा—
“…तुम क्या चाहते हो?” तो मैंने उनसे कहा, “गुरुजी, मैं पूरी मेहनत से तीन कम्पनियों का काम करता हूँ लेकिन मेरी मासिक आय सात हज़ार रुपये से ऊपर, कभी नहीं आती। मैंने उनसे प्रार्थना की, गुरुजी मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मेरी मासिक आय, दस हज़ार रुपये हो जाये। गुरुजी ने मुझे आशीर्वाद देते हुए कहा—-
“हो जायेगी।”
अब वह भावुक होकर बोला :
“सर, इस महीने के अन्त में मुझे दस हजार, सात सौ रुपये मिले है।”
सर, मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था परन्तु ऐसा हुआ है और मुझे यकीन है कि यह सब गुरूजी ने ही किया है। उसने आगे बताया जब मैं गुरूजी से मिलकर गुड़गाँव से निकला था तो मैंने मन में सोचा था कि यदि गुरूजी ने मुझे वास्तव में आशीर्वाद दिया है और मेरा काम हुआ तो ऑफिस में आकर मैं आपके चरण और आज मैं वही कर रहा यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे हजारों अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ है जिनके भाग्य, गुरुजी ने संवारे और वे सभी उनकी कृपा-पात्र बने।
मेरे प्रभु आप धन्य हैं ——-
“आपको, मेरा प्रणाम है”